पूर्वांचल में बनारसी साड़ी और कालीन उद्योग पर जीएसटी का असर, निर्यातकों के फंसे 300 करोड़ रुपए

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस और उसके आसपास के क्षेत्र में जीएसटी की वजह से कालीन, बनारसी साड़ी और हस्तशिल्प से जुड़े कारोबार पूरी तरह से डूबने के कगार पर हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस और उसके आसपास के क्षेत्र में कारोबार का हाल बुरा है। केंद्र सरकार के माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण कालीन से लेकर बनारसी साड़ी और हस्तशिल्प से जुड़े कारोबार पूरी तरह डूबने के कगार पर हैं।

निर्यातकों का कहना है कि जीएसटी के पोर्टल में कई खामियों की वजह से उनका लगभग 300 करोड़ रुपये के दावा अटका पड़ा हैं। इससे कारोबारियों को काफी पेरशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

पूर्वाचल के निर्यातकों की मानें तो लगभग 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी जीएसटी के चक्कर में फंसी हुई है। भदोही में करीब चार हजार करोड़ रुपये का कालीन निर्यात होता है। बनारस की साड़ी और हस्तशिल्प का कारोबर करीब 300 करोड़ रुपये का है।

कारोबारियों के मुताबिक, जीएसटी के जुलाई में लागू होने से अब तक 5 महीनों में कालीन निर्यातकों का 12 फीसदी और अन्य उद्योगों से जुड़े लोगों ने 5 प्रतिशत की दर से जीसएटी का भुगतान किया है। सभी को उम्मीद थी कि जमा करने के दो-तीन महीने के बाद जीएसटी का रिफंड मिल जाने से कुछ आराम मिलेगा, लेकिन कारोबारियों को निराशा हाथ लगी है।

ऑल इंडिया कार्पेट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के रवि पटौदिया की मानें तो सरकार के पोर्टल की गड़बड़ी के चलते जीएसटी रिफंड न हाने से भदोही के 1000 निर्यातकों के ही करीब 200 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं। यह राशि निर्यातकों का वर्किंग कैपिटल होने से कच्चे माल की खरीद से लेकर कालीन की बुनाई और कारीगरों की मजदूरी पर इसका सीधा असर दिखाई देने लगा है।

रवि पटौदिया ने कहा, “अगर दो-तीन महीने में रिफंड न मिला तो निर्यातकों की कमर टूटना निश्चित है।”

पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के संयोजक अशोक गुप्ता ने भी कहा कि केंद्र सरकार ने जीएसटी तो लागू कर दिया, लेकिन इसकी समुचित व्यवस्था नहीं की, जिस कारण निर्यातकों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।

निर्यातकों को हो रही परेशानियों को लेकर कालीन निर्यातक सुधीर अग्रवाल ने बताया कि रिफंड फॉर्म पोर्टल पर न होने और शिपिंग बिल का जीएसटी पोर्टल से लिंक न होना भी बड़ी समस्या है। लिंक न होने से निर्यातकों के पास विदेशों में माल भेजने का प्रमाण ही नहीं है। इसके चलते निर्यातक रिफंड का दावा नहीं कर पा रहे हैं।

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