स्मार्ट सिटीः लोगों को चमक-धमक दिखाकर निजी निवेशकों को जमीन देने का बहाना है मोदी सरकार की यह योजना

मोदी सरकार की स्मार्ट सिटी योजना का हश्र भी वही हुआ जो इस सरकार की अन्य बड़ी-बड़ी घोषणाओं का हुआ। आज स्थिति ये है कि जमीन पर कहीं कुछ नहीं दिखता। इसे लेकर लोगों में गहरी निराशा है। उन्हें लगता है कि सुहाने सपने दिखाने के अलावा पीएम मोदी ने कुछ नहीं किया।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की मोदी सरकार ने बड़े-बड़े दावे करते हुए देश के सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इन्हें विकास के वैसे मॉडल सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना थी जो अपने आसपास विकास का माहौल बना दें। लेकिन इस योजना का हश्र भी वही हुआ जो इस सरकार की अन्य घोषणाओं का हुआ। आज स्थिति ये है कि कागज पर जो भी हो, जमीन पर कहीं कुछ नहीं दिखता। सरकार ने शायद मान लिया है कि बैठकें करने भर से ही सपनों को पूरा कर लिया जाएगा। लोगों में अब इसे लेकर निराशा है। उन्हें लगता है कि सुहाने सपने दिखाने के अलावा सरकार ने कुछ नहीं किया। स्मार्ट सिटी योजना की जमीनी सच्चाई से पाठकों को बाखबर करने के लिए नवजीवन एक श्रंखला चला रहा है, जिसकी दूसरी कड़ी में आज झारखंड और मध्य प्रदेश में इस योजना की पड़ताल की गई है।

झारखंड में स्मार्ट सिटी योजनाः ऐसे घर होंगे, ऐसी सड़कें होंगी...सब बकवास!

झारखंड की राजधानी रांची स्मार्ट सिटी बनने के बाद ऐसा होगा-वैसा होगा। लोग ऐसे रहेंगे-वैसे रहेंगे। बसें ऐसे चलेंगी, सीवर ड्रेनेज वैसा होगा। देखने में ऐसा लगेगा-वैसा लगेगा। ऐसे घर होंगे। शानदार विधानसभा भवन होगा, हाईकोर्ट भी चकाचक होगा। कनवेंशन सेंटर, अरबन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यट, स्कूल, कॉलेज, बाजार, पार्किंग आदि-आदि। मतलब, आप अपनी आंखें बंद कीजिए। सरकार आपको एक खूबसूरत सपना दिखा रही है। कह रही है कि फरवरी 2020 तक इंतजार कीजिए। इसके बाद आप चमत्कृत रह जाएंगे। यहां वह सब कुछ होगा, जो विश्वस्तरीय हो। लेकिन, जनवरी 2020 की हकीकत यह है कि रांची स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट लिमिटेड के पास स्थायी सीईओ नहीं है। सरकार ने बड़े तामझाम के साथ जिन्हें सीईओ बनाया, वे व्यवस्था में खुद को अनुकूल नहीं पाकर इस्तीफा दे चुके हैं। अभी यह पद प्रभार में है।

केंद्र सरकार ने जब स्मार्ट सिटी के लिए रांची का चयन किया, तब सबसे बड़ी मुश्किल जमीन की थी। सरकार के पास अपनी जमीन नहीं थी जिसपर स्मार्ट सिटी बन सके। ऐसे में कोई काम संभव नहीं हो पाता। तब झारखंड सरकार और हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन (एचईसी) के बीच करार हुआ। इसके बाद एचईसी ने 743 करोड़ रुपये के बदले 656 एकड़ जमीन दी। इसी पर प्रस्तावित स्मार्ट सिटी का काम चल रहा है। विधानसभा भवन के लिए आदिवासियों की भी जमीनें अधिग्रहित की गई हैं। तब इसको लेकर बड़ा विरोध हुआ था।

बहरहाल, स्मार्ट सिटी का काम अगले साल तक पूरा कर लिया जाना है। साल 2017 के 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इसका उद्घाटन किया था। इस पर 10,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसमें डेढ़ लाख लोग रहेंगे। इनमें वे लोग शामिल हैं, जो यहां रहकर काम करेंगे, निवास करेंगे या फिर आया-जाया (फ्लोटिंग पोपुलेशन) करेंगे। इस शहर में प्रवेश के लिए चार बड़े द्वार भी होंगे।

सितंबर 2016 में रांची को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल किया गया था। एक महीने बाद 16 अक्टूबर (साल-2016) को रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड (आरएससीसीएल) का गठन किया गया। फिर इसको चलाने के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का विज्ञापन निकाला गया। तब ऐसे प्रोजेक्ट्स के संचालन में दक्ष यतींद्र सुमन का चयन इस पद के लिए किया गया। उन्होंने इंडियन स्कूल आफ बिजनेस (आइएसबी) हैदराबाद से मैनेजमेंट की पढ़ाई (एमबीए) की थी और आईआईटी, धनबाद (तब आईएसएम) से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट थे। उन्होंने बतौर सीईओ काम तो शुरू कर दिया लेकिन यहां के माहौल में खुद को ढाल नहीं पाए। दिक्कतें होने लगीं। तब सितंबर 2018 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और तब से सीईओ का पद रिक्त है।

