जम्मू में बीजेपी का राष्ट्रवाद का ढिंढोरा, पर राष्ट्र के लिए मरने वालों की जारी है दुर्दशा

पाकिस्तान द्वारा संघर्ष विराम उल्लंघन के कारण आए दिन शहीद हो रहे जवानों पर पूरे देश में मचे हो-हल्ले के बीच लोग सीमाई इलाकों में रहने वालों की मुश्किल जिंदगी का अंदाजा नहीं लगा पाते। इन लोगों के लिए पीएम मोदी ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं, लेकिन हुआ कुछ नहीं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आशुतोष शर्मा

कथित राष्ट्रवाद और पाकिस्तान को धूल चटा देने के नारों के शोर में भारत-पाकिस्तान की सेनाओं के बीच रोजाना हो रही क्रॉस फायरिंग को झेल रहे जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाके के लोगों की व्यथा-कथा सुनने वाला कोई नहीं है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले इन लोगों से जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया। हाल में कुछ घोषणाएं की गई हैं लेकिन एक तो वे काफी देर से हुईं, दूसरे वे ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हैं। हाल यह है कि यहां बीजेपी में रहे लोग भी मोदी सरकार के रवैये से नाराज हैं।

यहां का हाल इस तरह समझने की जरूरत है। सैद्धांतिक तौर पर 2003 से भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम लागू है। लेकिन यह बस, कागजों पर ही है। मुंबई आतंकी हमले के बाद संघर्ष विराम का उल्लंघन लगातार बढ़ता ही गया है। अभी पिछले साल 2018 में पाकिस्तान ने 2,936 बार इसका उल्लंघन किया। औसतन रोजाना आठ बार। यह पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा बार है। इनमें 61 लोग मारे गए और 250 से ज्यादा लोग घायल हुए। पुलवामा कांड के बाद उल्लंघन की गति बढ़ गई है।

ऐसे में, सीमा पर रहने वाले लोगों की दहशत समझी जा सकती है। दो बार सांसद और महबूबा मुफ्ती सरकार में बीजेपी से मंत्री रहे नेता चौधरी लाल सिंह का कहना है कि पिछले वर्षों में सीमा पर रहने वाले आम लोगों की हालत खतरनाक ढंग से बिगड़ी है। सिंह कहते हैं कि आप सीमाई इलाके का एक बार दौरा करके देख लो। आपको कई ऐसे लोग मिलेंगे जिनके हाथ या पांव विस्फोटों में उड़ चुके हैं। कई ऐसे लोग हैं जिनके शरीर में बुलेट या छर्रे घुसे हुए हैं। हर साल कम-से-कम तीन बार सीमाई इलाके के लोगों को गोलियों और बमों से बचने के लिए पलायन करना पड़ता है। कोई सोच भी नहीं सकता कि इन सबसे आर्थिक रूप से उन्हें क्या झेलना पड़ता है। उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा तो जब-तब रुक ही जाती है।

एक परिवार का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं, “इस परिवार के पास खेती के लिए बैलों का एक जोड़ा था। पिछले साल गोलाबारी में वे मारे गए। उनके पास एक गाय थी। वह रोजाना करीब 12 लीटर दूध देती थी। इससे उनके घर का खर्चा-पानी चलता था। अभी इस साल वह भी मर गई। न तो सरकार, न कोई और, ऐसे लोगों की वित्तीय मदद करता है। प्रशासन रेडक्रॉस से इस तरह के लोगों की मदद के लिए कहती है। हर कोई जानता है कि रेडक्रॉस कितनी मदद करती है- 500 से लेकर 1000 रुपये तक। यह क्या बकवास है?”

2014 लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने शांति क्षेत्रों के सीमाई इलाके में रहने वाले लोगों के हर परिवार को 5 मार्ला प्लॉट्स (करीब 272 वर्गफीट) देने का वादा किया था। लेकिन बाद में ऐसा करने से मना कर दिया कि सुरक्षाबल इस विचार से सहमत नहीं हैं। पिछली सरकारों के आश्वासन के बावजूद अधिकांश गांवों में बंकर अब भी नहीं हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि जो बंकर हैं भी, उनमें या कूड़ा-कचरा भरा है या फिर उपयोग किए जाने लायक नहीं हैं।

सीमाई लोगों के लिए टाउनशिप और फ्लैट्स वगैरह तक के वादे कर दिए गए थे। अब चैधरी लाल सिंह कहते हैं, “पिछली सरकारें सीमाई लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकीं। अगर हम सीमाई इलाके के लोगों के समर्थन से सत्ता में आए, तो सबका पुनर्वास करेंगे। वे टाउनशिप में स्थायी रूप से रहेंगे। उनके बच्चे बिना रुकावट पढ़-लिख सकेंगे। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग फ्लैटों में सुरक्षित महसूस करेंगे और उन्हें सभी बेसिक सुविधाएं मिलेंगी।”

पुंछ जिले में में धर से विधायक रहे नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता जावेद राणा भी कहते हैं कि पुंछ जिला ‘वार जोन’ में बदल गया है। वहां लोग मारे जा रहे हैं, घायल हो रहे हैं। हमें पहले से लग रहा था कि नरेंद्र मोदी चुनावों से पहले इस तरह का वातावरण तैयार करेंगे।

बंकर बनाने की नई घोषणा

हाल में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश को मंजूरी दी है। इससे नियंत्रण रेखा (एलओसी) के इलाकों में रह रहे लोगों की तरह अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) के पास रह रहे लोगों को भी सुविधा मिलेगी। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ऐसा करने की वजह यह है कि एलओसी की तरह अतंरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वाले लोगों का जीवन भी उसी तरह अशांत रहता है।

कठुआ जिले के हीरानगर में सीमाई गांव-बोबियां के सरपंच और सीमाई वेलफेयर कमेटी के उपाध्यक्ष भारत भूषण शर्मा इसे देर से दी गई छोटी-सी सुविधा कहते हैं। वह साफ कहते हैं कि युद्धविराम उल्लंघन के पहले शिकार होने वाले सीमाई इलाके के लोगों को राहत उपलब्ध कराने से अधिक यह बीजेपी की वोट बैंक पॉलिटिक्स है। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने इसके लिए पिछले दिनों भूख हड़ताल की थी और सीमा के दो किलोमीटर दायरे में रह रहे लोगों के लिए दस फीसदी आरक्षण की मांग की थी, लेकिन सरकार ने छह फीसदी की बात कही है। जिन लोगों को यह छोटी-सी सुविधा दी गई है, उनमें से अधिकांश किसान हैं जिनके पास जमीन का अधिकार नहीं है। पिछले दशकों के दौरान बढ़ते सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण इनकी खेती की जमीन छिन गई है।

पूर्व बीजेपी सांसद लाल सिंह को भी शिकायत है कि जब पाकिस्तान ने जीरो लाईन पर फेन्सिंग कर ली है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब वह सांसद थे, उस वक्त जीरो लाइन पर फेन्सिंग का काम शुरू हो गया था। लेकिन बाद में यह काम रुक गया। वह कहते हैं, “पिछली बार मोदी लहर की वजह से सीमाई इलाके के लोगों ने बीजेपी को वोट दिए थे लेकिन उन्हें सरकार से क्या हासिल हुआ? सीमाई इलाके के युवाओं को रोजगार देने का कोई अभियान नहीं चलाया गया। कोई नौकरी नहीं मिली, कुछ भी नहीं हुआ!”

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