राजस्थान में वादों और दावों की हकीकत: वसुंधरा की गौरव यात्रा तो खत्म हुई, पर किस बात पर गर्व करे सवाई माधोपुर

सवाई माधोपुर में 200 बिस्तरों का एक मात्र बड़ा सरकारी जनरल अस्पताल है। जिले और आसपास की इतनी बड़ी आबादी के अलावा 35 किलोमीटर दूर पड़ोस के मध्यप्रदेश के चंबल डिविजन के आम-गरीब लोग भी इसी अस्पताल की ओर दौड़ते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

विश्व प्रसिद्ध अभयारण्य रणथंबोर में पूर्वी राजस्थान का नैसर्गिक सौंदर्य से भरा खूबसूरत अंचल सवाई माधोपुर सुख और समृद्धि के मामले में भी सोना उगल सकता है। उसके एक ओर मध्यप्रदेश का चंबल प्रमंडल है और दूसरी ओर करौली जिला है। करीब 20 वर्ग किमी क्षेत्र में मुरैल और बनास नदियों के बीच में बसा है यह सुरम्य पहाड़ियों से घिरा जिला। उलटबांसी यह है कि सिंचाई तो दूर, यहां के लाखों लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं।

पिछले माह 16 अगस्त को यहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की होने वाली गौरव यात्रा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन की वजह से स्थगित हो गई थी। रविवार को जोधपुर में इस यात्रा का समापन हो गया। अब कोई यहां गौरव यात्रा निकालने आएगा भी या नहीं, पता नहीं। प्रायः हर बार ही चुनावों के पहले न जाने यहां से कितनी सियासी यात्राएं निकली होंगी। पेयजल और सिंचाई की बड़ी योजनाएं लाने के वादों के अलावा, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार, उच्च शिक्षा, अच्छे स्कूल-कॉलेज, बेरोजगारों को रोजगार, मेडिकल कॉलेज, सड़कें बनाने के बड़े-बड़े दावे और वादे हुए। कई पीढ़ियां बीत गईं। सरकारी व्यवस्था से लुटे-पिटे आम लोग अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।

इस पूरे क्षेत्र में जनस्वास्थ्य तो और भी खस्ताहाल में है। सवाई माधोपुर में 200 बिस्तरों का एक मात्र बड़ा सरकारी जनरल अस्पताल है। जिले और आसपास की इतनी बड़ी आबादी के अलावा 35 किलोमीटर दूर पड़ोस के मध्यप्रदेश के चंबल डिविजन के आम-गरीब लोग भी इसी अस्पताल की ओर दौड़ते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता हरी प्रसाद योगी कहते हैं, "जनता के टैक्स और सरकारी खजाने से चलाया जा रहा यह भारी-भरकम सरकारी अस्पताल मुसीबत में यहां के लोगों के किसी काम का नहीं। गंभीर रूप से बीमार और आपात उपचार के जरूरतमंद मरीजों को जयपुर रेफर करने की खानापूर्ति होती है। तत्काल उपचार के लिए गंभीर तौर पर बीमार मरीजों को जयपुर ले जाने की दौड़ इतनी महंगी पड़ती है कि इलाज के बिना न जाने कितने लोगों की जीवन लीला रास्ते में ही समाप्त हो जाती है।”

सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने और गौरव यात्रा के बीच अधिकारियों के साथ मौके पर जवाब-तलब की कसरत कई लोगों को अच्छी भी लग रही है। कई लोग मानते हैं कि चुनावों के पहले जनता को लुभाने की इससे अच्छी कोशिश भला और क्या हो सकती है। लेकिन क्या वाकई राजस्थान में गरीब जनता के काम आसानी से हो रहे हैं। इस सवाल पर गांव मलारना चौड़ निवासी अनुसूचित जाति के युवा दिनेश खटीक कहते हैं, "मेरी नई मोटर साईकिल पिछले साल 15 अगस्त के दिन चोरी हुई। एक साल बीत गया कोई सुराग तक नहीं मिला। पूरे महीने चक्कर काटे, दबाव बनाया। एफआईआर लिखने में स्थानीय पुलिस तब तक आनाकानी करती रही, जब तक उनकी जेबें गर्म नहीं कर दी गईं।"

