स्मार्ट सिटी योजनाः दूर की कौड़ी साबित हुआ मोदी सरकार का सुनहरे कल का सपना

पीएम मोदी ने 2015 में 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का दावा करते हुए स्मार्ट सिटी मिशन की घोषणा की थी। साढ़े 3 साल से ज्यादा बीत जाने के बावजूद एक भी शहर स्मार्ट होता नहीं दिख रहा है। हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में सुनहरे कल का सपना दूर की कौड़ी साबित हुआ है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

मोदी सरकार ने 2015 में बड़े ताम-झाम के साथ सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इन्हें विकास के वैसे मॉडल सेंटर के रूप में विकसित कर ने की योजना थी जो अपने आसपास विकास का माहौल बना दें। लेकिन इस योजना का हश्र भी वही हुआ जो केंद्र की अन्य बड़ी-बड़ी योजनाओं का हुआ। आज स्थिति यह है कि कागज पर जो भी हो, जमीन पर कहीं कुछ नहीं दिखता। सरकार ने शायद मान लिया कि बैठकें करके ही सपनों को पूरा कर लिया जाएगा। अब लोगों में निराशा है, उन्हें लगता है कि सुहाने सपने दिखाने के अलावा सरकार ने कुछ नहीं किया। स्मार्ट सिटी योजना की जमीनी सच्चाई से पाठकों को बाखबर करने के लिए नवजीवन एक श्रंखला चला रहा है, जिसकी इस कड़ी में हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में योजना की जमीनी पड़ताल की गई है।

हिमाचल प्रदेशः एक भी परियोजना पर नहीं हुआ काम

देवभूमि हिमाचल के दो शहरों राजधानी शिमला और धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना है। लेकिन स्थिति यह है कि इन दोनों शहरों में स्मार्ट सिटी के नाम पर एक पत्थर भी नहीं लगा। धौलाधार पहाड़ियों की गोद में बसे धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में तब्दील करने के लिए 2109 करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर किए गए थे। इसमें 670 करोड़ के प्रोजेक्ट पर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत काम होना था। इसमें केंद्र और राज्य का हिस्सा 50:50 फीसदी का तय हुआ था। धर्मशाला के मेयर देवेंद्र जग्गी इस बात की पुष्टि करते हैं, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता कि सरकारों की ओर से इतनी उदासीनता क्यों है। वह कहते हैं कि 170 करोड़ से एक कमांड कंट्रोल सिस्टम बनाने के लिए पांच महीने पहले प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया था, लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं मिला। दो महीने पहले शहर में चलाने के लिए 38 इलेक्ट्रॉनिक बसों का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया था, लेकिन मंजूरी नहीं मिली। चार सौ करोड़ के टेंडर दस्तावेज राज्य सरकार को भेजे जा चुके हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

जग्गी बताते हैं कि स्मार्ट सिटी के लिए एक अधिकार संपन्न स्वतंत्र निकाय का गठन होना था, लेकिन सरकार ने उसकी शक्तियां ही खत्म कर दीं। अलग से एक सीईओ नियुक्त होना था, लेकिन यह भी नहीं हो सका। जग्गी ने बताया कि स्मार्ट सिटी के नाम पर अब तक महज 20 करोड़ रुपये का इस्तेमाल हुआ, वह भी गलियों के निर्माण पर। अब तक इस मद में 228 करोड़ रुपये जमा हुए, लेकिन प्रोजेक्ट मंजूर न होने के कारण यह पैसा भी बेकार पड़ा है।

धर्मशाला में स्मार्ट सिटी के तहत सड़क-गलियों, पेयजल, बिजली, फुटपाथ आदि का कायाकल्प होना था। स्विट्जरलैंड की तर्ज पर धर्मशाला से भाग सूनाग तक छोटी ट्रेन चलानी थी। मेयर ने बताया कि सिंगापुर की तर्ज पर हमने धर्मशाला का एक मैप भी बनाया था, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की उदासीनता के कारण अब तक कुछ नहीं हुआ।

शिमला का हाल भी धर्मशाला से कुछ अलग नहीं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शिमला के लिए 2900 करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर हुए थे, लेकिन अब तक 34-35 करोड़ ही मिले। कुल 53 प्रोजेक्ट पर काम होना था। इनमें मालरोड और निचले बाजार को बेहतर बनाने से लेकर एलीवेटेड रोड और आधुनिक बस स्टैंड का निर्माण वगैरह होना था। मगर स्थिति यह है कि काम शुरू भी नहीं हुआ। शिमला नगर निगम में पार्षद अर्चना धवन कहती हैं कि स्मार्ट सिटी के नाम पर यहां एक पत्थन भी नहीं लग सका है।

राजस्थानः स्मार्ट सिटी योजना में कछुआ चाल से हो रहे काम से लोग नाराज

राजस्थान में जयपुर, अजमेर, उदयपुर और कोटा को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए चुना गया था। इन शहरों में कई तरह के अलग-अलग काम इस प्रोजेक्ट के तहत शुरू किए गए हैं, लेकिन किसी भी शहर में विकास कार्य अपेक्षित गति से नहीं हो रहे। अब स्थिति यह है कि प्रदेश में नई सरकार स्मार्ट सिटी योजना से जुड़े कामों की समीक्षा कर रही है और जहां भी जरूरी होगा, इनमें बदलाव किया जाएगा।

राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 79 काम किए जाने थे। इनमें से 20 जयपुर नगर निगम, जयपुर विकास प्राधिकरण और अन्य विभागों द्वारा और 59 जयपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट लिमिटेड के माध्यम से होने थे। इनमें से नवंबर 2018 तक 12 काम ही पूरे हो पाए हैं। 19 का काम अभी जारी है। इनमें औसतन 15 से 50 प्रतिशत तक काम हुआ है। दो-तीन काम 75 से 80 प्रतिशत तक भी पूरे हुए हैं। प्रोजेक्ट के तहत 17 काम ऐसे हें, जिनमें अभी निविदा प्रक्रियाएं ही चल रही हैं। बाकी काम ऐसे हैं, जिनकी योजनाएं तैयार की जा रही हैं।

जयपुर में चल रहे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के कामों से लोग बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं। जयपुर के पुराने शहर में चल रहे इन कामों को लेकर यहां के व्यापारी अपनी नाराजगी का इजहार सरकार के सामने कर चुके हैं। अब यहां सरकार बदल गई है और नई सरकार ने आते ही इन कामों की समीक्षा भी शुरू कर दी है। पूरी रिपोर्ट मांगी गई है और बताया जा रहा है कि नई सरकार इन कामों के लिए अब अपने स्तर पर नई योजना बना सकती है।

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