सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने उठाए चीफ जस्टिस की कार्यशैली पर सवाल: क्या कहते हैं कानून के जानकार

सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों द्वारा किए गए प्रेस कांफ्रेंस पर कानूनी जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ ने इसे यूनियनबाजी बताया, तो कुछ ने इन जजों पर महाभियोग की बात की।

फोटो : सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

एक अद्भुत कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर सनसनी फैला दी। प्रेस कांफ्रेंस करने वाले जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कूरियन जोसेफ ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर आरोप लगाया कि वे सुप्रीम कोर्ट नामी संस्था की गरिमा से समझौता कर रहे हैं।

इस पूरे मामले पर कानूनी जानकार हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि यह बहुत ही परेशान करने वाली घटना है, जिसके कारण न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर आम लोगों की धारणा बदल सकती है। कुछ लोगों ने इसे यूनियनबाजी करार दिया, जबकि कुछ ने इन चारों जजों के खिलाफ महाभियोग चलाने की वकालत की।

जस्टिस अशोक कुमार गांगुली, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश : इस पूरे प्रकरण से मैं सकते में हूं और निराश भी हूं। न्यायपालिका के लिए यह एक दुख भरा दिन है क्योंकि चारों जज सिर्फ इस बात पर बाहर आकर बोल रहे हैं क्योंकि मुकदमे कथित तौर पर मनमाने तरीके से बेंचों और जजों को सौंपे जा रहे हैं। इस मामले में बातचीत होनी चाहिए थी। ये चारों जज मुख्य न्यायाधीश के पास गए भी थे और कुछ अहम मामलों पर बात की थी। सुप्रीम कोर्ट को न्यायिक प्रशासन के लिए जजों में आपसी सहमति से काम करना चाहिए। भले ही मुख्य न्यायाधीश सर्वोपरि होते हैं, लेकिन उन्हें अपने अधिकारों का इस्तेमाल इस तरह करना चाहिए, जिससे बाकी जजों का हौसला बढ़े और इंसाफ देने को बढ़ावा मिले। यह पहला मौका है जब मौजूदा जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस किस्म का मुद्दा उठाया है

सोली सोराबजी, पूर्व अटार्नी जनरल: मैं इस पूरे मामले से बहुत गुस्से में हूं। काश इन जजों ने ऐसा न किया होता। इससे न्यायपालिका की आजादी को लेकर लोगों की राय बदलेगी। यह एक परेशान करने वाली घटना है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसे चीफ जस्टिस के साथ खुलकर बात करने के बाद सुलझाया जा सकता था।

आर एस सोढ़ी, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज: मेरा मानना है कि इन चारों जजों के खिलाफ महाभियोग चलना चाहिए। जो उन्होंने किया ये उनका अधिकार नहीं था। अब उन्हें अदालत में बैठकर फैसले सुनाने का अधिकार नहीं रहा। ये यूनियनबाजी है। यह उनका काम नहीं है कि लोकतंत्र खतरे में है। इसके लिए संसद है, अदालतें है, पुलिस है।

प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील: निश्चित रूप से यह एक गंभीर मामला है। यह ऐसा मामला है जिसने मुख्य न्यायाधीश पर सवाल उठाए हैं। किसी न किसी को तो इस मामले में दखल देना था, उलझना था। चीफ जस्टिस लगातार अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। यह एक अद्भुत कदम है।

पी बी सावंत, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज: जजों को अपनी बात रखने के लिए प्रेस कांफ्रेंस कर ऐसा अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा, इसी से अंदाजा है कि मामला बहुत गंभीर है। यह या तो चीफ जस्टिस से जुड़ा है या फिर ये उनका अंदरूनी मामला है।

इंदिरा जयसिंग, पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता और वरिष्ठ वकील: मेरी नजर में यह एक ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस थी। यह बहुत अच्छा कदम था। मुझे लगता है कि देश के लोगों को यह जानने का अधिकार है कि न्यायपालिका में क्या चल रहा है। मैं इस कदम का स्वागत करती हूं।

आनंद ग्रोवर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील: मुझे लगता है कि इन चारों जजों के पास दूसरा विकल्प बचा ही नहीं था। सुप्रीम कोर्ट में एक अलिखित और निष्पक्ष परंपरा रही है कि किस तरह बाकी जजों को काम सौंपा जाएगा। किसी खास बेंच को कोई खास मुकदमा नहीं सौंपा जाता है। अच्छा हुआ कि इन जजों ने यह कदम उठाया, क्योंकि लोगों को मालूम होना चाहिए कि आखिर हो क्या रहा है और क्या सरकार की तरफ से या कार्यपालिका की तरफ से न्यायपालिका पर कोई दबाव पड़ रहा है या नहीं। दरअसल पूरा सिस्टम ही ध्वस्त हो गया है, जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है। अच्छी बात यह है कि जजों के इस कदम से इस मामले में बहस शुरु होगी।

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