महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी की हत्या की जांच को फिर से कराने के संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया है। पंकज फड़नीस ने नए तथ्यों के आधार पर महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग की थी।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी की हत्या की नए सिरे से जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने पंकज फड़नीस की याचिका को खारिज कर दिया। पंकज फड़नीस ने अपनी याचिका में नए तथ्यों के आधार पर महात्मा गांधी की हत्या की दोबारा जांच की मांग की थी। उनका कहना था कि महात्मा गांधी की हत्या 4 गोलियां मारकर हुई थी, यह नए तथ्य पहले सामने नहीं आए थे।

न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा, ‘‘अब इस घटना में बहुत देर हो चुकी है। हम इसे फिर से खोलने या इसे ठीक करने नहीं जा रहे हैं। इस मामले को लेकर बहुत भावुक नहीं हों, हम कानूनी तर्कों के अनुसार चलेंगे न कि भावनाओं के अनुसार।”

पीठ ने आगे कहा, “आप कहते हैं कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि क्या हुआ था। परंतु ऐसा लगता है कि लोगों को इस बारे में पहले से ही मालूम है। आप लोगों के मन में संदेह पैदा कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि जिन लोगों ने हत्या की थी उनकी पहचान हो चुकी है और उन्हें फांसी दी जा चुकी है।”

न्यायमित्र अमरिंदर शरण ने पंकज फड़नीस द्वारा पेश की गई सामग्री की जांच की थी, उन्होंने भी महात्मा गांधी की हत्या की फिर से जांच का समर्थन नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सभी जरूरी कागजातों की जांच करने वाले वकील अमरिंदर शरण ने कोर्ट में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी की हत्या करने में नाथूराम गोडसे के अलावा किसी और के होने के सबूत नहीं मिले हैं। उन्होंने कोर्ट को जानकारी दी कि जिस चार गोली की थ्योरी की बात होती है, उसका भी कोई सबूत नहीं है।

महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में दक्षिणपंथी नाथूराम गोड्से ने काफी नजदीक से गोली मार कर हत्या कर दी थी। बापू की हत्या की एफआईआर उसी दिन यानी 30 जनवरी को दिल्ली के तुगलक रोड थाने में दर्ज की गई थी। एफआईआर उर्दू में लिखी गई थी जिसमें पूरी वारदात के बारे में बताया गया था। इस हत्याकांड में नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी दे दी गयी थी, जबकि सबूतों के अभाव में सावरकर को संदेह का लाभ दे दिया गया था।

(आईएनएस के इनपुट के साथ )

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