पुणे में दलितों पर हमले के बाद मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई हिस्सों में हिंसा, दलित संगठनों ने महाराष्ट्र बंद का किया ऐलान 

महाराष्ट्र के शिरुर तहसील में दलित समुदाय के लोगों के साथ हुई हिंसा की आग अब राज्य के अन्य हिस्सों में पहुंच गई है। इसके खिलाफ दलित समूहों ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

पुणे जिले में भीमा-कोरेगांव की ऐतिहासिक लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर 1 जनवरी को कुछ दलित समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा की आग अब महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में पहुंचने लगी है। 1 जनवरी को हिंसा के बाद 2 जनवरी की सुबह कई दलित समूहों ने मुंबई में ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे को पूरी तरह ठप्प कर दिया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर कुछ असामाजिक तत्वों की तरफ से हुई पत्थरबाजी के बाद स्थिति और गंभीर हो गई। स्थिति बिगड़ते देख पुलिस ने करीब 100 लोगों को हिरासत में ले लिया है। हिंसा और तोड़फोड़ की वजह से मुंबई में कई रूटों पर रेल सेवाएं बाधित हो गई थीं। बाद में सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के बाद इन सेवाओं को फिर से शुरू कर दिया गया।

1 जनवरी को हुई हिंसा से नाराज एक प्रदर्शनकारी ने इस दौरान खुद को आग लगाने की भी कोशिश की। हालांकि उसे समय रहते बचा लिया गया। इसके अलावा मुंबई में कई अन्य जगहों पर भी दलित और मराठा समूहों में झड़प की खबर है। स्थिति को देखते हुए मुंबई में कई स्थानों पर धारा 144 लागू किए जाने की खबर है। 2 जनवरी को जगह-जगह हुए दलितों के विरोध प्रदर्शन पर असामाजिक तत्वों के हमलों के विरोध में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया है।

हालत की गंभीरता को देखते हुए मुंबई पुलिस पूरी सतर्कता बरत रही है। मुंबई पुलिस ने लोगों से अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील की है। पुलिस ने ट्विटर के जरिये लोगों से अपील की, "अफवाहों पर यकीन न करें। ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर प्रदर्शनकारियों की वजह से ट्रैफिक प्रभावित हुआ था, अब वह चल रहा है। चेम्बूर नाके पर यातायात अभी भी प्रभावित है, घबराने की कोई बात नहीं है।“ पुलिस ने लोगों को सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले पुलिस से सच्चाई की पुष्टि करने के लिए कहा है।

इस पूरे मामले पर महाराष्ट्र के मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कोरेगांव हिंसा की न्यायिक जांच की बात कही है। फड़णवीस ने कहा कि युवाओं की मौत के मामले की सीआईडी जांच होगी। उन्होंने हिंसा में मारे गए मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की भी बात कही है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा है कि आरएसएस-बीजेपी के फासीवादी विचार वाले भारत का एक मुख्य आधार यह है कि दलित हमेशा भारतीय समाज में नीचे रहें। राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि उना, रोहित वेमुला और अब भीमा-कोरेगांव विरोध के अहम प्रतीक हैं।

क्या है पूरा मामला

1 जनवरी की दोपहर दलितों का एक समूह पुणे के पास भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने जा रहा था। रास्ते में कुछ लोगों द्वारा उन पर हमला कर उनके वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। पुलिस के अनुसार, दलित समूह के लोग जब गांव में युद्ध स्मारक की ओर बढ़ रहे थे तो शिरूर तहसील स्थित भीमा कोरेगांव में पथराव और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। पुलिस ने बताया कि यह हिंसा तब शुरू हुई जब स्थानीय लोगों के एक समूह और भीड़ के बीच स्मारक की ओर जाने वाले रास्ते पर किसी बात को लेकर बहस हो गई। दोनों गुटों में जमकर हुई हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई और इस दौरान 40 से अधिक वाहनों में तोड़फोड़ की गई और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया।

क्या है भीमा-कोरेगांव की लड़ाई?

200 साल पहले 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी और तथाकथित सवर्ण पेशवा सैनिकों के बीच भीमा-कोरेगांव युद्ध हुआ था, जिसमें पेशवाओं की बड़ी हार हुई थी। बताया जाता है कि अंग्रेजों की सेना में बड़ी तादाद में दलित सैनिक थे, जिनसे पेशवाओं की हार हुई थी। तब अछूत माने जाने वाले महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़े थे। महाराष्ट्र में दलित समुदाय के नेता अंग्रेजों की इसी जीत की वर्षगांठ को 'विजय दिवस' के रूप में मनाते हैं। हालांकि, कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने इस जीत का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था।

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Published: 02 Jan 2018, 6:40 PM