भोपाल में पीएम मोदी को क्यों लोहिया याद रहे और वे ‘जेपी’ का नाम भूल गए ! 

बीजेपी की प्रदेश सरकार की घटती लोकप्रियता और मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते दूर चले गए मतदाताओं को लुभाने के लिए तो कहीं पीएम मोदी ने लोहिया का नाम नहीं लिया? ज्यादा संभावना इसी बात की है।

फोटो: सोशल मीडिया
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रोहित प्रकाश

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा ने एक बार फिर पीएम मोदी को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने भोपाल में दिए गए प्रधानमंत्री के भाषण पर तीखा कटाक्ष किया।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता महाकुंभ में कहा कि सबका साथ सबका विकास केवल चुनावी नारा नहीं है। हम वो लोग है जिन्हें गांधी भी मंजूर हैं, राम मनोहर लोहिया भी मंजूर हैं और दीनदयाल उपाध्याय भी मंजूर हैं क्योंकि हम समन्वय, सामाजिक न्याय और सबका साथ, सबका विकास में विश्वास करते हैं। महात्मा गांधी, दीन दयाल, लोहिया ने देश का मार्गदर्शन किया।

उन्होंने महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया और पंडित उपाध्याय को अपना आदर्श करार दिया।

उनके इसी बयान का हवाला देते हुए यशवंत सिन्हा ने ट्वीट किया, “यह अफसोस की बात है कि आजादी के बाद के बड़े नेताओं की अपनी सूची में प्रधानमंत्री ने जेपी (जयप्रकाश नारायण) को शामिल नहीं किया।”

वैसे यह एक तथ्य है कि पिछले कुछ महीनों में यशवंत सिन्हा अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी और पुराने सहयोगी पीएम मोदी के जबरदस्त आलोचक रहे हैं। कथित राफेल घोटाले में तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर पीएम की सीधी मिलीभगत का आरोप लगाया था। लेकिन पीएम द्वारा जेपी का नाम नहीं लिए जाने पर की गई उनकी टिप्पणी के कई मायने हैं।

महात्मा गांधी और दीन दयाल उपाध्याय का नाम तो पीएम मोदी अक्सर अपने भाषणों में लेते हैं, लेकिन लोहिया का नाम उन्होंने शायद ही पहले कभी लिया हो। गौरतलब है कि राम मनोहर लोहिया देश में समाजवादी आंदोलन के बड़े नेता थे। उसके साथ-साथ उनकी एक और पहचान तथाकथित पिछड़ी जाति के नेता के तौर पर भी रही है। एक तरह से उन्हें पिछड़ों के आंदोलन का शुरुआती नायक भी माना जाता है।

इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी का अपने भाषण में लोहिया का नाम लेना किसी चुनावी रणनीति का हिस्सा हो। सीएसडीएस के अध्ययन के आंकड़ों को आधार बनाकर ‘द क्विंट’ में छपी एक खबर कहती है कि मध्य प्रदेश में तकरीबन 65 फीसदी उच्च और ओबीसी जातियों के वोट हैं जिसका एक बड़ा हिस्सा पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी को मिलता रहा है।

यहां सवाल यह उठता है कि बीजेपी की प्रदेश सरकार की घटती लोकप्रियता और मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते दूर चले गए मतदाताओं को लुभाने के लिए तो कहीं पीएम मोदी ने लोहिया का नाम नहीं लिया? ज्यादा संभावना इसी बात की है कि इसका जवाब ‘हां’ में होगा। तो इसका मतलब यह हुआ कि मध्य प्रदेश में बीजेपी अपनी फिसलती जमीन देखकर घबराहट महसूस कर रही है और चुनाव के लिए लोहिया जैसे राजनीतिक विरोधियों को भी अपना आदर्श करार दे रही है।

लेकिन यशवंत सिन्हा ने जेपी का नाम न लिए जाने को लेकर सवाल उठाया है। जेपी सत्ता से सवाल पूछने के लिए विख्यात थे और शायद पीएम मोदी को सबसे ज्यादा डर सवाल पूछे जाने से लगता है...

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