पश्चिमी यूपी में किसानों का गुस्सा उबाल पर, बोले- 2019 में बीजेपी को नहीं घुसने देंगे दिल्ली में

पश्चिमी यूपी के गन्ना किसानों में मोदी सरकार को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। हजारों किसानों ने ऐलान किया कि बीते दिनों पदयात्रा के दौरान किसानों का जिस तरह स्वागत किया गया, अब 2019 के चुनाव में किसान भी सत्ताधारी नेताओं का उसी तरह स्वागत करेंगे।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

मुजफ्फरनगर से 30 किलोमीटर दूर सिसौली के पास भौराकलां गांव में रविवार को हजारों किसान एक बार फिर इकट्ठा हुए। इन सभी किसानों के अंदर मोदी सरकार के खिलाफ भारी नाराजगी थी। बैठक में लगभग हर वक्ता ने सरकार को कोसा और उसे धोखेबाज बताया।

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक ने कहा कि 2 अक्टूबर को पदयात्रा के दौरान किसानों की पुलिस के साथ टकराव से बचने के लिए किसानों को वहां से लौटना पड़ा था। लेकिन सरकार ने किसानों की दो सबसे अहम मांगें नहीं मानीं। धर्मेन्द्र मलिक ने कहा, “बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में जो वादे किये थे, वे सब झूठे निकले, किसानों को छला गया है। सरकार की सहानभूति मिल मालिकों के साथ है।” उन्होंने कहा कि उनके लिए किसान हित सर्वोपरि है और अब वे नई रणनीति के साथ सरकार को घेरेंगे। इस पंचायत में (बीकेयू) के राष्ट्रीय महासचिव राकेश टिकैत भी मोजूद थे। उन्होंने कहा कि पदयात्रा के दौरान जिस तरह किसानों का पानी की बौछार के साथ स्वागत किया गया था, किसान भी अब 2019 के चुनाव में सत्ताधारी नेताओं का उसी अंदाज में स्वागत करेंगे।

इस पंचायत का आयोजन बीकेयू ने किया था। बीकेयू ने 23 सितंबर से 2 अक्टूबर तक एक पदयात्रा का आयोजन किया था, जिसमें हजारों किसानों ने दिल कूच में हिस्सा लिया था, लेकिन दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही किसानों पर लाठी और पानी की बौछारें कर उन्हें रोक दिया गया था। बाद में केंद्र सरकार से वार्ता के बाद अचानक इस यात्रा के समापन की घोषणा कर दी गई थी। बता दें कि भौराकलां गांव वही जगह है जहां किसानों के बड़े नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत पैदा हुए। और यहीं भारतीय किसान यूनियन का जन्म हुआ और इलाके के किसान इसे ही अपनी राजधानी मानते हैं।

रविवार को ही यहां से 40 किमी दूर मीरापुर विधानसभा के भोपा गांव में भी सुबह 11 बजे लगभग एक हजार किसान इकट्ठा हुए। इनका मुख्य मुद्दा गन्ने के बकाये के भुगतान का था। पंचायत में शामिल किसान नेता मनोज बालियान ने कहा कि किसान अब 2019 के चुनाव में सरकार के खिलाफ जनादेश देगा क्योंकि उनके सभी वादे झूठे साबित हुए हैं।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
फोटोः आस मोहम्मद कैफ

