कोरोना: इस महिला प्रधानमंत्री के आगे ट्रंप और मोदी जैसे नेता फेल! सूझबूझ से देशवासियों को तबाही से बचा लिया

39 साल की न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने सूझबूझ और योग्यता के मामले में दुनिया के धुरंधर नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है। कोरोना से जंग में जेसिंडा ने वो कर दिखाया जो अच्छे अच्छे नहीं कर पाए।

फोटो: सोशल मीडिया    
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नवजीवन डेस्क

एक और जब पूरी दुनिया कोरोना के खौफ से सहमी हुई है, वहीं दूसरी ओर एक देश का प्रधानमंत्री ऐसा भी है जिसने अपने देश के लोगों को इस परेशानी से पूरी तरह निकाल दिया है। 39 साल की इस महिला प्रधानमंत्री ने वो कर दिखाया है जो अच्छे-अच्छे नहीं कर सके। हम बात कर रहे हैं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की। 39 साल की जेसिंडा ने सूझबूझ और योग्यता के मामले में दुनिया के धुरंधर नेताओं को भी पीछे छोड़ दिया है।

न्यूजीलैंड की पीएम ने देशवासियों को कोरोना की तबाही से बचा लिया!

दरअसल, प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने अपने देश के नागरिकों को कोरोना की लहर से बचा लिया है। यही वजह है कि इस देश में अब लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। जेसिंडा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लॉकडाउन में ढील देने के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अब कोरोना अलर्ट लेबल -4 के कठोर प्रतिबंध 27 अप्रैल से हटा लिये जाएंगे। इसके आगे अलर्ट लेबल -3 जारी रहेगा। इसका मतलब हुआ कि न्यूजीलैंड में स्कूल खुल जाएंगे। उत्पादन और वानिकी से जुड़े उद्योग- धंधे शुरू हो जाएंगे। सड़क और भवन निर्माण का काम शुरु हो जाएगा। रेस्तरां खुल जाएंगे लेकिन कोई खाना पैक करा कर घर ले जा सकता है। शादी या अंतिम संस्कार में अधिकतम 10 लोग जमा हो सकते हैं।

पीएम जेसिंडा ने कहा कि इस ढील की कैबिनेट समीक्षा करेगी इसके बाद आगे फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि फिजिकल डिस्टेंसिंग का हर हाल में पालन करना होगा। हमने अभी तक जो सफलता पायी है वह फिजिकल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन की वजह से मिली है। इस देश में अभी तक कोरोना से मात्र 12 मौत ही हुई है। संक्रमितों की संख्या भी 1105 है। नये मामलों की दर एक फीसदी से भी कम है। इसलिए यहां लॉकडाउन में ढील दी जा रही है।


न्यूजीलैंड में कंट्रोल में कोरोना

आपको बता दें, न्यूजीलैंड में लॉकडाउन के कठोर प्रतिबंध (लेबल-4) 26 मार्च को लागू किये गये थे। उस समय वहां कोरोना संक्रमितों की संख्या केवल 363 थी। जबकि भारत में 23 मार्च को लॉकडाउन लागू किया गया था। तब भारत में कोरोना के करीब 500 मरीज थे। अब 20 अप्रैल को दोनों ही देशों के लॉकडाउन में ढील दी गयी है। लेकिन हालात बिल्कुल अलग-अलग हैं। भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या 540 के पार पहुंच गयी है जब कि न्यूजीलैंड में यह आंकड़ा केवल 12 है। न्यूजीलैंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1105 है तो भारत में इनकी तादाद 17 हजार के पार पहुंच गयी है। भारत और न्यूजीलैंड में लगभग एक समय और एक ही परिस्थिति में ल़ॉकडाउन लागू किया गया था।

पीएम जेसिंडा ने सूझबूझ से लिया फैसला

जब चीन में कोरोना ने मौत का तांडव शुरू किया था तब जेसिंडा ने ही सबसे पहले उसके संकट को पहचाना था। न्यूजीलैंड ने 22 जनवरी से ही कोरोना की जांच शुरू कर दी थी। जबकि जनवरी में भारत, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे आधिकांश देश आराम की मुद्रा में थे। इन देशों में सघन जांच की व्यवस्था लागू नहीं हो पायी थी। 22 जनवरी को तो अमेरिका में कोरोना का पहला मरीज सामने आ गया था लेकिन ट्रंप ने लॉकडाउन की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। 28 फरवरी को इंग्लैंड में कोरोना के तीन केस मिल चुके थे। फिर भी बोरिस जॉनसन सतर्क नहीं हुए।

अमेरिका- इंग्लैंड साधन और वैज्ञानिक शोध के मामले में न्यूजीलैंड से बहुत आगे थे। फिर भी ट्रंप और जॉनसन समय पर सख्त फैसला न ले सके। भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी को मिला था। भारत जैसे बड़े देश में जांच की प्रक्रिया बहुत धीमी रही। इसलिए कोरोना संक्रमण की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल पाया। भारत में कोरोना का संक्रमण विदेश से आये लोगों से फैला। यहां क्वारेंटाइन और फिजिकल डिस्टेंसिंग का सही अनुपालन नहीं होने से मामला बिगड़ गया। जब कि न्यूजीलैंड में प्रधानमंत्री जेसिंडा की अपील के बाद लोगों ने ईमानदारी के साथ सोशल डिस्टेंसिंग और सेल्फ आइसोलेशन का पालन किया।


पहले पॉजिटिव केस से ही बरती थी सतर्कता

जब न्यूजीलैंड ने जनवरी में जांच शुरू की थी तब कोई संक्रिमत नहीं मिला था। इसके बाद भी जांच प्रक्रिया शिथिल नहीं की गयी थी। कोरोना का मरीज मिले या नहीं मिले, जांच जारी रही। यह सावधानी काम आयी। एक महीने दो दिन के बाद यानी 26 फरवरी को न्यूजीलैंड में पहला पोजिटिव केस मिला। इसके बाद सतर्कता और बढ़ा दी गयी। 14 मार्च से पानी में चलने वाले बड़े-बड़े व्यापारिक क्रूज जहाजों का परिचालन बंद कर दिया गया। विदेश से आने वाले सभी लोगों को अनिवार्य रूप से 14 दिन के क्वारेंटाइन में भेजा जाने लगा। विदेशी नागरिकों के आने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया।

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