बिल्किस बानो रेप केस: दोषी पुलिस वालों और डॉक्टरों पर कार्रवाई अभी तक नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दिया 6 हफ्ते का वक्त

सुप्रीम कोर्ट ने बिल्किस बानो गैंग रेप मामले में गुजरात सरकार को यह बताने के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया है कि दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई हुई या नहीं। बिल्किस ने फैसले पर अंसतुष्टि जाहिर की है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के बिल्किस बानो गैंग रेप मामले में गुजरात सरकार को यह बताने के लिए 6 हफ्ते का और वक्त दिया है कि दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है या नहीं।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविल्कर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का यह आग्रह मान लिया कि इस मामले से जुड़े सरकारी प्राधिकरणों को आदेश देने के लिए थोड़ा और समय दिया जाना चाहिए। 23 अक्टूबर को पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को इस बात की जानकारी देने के लिए समय दिया था।

बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले हफ्ते में करने की बात कही है। बेंच ने यह भी कहा कि मुआवजे की मांग को बढ़ाने के लिए दाखिल एक अलग अर्जी की सुनवाई अगले हफ्ते होगी।

जानकारी के मुताबिक, बिल्किस बानो ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अंसतुष्टि जाहिर की है।

3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास रणधिकपुर गांव में भीड़ ने बिल्किस और उनके परिवार पर हमला कर दिया था। गोधरा ट्रेन हादसे के बाद हुए गुजरात दंगे में उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। बिल्किस बानो का जब गैंग रेप हुआ वे उस समय गर्भवती थीं।

2002 के गुजरात दंगे के वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।

21 जनवरी 2008 को एक विशेष अदालत ने 11 लोगों को इस मामले का दोषी पाया था और उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

दोषियों ने बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट में सजा के खिलाफ अर्जी दी थी विशेष अदालत के फैसले को खारिज करने की मांग की थी।

सीबीआई ने भी हाई कोर्ट में एक अपील दायर की थी कि दोषियों में 3 लोगों को मौत की सजा दी जाए क्योंकि वे अपराध के मुख्य भागीदार थे।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 मई को गैंगरेप मामले में दी गई उम्र कैद की सजा को कायम रखा था और पुलिस अधिकारियों और डॉक्टरों समेत 7 अन्य लोगों की रिहाई को खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने 5 पुलिस वालों और 2 डॉक्टरों को इस मामले में दोषी पाया था। उन्हें भारतीय दंड विधान की धारा 218 के तहत अपना कर्तव्य नहीं निभाने और धारा 201 के तहत तथ्यों से छेड़छाड़ करने के आरोप में दोषी पाया गया था।

दोषी पुलिस वालों में नरपत सिंह, इदरिस अब्दुल सैय्यद, बिकाभाई पटेल, रामसिंह भाबोर और डॉक्टरों में अरुण कुमार प्रसाद और संगीता कुमार प्रसाद के नाम हैं।

मामले की सुनवाई शुरू में अहमदाबाद में हुई, लेकिन बिल्किस ने यह शंका जताई कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, जिसके बाद 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।

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