महिलाओं ने इस बार के चुनावों में बीजेपी को दिखाया आईना

यह बात तो यह थी कि बीजेपी ने पिछले कई वादों को पूरा नहीं किया था, यह भी एक मुद्दा रहा कि बीजेपी जो नए वादे कर रही थी, उनमें नया कुछ नहीं था और वह सिर्फ नया मुलम्मा चढ़ा रही थी।

फोटो: Getty Images
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नवजीवन डेस्क

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी सरकारों को सत्ता-विरोधी लहर से ऐसे ही नहीं जूझना पड़ा है। यह बात तो थी ही कि उन्होंने पिछले कई वादों को पूरा नहीं किया था, यह भी एक मुद्दा रहा कि बीजेपी जो नए वादे कर रही थी, उनमें नया कुछ नहीं था और वह सिर्फ नया मुलम्मा चढ़ा रही थी। एक और खास बात यह रही कि कई ऐसी योजनाएं ऐसी निकलीं जो पिछले चुनावों में कई राज्यों में तो बीजेपी को वोट दिला गईं, लेकिन समय बीतने के साथ उनकी कलई खुलती गई और इन राज्यों में बीजेपी नेताओं को जवाब देते नहीं बना। ये योजनाएं आधी आबादी को अपने पाले में लाने के लिए शुरू की गई थीं, लेकिन अंततः विफल रहीं।

अब जैसे उज्ज्वला योजना को ही लें। उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने इसके भरोसे ही वोटों की बड़ी फसल काट ली थी। लोगों, खासकर बड़ी ग्रामीण आबादी को लगा था कि इससे उनके घरों में भी रसोई गैस के सिलेंडर पहुंच गए। बाद में उन्हें लगा कि यह तो सरकार ने उन पर एक किस्म से बोझ ही लाद दिया है। एक तो यह हुआ कि आरंभिक रूप से तो उन्होंने थोड़ा-बहुत खर्च कर चूल्हा वगैरह खरीद लिया और कुछ पैसे हर माह चुकाने लगे। लेकिन सिलेंडर के लिए हर बार एकमुश्त करीब एक हजार रुपये तक चुकाना उनके सामर्थ्य के बाहर था। इन पर मिलने वाली सब्सिडी की रकम सिलेंडर खरीदने के बाद उनके बैंक खाते में पहुंच रही थे। तब ही तो सागर की एक बस्ती में रह रही कल्याणी ने कहा कि सरकार को भले लगता हो कि हमारे पास इतने पैसे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इतने पैसे अपने पास होते तो हम भी बड़े आदमी की तरह नहीं रहते?

जनधन योजना का भी यही हाल रहा। इसने वैसे कामकाजी लोगों को काफी आकर्षित किया था जिनकी आय कम रही है। आपको याद हो तो बैंकों में लंबी-लंबी लाइन लगाकर लोगों, खास तौर से महिलाओं, ने इस योजना के तहत अपने बैंक खाते खोले थे। इस योजना में बीमा उनके लिए आकर्षण का सबसे बड़ा कारण था। लेकिन यह योजना बुरी तरह फ्लाॅप रही। आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर हमने पहले भी बताया था कि करोड़ों खाते लोगों ने बंद करवा दिए और जो बचे भी हैं, उनमें 37.36 फीसदी खाते नाॅन आॅपरेशनल या नाॅन ट्रांजेक्शनल हैं। तब ही तो बिलासपुर की मालती देवी ने भी कहा कि जनधन योजना के नाम पर उन्हें सरकार ने बेवकूफ ही बना दिया।

महिलाओं का एक गुस्सा यह भी रहा कि नोटबंदी के दौरान उन्हें वैसे पैसे भी निकालने पड़ गए जो उन्होंने मुसीबत के समय के लिए बचाकर रखे थे। उदयपुर की इंद्राणी ने कहा कि नोटबंदी के जो फायदे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताए थे, उनमें से कोई तो पूरे हुए नहीं। उलटे हमें तब लंबी-लंबी लाइन में लगकर परेशानी झेलनी पड़ी। वह घरों में कामकाज कर अपना परिवार चलाती हैं। वह याद करती हैं कि नोटबंदी के दिनों में उन्हें अपनी पगार के लिए कितनी मुसीबतों का सामना कना पड़ा था। वह बताती हैं कि जिनके यहां वह काम करती हैं, वे पूछते थे कि चेक से पैसे दूं तो क्या वह लेंगी। वह कहती हैं कि हमलोग बड़े लोगों की तरह रोज थोड़े ही बैंक जाते हैं।

ये तो वे बातें हैं जिनका व्यापक असर सभी राज्यों में बीजेपी के खिलाफ हुआ। दूसरी ओर, बीजेपी ने इस बार संकल्प पत्र वगैरह के नाम से जो घोषणा पत्र जारी किए, उनका असर इसलिए अधिक नहीं हुआ कि लोगों को लगा कि अधिकांश बातें पुरानी हैं; और जो किसी तरह नई हैं, उन पर इसलिए भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि पहले के वादे ही पूरे नहीं हुए हैं। अब जैसे, बीजेपी ने इस बार मध्य प्रदेश में समृद्ध मप्र दृष्टि पत्र और नारी शक्ति संकल्प पत्र जारी किए। समृद्ध मप्र दृष्टि पत्र में कुल 511 घोषणाएं और नारी शक्ति संकल्प पत्र में 50 घोषणाएं की गईं। सबसे ज्यादा 101 घोषणाएं किसानों के लिए की गई। लेकिन लोगों को अंदाजा था कि किसानों के लिए शिवराज सरकार ने कितना काम किया है। आखिर, किसानों पर चली पुलिस की गोलियों को लोग अब तक भूले नहीं हैं।

इसी तरह राजस्थान में जारी बीजेपी के गौरव संकल्प पत्र में 15 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा किया गया। स्वाभाविक ही, लोगों ने यह सवाल पूछना शुरू कर दिया कि वसुंधरा राजे सरकार ने पिछले पांच साल के दौरान कितने लोगों को रोजगार दिए। घोषणा पत्र में हिंदुत्व का एजेंडा भी साफ दिखा। माॅब लिंचिंग के लिए कुख्यात हो चुके मेवात क्षेत्र में गोरक्षा के लिए चौकियां बनाने, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने, एक लाख बुजुर्गों को निःशुल्क धार्मिक यात्रा कराने और वैदिक स्ट्डीज सेंटर खोलने और परशुराम बोर्ड गठित करने जैसी बातें कही गईं। योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह हनुमान को दलित बनाया, वह दरअसल हिंदुत्व के नाम पर दलितों को भरमाने की कोशिश ही मानी गई। यही नहीं, उनका प्रभाव घोषणा पत्र में भी साफ नजर आया। इसमें एक रोचक वादा यह भी कर दिया गया कि अनैतिक, बुरे या गलत कामों के लिए ‘गोरखधंधा’ शब्द को प्रतिबंधित किया जाएगा। इसके लिए कानून लाया जाएगा और इस्तेमाल पर सजा का प्रावधान भी किया जाएगा। लेकिन इसका प्रभाव लोगों पर पड़ता तो नहीं दिखा।

(भोपाल से रुकमणि सिंह, जयपुर से अंकित छावड़ा और रायपुर से प्रमोद अग्रवाल के इनपुट के साथ)

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