आरटीआई के दायरे में आएगा चीफ जस्टिस का ऑफिस, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

सुभाष चंद्र अग्रवाल नाम के एक याचिकर्ता ने जजों की संपत्ति का ब्यौरा लेने के लिए एक RTI दाखिल की थी। सुभाष को इस मामले में संबंधित दफ्तर की ओर से जानकारी न दिए जाने पर सुभाष CIC के पास इस मामले को लेकर गए और बाद में इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए कहा कि चीफ जस्टिस का ऑफिस भी अब RTI के दायरे में आएगा। कोर्ट ने आगे कहा कि पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं करता। बता दें कि ये अपीलें सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और शीर्ष अदालत के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के साल 2010 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें कहा गया है कि CJI का पद सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आता है।

बुधवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि CJI दफ्तर अब से ‘सूचना के अधिकार’ कानून के अंतर्गत आएगा क्योंकि यह एक सार्वजनिक कार्यालय है। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ में रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे।


साल 2007 में सुभाष चंद्र अग्रवाल नाम के एक याचिकर्ता ने जजों की संपत्ति का ब्यौरा लेने के लिए एक RTI दाखिल की थी। सुभाष को इस मामले में संबंधित दफ्तर की ओर से जानकारी उपलब्ध करवाने से मना कर दिया गया। इसके बाद सुभाष केंद्रीय सूचना आयुक्त के पास इस मामले को लेकर गए और बाद में इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

साल 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि सार्वजनिक दफ्तर होने की वजह से चीफ जस्टिस का ऑफिस भी सूचना के अधिकार के दायरे में आना चाहिए। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसके बाद इस मामले में फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था।

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