दक्षिण कोरिया मॉर्शल लॉ विवादः गृहमंत्री ने भी दिया इस्तीफा, पूर्व रक्षा मंत्री देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार

राष्ट्रपति यून ने बीते मंगलवार रात को अचानक देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन बुधवार को संसद में इसके खिलाफ मतदान के बाद इसे निरस्त करना पड़ा। हालांकि चंद घटों के लिए ही लागू रहे मार्शल लॉ ने देश की राजनीतिक को हिला कर रख दिया और लोग सड़कों पर उतर आए।

दक्षिण कोरिया मॉर्शल लॉ विवादः गृहमंत्री ने भी दिया इस्तीफा, पूर्व रक्षा मंत्री देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार
दक्षिण कोरिया मॉर्शल लॉ विवादः गृहमंत्री ने भी दिया इस्तीफा, पूर्व रक्षा मंत्री देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार
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नवजीवन डेस्क

दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ लगाए जाने पर उठे विवाद के बाद मचे राजनीतिक उथल-पुथल के बीच गृहमंत्री ली सांग-मिन ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रपति यून सुक योल ने ली की पेशकश के तुरंत बाद उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया। वहीं इससे पहले इसी विवाद में पद से इस्तीफा दे चुके पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है।

राष्ट्रपति यून के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक ली ने एक बयान में अपने इस्तीफे की घोषणा की। मार्शल लॉ हटाए जाने के बाद संसदीय समिति के सत्र में ली ने यून का बचाव करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति ने संवैधानिक प्रक्रिया और कानून का पालन करते हुए मार्शल लॉ लागू किया। हालांकि यून के इस्तीफा स्वीकार करने के बाद उन्हें ज्यादा आलोचना का समाना करना पड़ सकता है । इसे राष्ट्रपति पद की शक्ति के प्रयोग के रूप में देखा जाएगा, जो सत्तारूढ़ पार्टी के नेता हान दोंग-हून की पहले की घोषणा के विपरीत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यून अपने 'शीघ्र और व्यवस्थित' इस्तीफे तक राज्य के कामकाज में शामिल नहीं होंगे।

ली को पिछले साल फरवरी में भी उनके पद से निलंबित कर दिया गया था। उस वक्त मुख्य विपक्षी दल द्वारा नियंत्रित नेशनल असेंबली में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया गया था। यह महाभियोनग सोल के इटावन डिस्ट्रिक्ट में 2022 के हैलोवीन समारोह भगदड़ मामले को लेकर लाया गया था। इस घटना में 159 लोग मारे गए थे। हालांकि पिछले साल जुलाई में, संवैधानिक न्यायालय ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को खारिज कर दिया और उन्हें तुरंत मंत्री के रूप में बहाल कर दिया।

इससे पहले मार्शल लॉ की घोषणा के बाद कथित देशद्रोह की जांच कर रहे विशेष जांच मुख्यालय ने रविवार को पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून को गिरफ्तार कर लिया है और उनका मोबाइल फोन भी जब्त कर लिया है। समाचार एजेंसी योनहाप के मुताबिक किम को पूर्वी सोल के एक हिरासत केंद्र में भेज दिया गया है। किम की गिरफ्तारी विशेष जांच मुख्यालय में पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लगभग 6 घंटे बाद हुई। उन्होंने कहा कि वह चल रही जांच में सक्रिय रूप से सहयोग करेंगे। इससे पहले किम का इस्तीफ राष्ट्रपति ने गुरुवार को स्वीकार कर लिया।


किम ने ही राष्ट्रपति यून सुक येओल को मार्शल लॉ लागू करने का सुझाव दिया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने विपक्ष द्वारा नियंत्रित नेशनल असेंबली के साथ बढ़ते राजनीतिक गतिरोध के बीच मंगलवार देर रात इसे घोषित कर दिया। नेशनल असेंबली द्वारा इसे खत्म करने के लिए मतदान करने के छह घंटे बाद राष्ट्रपति ने आदेश को पलट दिया। इस घटनाक्रम के बाद किम ने इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति ने गुरुवार को स्वीकार कर लिया।

ऐसा माना जा रहा है कि अभियोजकों ने किम को उनके आरोपों की गंभीरता और पूर्व रक्षा प्रमुख द्वारा साक्ष्य मिटाने की संभावना को ध्यान में रखते हुए गिरफ्तार किया है। कयास ऐसे भी लगाए जा रहे हैं कि किम साक्ष्य नष्ट करने का प्रयास कर सकते हैं, क्योंकि यह पाया गया कि वह अपना पिछला टेलीग्रम अकाउंट डिलीट करने के बाद पुनः टेलीग्राम में शामिल हो गए हैं। अभियोजन पक्ष पुरानी बातचीत का डाटा रिस्टोर करने की कोशिश कर रहा है।

दक्षिण कोरिया कानून के अनुसार, यदि यह मानने के पर्याप्त आधार हों कि कोई गंभीर अपराध किया गया है या जब सबूत नष्ट करने के संभावित प्रयास की चिंता हो तो संदिग्धों को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। जांच मुख्यालय किम के खिलाफ उनकी हिरासत के 48 घंटे के भीतर गिरफ्तारी वारंट जारी करने पर विचार कर रहा है। यदि अभियोजन पक्ष गिरफ्तारी वारंट जारी करने में असफल रहता है, या कोर्ट इस याचिका को खारिज कर देता है तो किम को तुरंत रिहा करना पड़ेगा।

बता दें कि राष्ट्रपति यून सुक येओल ने मंगलवार रात को आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की, लेकिन बुधवार को संसद द्वारा इसके खिलाफ मतदान किए जाने के बाद इसे निरस्त कर दिया। मार्शल लॉ कुछ घंटों के लिए ही लागू रहा। हालांकि चंद घटों के लिए लागू हुए मार्शल लॉ ने देश की राजनीतिक को हिला कर रख दिया। मार्शल लॉ लगाने के फैसले के खिलाफ देश भर में नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रपति से तत्काल इस्तीफे की मांग करने लगे।

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