इस दलित परिवार पर सरकारी व्यवस्था की मार यहीं तक नहीं रुकी। उनके 16 साल के 11वीं में पढ़ रहे छोटे भाई विजय कुमार अनुसूचित जाति की छात्रवृत्ति का लाभ लेने से वंचित कर दिए गए। कारण तहसील द्वारा जारी किए गए जाति प्रमाण-पत्र में उन्हें ओबीसी कैटेगरी में दिखा दिया गया। तहसीलदार को अपने कार्यालय की इस गंभीर गलती को दुरुस्त करने की फुर्सत नहीं। ऐसा ही नत्थूलाल बैरवा के साथ हुआ। कहने को उसके दो छोटे बच्चों को स्कूली फीस, कॉपी-किताब सब माफ है। उनका कहना है, "बिना पैसे दिए हमारे बच्चों को किताब-कॉपी नहीं मिलती।"

जनता जब वोट देती है तो सरकारें लोगों की आकांक्षाओं पर कितना खरा उतरती हैं। इस प्रश्न को लोग अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हैं। ज्यादातर लोग अब खुलकर आपत्ति करते हैं कि यहां टिकट की बारी आती है तो जयपुर में बैठे बड़े लोग टिकट हड़प लेते हैं। जैसा कि फरीदाबाद के सुखबीर जौनपुरिया लोकसभा में यहां से बीजेपी सांसद बन गए। इसी तर्ज पर विधानसभा की दो सीटों पर जयपुर की राजकुमारी दिया और दिल्ली में रह रहे जितेंद्र गोठवाल टिकट पा गए। इस बार क्या होगा पता नहीं।

महिला मुख्यमंत्री के राज में राजस्थान में 'बालिका बचाओ, बालिका पढ़ाओ' के नारे की जमीनी हकीकत किसी को देखनी हो तो सवाई माधोपुर शहर के बीच गर्ल्स कॉलेज की दुर्दशा देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। कॉलेज में प्रवेश के पुराने मार्ग को बंद कर चौतरफा कॉलोनियां उग आईं। यह नहीं सोचा गया कि छात्राएं कॉलेज में किस रास्ते से जाएंगी।

सवाई माधोपुर के दर्जनों गांवों में पढ़े-लिखे नौजवानों की लंबी चौड़ी फौज दिखाई देती है। कई सालों से राजस्थान सरकार की नौकरियों के लिए कई परीक्षाओं में बैठे चुके नौजवान नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "जब भी नौकरियां निकलती हैं, पेपर लीक होना तय है। लाखों रुपये में पेपर हमारे सामने बिके। हमारे गरीब मां-बाप कहां से नौकरी के लिए रिश्वत का जुगाड़ करेंगे।"

पिछले कई वर्षों से गुर्जर आरक्षण की मांग को लेकर यहां पूरा क्षेत्र बुरी तरह झुलस रहा है। आसपास के जिले तोड़फोड़, हिंसा और रेल रोको-चक्का जाम के अभ्यस्त हो चुके हैं। नौजवानों को भी पता है कि रोजगार तो मिलेगा नहीं, इसी आंदोलन के बहाने हुड़दंग में शामिल होकर उन्हें भी समाज में प्रतिष्ठा मिल जाएगी।

15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी के भाषण और इधर राजस्थान में किसानों, आम आदमी के लिए लिए घोषणाओं पर मालद खुर्द गांव, तहसील बोली के 50 साल के किसान ओम प्रकाश मीणा कहते हैं, "मुझे होश संभाले चार दशक बीते होंगे। बीजेपी में फायदा उद्योगपति उठा रहे हैं। उन्हीं का कर्जा माफ हो रहा है।"

राजसमंद से सवाई माधोपुर होते हुए चंबल घाटी तक कई सौ किमी की बनास नदी में रेत-बजरी का अवैध खनन सरकारी तंत्र के सरंक्षण में पल रहे स्थानीय माफिया की काली कमाई का सबसे बड़ा धंधा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बावजूद यहां पुलिस की मिलीभगत से हर रोज सैकड़ों ट्रक-ट्रॉलियां यहां देवली, अंचेर, शिवद, बरोनी और बोली तहसील के नदी तटों के आसपास देखे जा सकते हैं। सरकार और प्रशासन इस अवैध कारोबार पर आंखे मूंदे रहता है। बिल्डिंग मैटेरियल सप्लाई का काम करने वाले स्थानीय दुकानदार मेघलाल कहते हैं, "इससे तो आम लोगों को घर बनाने में मुश्किल हो गई। चोरी की रेत-बजरी महंगे दामों पर खरीदने को लोग विवश कर दिए गए।"

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