विजय दिवस: पश्चिमी मोर्चे पर भी लिखी गई थी शौर्य की अमिट गाथा, केवल 13 दिनों के युद्ध में ही टूट गया था पाकिस्तान

भारत में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के बाद बांग्लादेश एक नए राष्ट्र के रूप में सामने आया था। वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान 16 दिसंबर को ही भारत ने पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

विजय दिवस, यानी 16 दिसंबर का दिन हमारे लिए खास है। इसी दिन पाकिस्तान सेना ने 13 दिन चले ऑपरेशन के बाद भारत के सामने हथियार डाले थे। मोहम्मद अली जिन्ना का धर्म-आधारित द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत चारों खाने चित पड़ा था और विश्व पटल पर एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ था।

इस ऐतिहासिक घटना के लगभग दो दशक बाद1992 में लिखी गई इंदिरा गांधी की जीवनी की इन पंक्तियों पर गौर करें: “26 जनवरी, 1972 को गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राष्ट्रपति की अगवानी करने खुली जीप में राजपथ पर आगे बढ़ीं। विजेता प्रधानमंत्री का अभिवादन करने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा था।... पीली सर्दियों की उस सुबह एक ऐसी महिला की छवि उभरी जो अडिग इरादे की ललकार के साथ अकेली खड़ी रही थी। उसने पाकिस्तान के खिलाफ जीत हासिल की थी। उसने अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके तेज-तर्रार सहयोगी हेनरी किसिंजर को चुनौती दी थी। उन्हें उलझाए रखा और उनसे बेहतर चाल चलकर बाजी अपने नामकी थी।” वह देश की पहली और अकेली महिला प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने भारत के इतिहास के सबसे शानदार सैन्य विजय का नेतृत्व किया।”

कोई भी युद्ध प्रेरणा देने वाले राजनीतिक नेतृत्व, एक उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्वऔर दुश्मनों से लोहा लेने वाले सैनिकों की साहस और वीरता के बिना नहीं जीता जाता। इस संदर्भ में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बेहतरीन नेतृत्व को अक्सर याद किया जाता है लेकिन इस युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा और वायु सेना प्रमुख एयर चीफमार्शल पीसी लाल को शायद ही कोई याद करता है, यहां तक कि सैन्य इतिहासकार और पूर्व सैनिक भी नहीं। इसी तरह, पूर्वी सीमाओं पर लड़े गए उस युद्ध को बांग्लादेश की मुक्ति की उपलब्धि के रूप में तो याद किया जाता है लेकिन पश्चिमी मोर्चे की मुश्किल लड़ाई को काफी हद तक नजर अंदाज ही कर दिया जाता है। पश्चिम में जिस वीरता के साथ हमारे सैनिकों ने लड़ाई लड़ी, उसकी ओर हमारा ध्यान लोकप्रिय फिल्म बॉर्डर के कारण जा पाता है।

1971 के युद्ध में चार परमवीर चक्र दिए गए- मेजर होशियार सिंह (3 ग्रेनेडियर्स), फ्लाइंग ऑफीसर निर्मलजीत सिंह सेखों, सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतपाल (17 हॉर्स) और लांस नायक एनके अल्बर्ट इक्का (14 गार्ड्स)। अल्बर्ट इक्का को छोड़कर तीनों पश्चिमी मोर्चे पर तैनात थे। लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा पूर्वी कमान के इंचार्ज थे जिनके सामने पाकिस्तान की सेना ने समर्पण किया था और अनुभवी ले. जनरल केपी कैंडेथ पश्चिमी कमान के प्रमुख थे। तब कोई उत्तरी कमान नहीं थी और जम्मू-कश्मीर से पंजाब और उत्तरी राजस्थान तक फैला हुआ विशाल क्षेत्र कैंडेथ की देखरेख में था। दक्षिण में गुजरात के कच्छ के रण से लेकर राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर से लगती सीमा दक्षिणी कमान, लेफ्टिनेंट जनरल जीजी बेवूर की जिम्मेदारी थी।


पाकिस्तान की सेना की ओर से पंजाब और राजस्थान में हमले का अनुमान था लेकिन पूर्वी मोर्चे को देखते हुए सरकार ने आक्रामक रक्षात्मक रणनीति अपनाई। पूर्वी मोर्चे पर बड़ी संख्या में तैनाती का नतीजा यह हुआ कि पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान के साथ हमारी बराबरी की लड़ाई हो गई। अपने विशाल क्षेत्र की सुरक्षा के लिए पश्चिमी कमान के पास पैदल सेना का 11 डिवीजन और एक बख्तरबंद डिवीजन था जबकि दक्षिणी कमान में तो केवल दो पैदल सेना डिवीजन, एक तोपखाना ब्रिगेड और बख्तरबंद गाड़ियों के दो डिवीजन थे। 1965 के युद्ध में थल सेना उपप्रमुख रह चुके कैंडेथ को अंदाजा था कि पाकिस्तान की सेना मौके का फायदा उठाते हुए इन इलाकों से हमला करेगी। अगर याहया खान ने 26 से पहले इस ओर आक्रमण किया होता तो भारत को करारा झटका लगता। लेकिन पाकिस्तान ने 3 दिसंबर को जब नौ भारतीय एयरबेसों पर हमला किया, काफी देर हो चुकी थी। एयर चीफमार्शल पीसी लाल की सूझबूझ के कारण पाकिस्तान हमारे एक भी विमान को निशाना नहीं बना सका। लेकिन इससे भारत को पूर्वी पाकिस्तान की सीमा में घुसने का बहाना मिल गया जिसका वह इंतजार ही कर रहा था।