गौरतलब है पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में गन्ने का विशेष महत्व है और यहां की अर्थव्यवस्था का आधे से अधिक हिस्सा गन्ने पर निर्भर करता है। गन्ने की ताकत को कैराना उपचुनाव में देखा जा चुका है। गन्ने का भुगतान यहां हमेशा से समस्या रहा है और इसके लिए संघर्ष कर अतीत में कई किसान बड़े नेता बन गए हैं। इस बार सरकार ने 14 दिन में गन्ने के बकाये के भुगतान का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शामली के किसान जितेंद्र हुड्डा के मुताबिक गन्ना भुगतान का 11 हज़ार करोड़ रुपया अब तक बकाया है। इसी पैसे में किसी किसान की बेटी की शादी होनी और किसी के स्कूल की फीस जानी है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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मुजफ्फरनगर के किसान राजपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने 10 बीघा जमीन पर खेती की थी और 5 लाख रुपये का गन्ना चीनी मिल को दिया, लेकिन उन्हें सिर्फ सवा लाख रुपये मिला। वे अब भी बाकी पैसों की बाट जोह रहे हैं। राजपाल कहते हैं, “मेरे बच्चों के स्कूल की फीस नहीं जा रही, मजदूर पैसे मांग रहे हैं और बच्चो की दवाई तक उधार आती है। मुझ पर काफी कर्ज हो गया है। परिवार में शर्मिंदगी होती है।” राजपाल जैसे 35 लाख किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं। हाल ही में 25 सितंबर को उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय भुसरेड्डी को हाईकोर्ट ने गन्ना किसानो के भुगतान को लेकर एक अवमानना नोटिस जारी किया था। यह नोटिस किसान नेता वीएम सिंह की याचिका पर जारी किया गया।

चुनाव नजदीक आता देख सरकार ने इसी साल किसानों के कुल बकाये 22 हजार करोड़ रुपये के एवज में 8500 करोड़ रुपये के पेकेज की घोषणा की थी। अब भी पिछला 11 हजार करोड़ रुपये बकाया है और इस साल जनवरी से मई तक किसानों ने जो गन्ना मिलों में दिया, उसका भुगतान भी बाकी है। इस बार भी किसानों का गन्ना तैयार हो चुका है और गांवों में गुड़ निकालने वाले छोटे-छोटे कोल्हू चल रहे हैं। चीनी मिल अभी बंद हैं। किसान जल्द से जल्द मिल खोलवाने की भी मांग कर रहे हैं। क्योंकि देरी से गन्ना सूखने लगता है और उसका वजन कम हो जाता है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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किसानों ने 25 तारीख तक चीनी मिलों को खोलने का अल्टीमेटम देते हुए ऐसा नहीं होने पर गन्ना कलक्टर के दफ्तर को भरने की चेतावनी दी है। खास बात ये है कि इलाके के सभी किसान आपसी मतभेद भुलाकर इन सब मुद्दों पर एक होकर अपनी बात रख रहे हैं। किसान मजदूर मंच के सरदार वीएम सिंह ने नवंबर में 'दिल्ली चलो' अभियान के आगाज की घोषणा की है।

किसान अपनी समस्या को लेकर जगह-जगह एकजुट हो रहे हैं और निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। इसी के तहत बिजनौर, अमरोहा और संभल जिले के कई गांवों में बीजेपी नेताओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। इन जिलों के कई गांवों के बाहर बोर्ड लगा दिया गया है, जिसमें लिखा है, “भाजपाइयों का प्रवेश मना है।” बिजनौर के किसान भी पिछले 40 दिन से धामपुर में लगातार धरने पर हैं। किसानों ने यहां तहसील कार्यालय के अंदर ही अपने पशु बांध दिये हैं।

यहां के किसान अफजलगढ़ के किसानों को उनका मालिकाना हक दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मध्य गंगा परियोजना में बिजनौर, अमरोहा और संभल के किसानों की अधिग्रहित जमीन के मुआवजे को लेकर भी एक लड़ाई लड़ी जा रही है। सितंबर महीने में ही हजारों किसान बिजनौर कलक्ट्रेट में इस मुद्दे पर हुंकार भर चुके हैं।

गौरतलब है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में 100 लाख टन से भी ज्यादा चीनी उत्पादन हुआ था। सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद और मेरठ जैसे जिलों में किसान सिर्फ गन्ना बोते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में देवरिया, गोरखपुर, बस्ती और बाराबंकी में भी गन्ने का अच्छा उत्पादन होता है, इसलिए उत्तर प्रदेश अब देश का नंबर वन चीनी उत्पादक राज्य है। लेकिन प्रदेश के गन्ना किसानों की हालत लगातार खराब होती जा रही है।

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Published: 22 Oct 2018, 4:43 PM