अभी नगर विकास विभाग के निदेशक इसके प्रभारी हैं। झारखंड के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने बताया कि कुछ राज्यों में यह पद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संभाल रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार भी किसी आईएएस को यह पद दे सकती है। सरकार इस पर विचार कर रही है। बाहर के प्रोफेशनल्स से ज्यादा बेहतर रिजल्ट हमारे अधिकारी देंगे। हम लोग जल्द ही यह फैसला ले लेंगे कि रांची स्मार्ट सिटी प्रोजक्ट (आरएससीसीएल) का मुख्य कार्यकारी अधिकारी कौन होगा।”

क्या-क्या होगाः रांची स्मार्ट सिटी के अधीन 25905.50 वर्ग मीटर में अंतरराराष्ट्रीय स्तर का कन्वेंशन सेंटर बनना है। इसके निर्माण पर कुल 390.17 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यह तीन मंजिला इमारत होगी, जिसमें हजारों लोग एक साथ बैठ सकेंगे। इसका काम शुरू हो चुका है और हाल ही में हुई मीटिंग के दौरान इसे फरवरी 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया। इसी तरह पांच-पांच एकड़ में अरबन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट और अरबन टावर का निर्माण कराया जा रहा है। अंडरग्राउंड ड्रेनेज की व्यवस्था की जानी है। वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट लगना है ताकि 70 प्रतिशत कचरे का निपटान हो सके।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो सिर्फ 30 फीसदी कचरा ही डिस्पोजल के लिए ले जाया जाएगा। इस प्रस्तावित सिटी में 375 बसें चलेंगी। कॉमन मोबिलाइजेशन कार्ड होगा। लोग इस कार्ड के जरिये किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर कर सकेंगे। इसी स्मार्ट सिटी में झारखंड हाईकोर्ट और झारखंड विधानसभा के भवन का निर्माण कराया जा रहा है। हालंकि, हाईकोर्ट बिल्डिंग के निर्माण में हुए कथित टेंडर घोटाले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट एक जनहित याचिका की सुनवाई भी कर रहा है। दूसरे निर्माणों में भी घपले के आरोप लगे हैं।

अभी कैसा है रांचीः झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में रांची के प्रशासनिक अधिकारियों को तलब कर पूछा था कि जब उनसे ट्रैफिक नहीं संभल सकता तो वे किस स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे हैं? रांची को अभी वे सारी बीमारियां लगी हुई हैं, जो स्मार्ट सिटी के सपने को एक झटके में तोड़ दें और फिर लोग कहें कि यह एक हसीन सपना था।

मध्य प्रदेश में स्मार्ट सिटी का हालः निजी निवेशकों को जमीन देने का बहाना

केंद्र सरकार का महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी मिशन मध्य प्रदेश में सपना ही साबित हो रहा है। मिशन के तहत सबसे ज्यादा 7 शहर मध्यप्रदेश के चुने गए थे। लेकिन अब तक इससे जुड़े काम जमीन पर नहीं दिख रहे हैं। वहीं, पिछली शिवराज सिंह चौहान सरकार ने स्मार्ट सिटी में राजस्व पैदा करने का जो मॉडल तैयार किया था, वह भी अब सवालों के घेरे में है।

इस मॉडल के तहत राजधानी भोपाल के टीटी नगर की 148 एकड़ बहुमूल्यज मीन से मात्र तीन हजार पांच सौ करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। यह जमीन निजी निवेशकों को विकसित करने के लिए दी जानी है। निवेशक इस सरकारी जमीन को गारंटी के तौर पर रखकर बैंक से कर्ज भी ले सकेंगे। वर्तमान कलेक्टर रेट पर टीटी नगर की इस जमीन की कीमत करीब 20 हजार करोड़ है, जिसे केवल साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये के लिए निजी निवेशकों को दिया जा रहा है। इस मॉडल में निजी निवेशकों की तो चांदी है, लेकिन सरकार का नुकसान है।

राज्य में चुनावी आचार संहिता लगने से करीब तीन दिन पहले भोपाल स्मार्ट सिटी द्वारा आनन-फानन में एक लग्जरी होटल में निजी निवेशकों और नगर प्रशासन के अधिकारियों के बीच बैठक हुई जिसमें निवेशकों को बताया गया कि अगर वे टीटी नगर में प्रस्तावित स्मार्ट सिटी में निवेश करेंगे तो उन्हें यह जमीन विकास के लिए उपलब्ध कराई जाएगी, जिसपर वे बैंक से लोन भी ले सकेंगे।