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पूर्व के मोर्चे पर हमारी रणनीति बड़ी सुनियोजित थी। लेकिन पश्चिम में हमारा ऑपरेशन चंद हमलों को छोड़कर रक्षात्मक ही था। पश्चिमी कमान और दक्षिणी कमान के अंतर्गत होने वाली सबसे खूनी लड़ाई में कई बख्तरबंद रेजिमेंटों, पैदल सेना बटालियनों और अन्य इकाइयों/संरचनाओं ने वीरता का बेजोड़ प्रदर्शन किया। इनमें से कुछ का जिक्र सर्वथा उचित होगा। छंब की लड़ाई में 9 हॉर्स ने तवी नदी के किनारे दुश्मन के 34 टैंकों को नष्टकर दिया। बसंतर की लड़ाई में शकरगढ़ सेक्टर में दुश्मन के 46 टैंकों को नष्ट करने के लिए पूणा हॉर्स के सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्रऔर उनके कमांडिंग ऑफीसर लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह को महावीर चक्रमिला।

इसी क्षेत्र में 16 बख्तरबंद ब्रिगेड के ब्रिगेडियर एएस वैद्य जिन्होंने 1965 के युद्ध में महावीर चक्र जीता था, ने पाकिस्तानी बख्तरबंद ब्रिगेड के खिलाफ वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए अपना दूसरा महावीर चक्र जीता। लोंगोवाल की लड़ाई जिसमें भारतीय वायुसेना ने निर्णायक भूमिका निभाई थी, इंजीनियर रेजिमेंट ने बारूदी सुरंग हटाकर सेना के लिए रास्ता साफ करने के दौरान अपने सात अधिकारियों को खो दिया। अपने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ टैंकों से लैस बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते हुए अपनी चौकी को सुरक्षित रखने के लिए कंपनी कमांडर मेजर कुलदीप सिंह चंदपुरी ने महावीर चक्र जीता। कारगिल के युद्ध के दौरान भारत ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान द्वारा कब्जा ली गई तमाम चौकियों को फिर से अपने नियंत्रण में कर लिया जिससे आज भी कारगिल में भारत को रणनीतिक बढ़त मिलती है। वैसे तो 1965 के युद्ध में भी वायुसेना का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया था लेकिन 1971 का युद्ध ऐसा पहला मुकाबला था जिसमें थल सेना, वायु सेना और नौसेना- तीनों का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया गया और जिसके नतीजे पाकिस्तान के लिए विनाशकारी हुए।


जबकि वायुसेना ने 1965 के मुकाबले दोगुनी सॉर्टी अकेले पश्चिमी क्षेत्र में की, नौसेना ने कराची बंदरगाह पर बेहद साहस पूर्ण हमला करते हुए अपने लिए तारीफ बटोरी। हालांकि दुश्मन की गोलीबारी में हमें आईएनएस खुखरी को खोना पड़ा लेकिन नौसेना ने पाकिस्तान की पनडुब्बी पीएनएस गाजी को डुबाकर विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत के लिए पूरे बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र को सुरक्षित कर दिया। एनएस सेखों ने वायुसेना के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र जीता। यह वायुसेना का एकमात्र परमवीर चक्र था। सेखों ने अपने सिंगल इंजन वाले जीनैट विमान से पाकिस्तान वायुसेना के छह विमानों के साथ हुई डॉग फाइट में दो विमानों को मार गिराया और उसके बाद उनका विमान भी दुश्मन के हमला का निशाना बन गया और वह शहीद हो गए।

पाकिस्तानी सेना के समर्पण के बाद याहया खान ने ऐलान किया था कि भारत से जंग जारी रहेगी लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ऐसा कोई इरादा नहीं था। बांग्लादेश को आजाद कराने का काम पूरा हो चुका था और पश्चिमी सीमाओं पर युद्ध के जारी रहने से जान- माल का और नुकसान होता। इसलिए उन्होंने कूटनीतिक सूझबूझ दिखाते हुए 17 दिसंबर को संसद में घोषणा की कि भारतीय सेनाओं को रात 8 बजे से लड़ाई रोक देने का निर्देश दिया गया है। कुछ लोग कहते हैं कि इंदिरा ने यह फैसला बाहरी दबाव में किया। लेकिन सैम मानेकशॉ कहते हैं, “मैं कतई यकीन नहीं कर सकता कि इंदिरा गांधी पर कोई भी देश दबाव डाल सकता था।” युद्ध में बेहतरीन नेतृत्व के लिए 1972 के गणतंत्र दिवस पर मानेकशॉ को पहले फील्ड मार्शल के रूप में तरक्की देते हुए पद्म विभूषण से भी नवाजा गया और इंदिरा गांधी को भारत रत्न से। भारत और इंदिरा के लिए वह सर्वाधिक गौरव का अवसर था।

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