बैंक लोन के लिए सरकार निवेशकों को एक प्रमाणपत्र देगी। यह प्रमाणपत्र जिला कलेक्टर द्वारा जारी किया जाएगा। यह एक प्रकार का अनापत्ति प्रमाणपत्र होगा, जिसके आधार पर बैंकों से ऋण लेना आसान हो जाएगा। जानकारों ने इस मॉडल पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा करने से निजी निवेशकों की चांदी हो जाएगी और अगर ऋण नहीं चुकाया गया तो सरकारी जमीन खतरे में आ जाएगी। इसमें निवेशक साफ बच जाएंगे।

सतत विकास और पर्यावरण सरंक्षण के लिए काम करने वाली रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संस्था भोपाल सिटीजन फोरम के संयोजक हरीष भावनानी का कहना है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर आकाश छूती इमारतें बनाने की योजना है, जिससे आम आदमी को कोई लाभ नहीं होने वाला। सरकारी जमीन को निजी निवेशकों को फ्री होल्ड पर देने के कई खतरे हैं। बैंकों के लोन नहीं लौटाने पर कई तरह की कानूनी अड़चनें आएंगी और प्रोजेक्ट भी फेल हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि शहरों में सीवेज सिस्टम नहीं है। सड़कें चौड़ी नहीं है और पेयजल की समस्या है। पहले तो इन समस्याओं को दूर करना चाहिए न कि बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर निवेशकों को फायदा पहुंचाना चाहिए।

वरिष्ठ समाजसेवी और आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है कि स्मार्ट सिटी में पर्यावरण सरंक्षण का ख्याल नहीं रखा गया है। प्रोजेक्ट के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। प्रोजेक्ट की समीक्षा करनी चाहिए और टिकाऊ विकास पर ध्यान देना चाहिए।

स्मार्ट सिटी के नाम पर अब तक जितने प्रोजेक्ट शुरू किए गए, उनमें से ज्यादातर कागजों से ही बाहर नहीं निकल पाए हैं। राजधानी में 10 प्रोजेक्ट शुरू किए गए थे, जिनमें से अब तक एक ही पूरा हुआ। वहीं, जबलपुर के 101 प्रोजेक्ट्स में से एक भी पूरा नहीं हुआ है। केंद्र सरकार शहरों को स्मार्ट बनाने में कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार साल में राज्य के पांच शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन और सतना के विकास के लिए सिर्फ 200 करोड़ का बजट मिला। केंद्र के आंकड़े ही बताते हैं कि इस वित्त वर्ष के शुरू तक सागर और सतना को 20-20 करोड़ का बजट ही मिला। इतनी कम राशि में किसी शहर की कायापलट का सपना तो सपना ही रहेगा।

खबरों में बने रहने वाले प्रोजेक्ट पर ध्यानः स्मार्ट सिटी के दो पहलू हैं। एक एरिया बेस्ड डेवलपमेंट, जिसमें चिन्हित जमीन पर अलग-अलग तरीके से शहरी विकास प्रोजेक्ट शुरू किए जाने थे। यहां परियोजनाओं को पूरा कर मिसाल बनानी थी जिसे देखकर शहर के दूसरे हिस्सों में भी वैसे ही काम होते। शुरूआती दौर में स्मार्ट सिटी का दूसरा पहलू, जिसे पेन सिटी डेवलपमेंट कहा गया उसे तवज्जो दी गई, इसके तहत छोटे प्रोजेक्ट पर काम किया गया जो आसान थे और खबरों में बने रहने का जरिया बन सकें। इन प्रोजेक्ट में पब्लिक बाइक शेयरिंग और स्मार्ट पोल लगाने जैसे प्रोजेक्ट शामिल थे। ये प्रोजेक्ट स्थानीय स्तर पर खबरों में ज्यादा बने रहे, लेकिन हकीकत में स्मार्ट सिटी के मूल आइडिये से कोसों दूर थे।

धीमी रफ्तारः सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट कसंल्टेंट ने भी प्रोजेक्ट की प्रगति का मूल्यांकन करने वाली अपनी आंतरिक रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में स्मार्ट सिटी का विकास अपेक्षित गति नहीं पकड़ सका। इसमें कई स्तर पर रिपोर्ट ने स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट को आड़े हाथ लिया है। जैसे कि कई शहरों में स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट के लिए अलग अधिकारी तैनात न करते हुए अन्य विभागों के अधिकारियों को अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी गई। इस वजह से निगरानी के अभाव में स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट समय पर या तो शुरू ही नहीं हो पाए या उनके क्रियान्वयन में देरी हो रही है।

सुधारात्मक कदम उठाए जाएंगेः कांग्रेस सरकार बनते ही हुई प्रशासनिक सर्जरी के बाद नगर प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव बने प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि स्मार्ट सिटी एक बड़ा मिशन है, इसके सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद सुधारात्मक कदम उठाए जाएंगे। जहां जो कमी दिखाई देगी, उसे खत्म किया जाएगा।

(झारखंड से रवि प्रकाश और मध्य प्रदेश से मोहम्मद फैजान खान की रिपोर्ट)

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