महत्वपूर्ण खनिजों पर नियंत्रण की वैश्विक दौड़ जारी, अमेरिका और चीन में खींचतान, ये इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
हाल ही में चीन द्वारा रेयर-अर्थ सामग्री और मैग्नेट तकनीक पर निर्यात नियंत्रण लगाए जाने के बाद अमेरिका ने नवंबर से चीनी आयात पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है। इसका उद्देश्य अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से अलग करना है।

दुर्लभ खनिज यूं तो हर दौर में जरूरी रहे हैं लेकिन वर्तमान में इनकी प्रचुरता वाले देशों की ओर से इन पर नियंत्रण किए जाने के कारण दुर्लभ खनिज फिर चर्चा में हैं। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ उनके देश में मौजूद समृद्ध भंडारों पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ चर्चा करने के लिए व्हाइट हाउस में हैं।
यह बातचीत ऐसे समय में हो रही है जब चीन ने दुर्लभ पृथ्वी खनिजों (रेयर अर्थ एलिमेंट्स) के निर्यात पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव बढ़ गया है। चीन का इन दुर्लभ मृदा तत्वों पर वैश्विक दबदबा है और उसके द्वारा हाल ही में नए निर्यात प्रतिबंध लगाए जाने से ट्रंप खासे नाराज़ हैं।
महत्वपूर्ण खनिजों का उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उन्नत तकनीकों के निर्माण में होता है। ऑस्ट्रेलिया में लिथियम, कोबाल्ट, रेयर अर्थ्स और टंगस्टन जैसे खनिजों का बड़ा भंडार है, जो देश के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के साथ-साथ चुनौती भी प्रस्तुत करता है।
क्या होते हैं 'महत्वपूर्ण खनिज'?
ये वे खनिज हैं जो मोबाइल फोन, विंड टर्बाइनों, हथियार प्रणालियों और अन्य अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों के निर्माण में उपयोग होते हैं। ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 31 खनिजों को 'महत्वपूर्ण' की श्रेणी में रखा है, जिनमें लिथियम, मैग्नीशियम और ज़िरकोनियम शामिल हैं।
सरकार की रणनीति और चुनौतियाँ
ऑस्ट्रेलिया की ‘क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजी’ का उद्देश्य केवल खनिजों का खनन करना नहीं, बल्कि देश में ही उनका प्रसंस्करण और निर्माण करना है। इसके तहत चार अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की 'क्रिटिकल मिनरल्स फैसिलिटी' शुरू की गई है, साथ ही देश में परिशोधन यानी रिफाइनिंग को बढ़ावा देने के लिए 10 प्रतिशत उत्पादन टैक्स क्रेडिट भी घोषित किया गया है।
हालांकि, अधिकतर खनिज अभी भी कच्चे रूप में निर्यात किए जा रहे हैं और घरेलू स्तर पर परिशोधन की सीमित सुविधा, ऊंची ऊर्जा लागत और कुशल श्रमिकों की कमी जैसी समस्याएं विकास में बाधा बनी हुई हैं।
लिथियम जैसे खनिजों के खनन से पर्यावरण पर भी गंभीर असर पड़ता है। एक टन लिथियम उत्पादन के लिए लगभग 77 टन ताजे पानी की आवश्यकता होती है और 15–20 टन कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का₂ उत्सर्जन होता है। विशेषज्ञों ने सतत तकनीकों में निवेश की आवश्यकता पर बल दिया है।
भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा का दबाव
हाल ही में चीन द्वारा रेयर-अर्थ सामग्री और मैग्नेट तकनीक पर निर्यात नियंत्रण लगाए जाने के बाद अमेरिका ने नवंबर से चीनी आयात पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है। इसका उद्देश्य अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से अलग करना है।
इस पृष्ठभूमि में अमेरिका ऑस्ट्रेलियाई खनन कंपनियों में निवेश बढ़ा रहा है, ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके। ऑस्ट्रेलियाई सरकार भी एक 'क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजिक रिजर्व' की योजना बना रही है, जिसके तहत कुछ खनिजों का भंडारण और सहयोगी देशों को प्राथमिकता के आधार पर आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।
भविष्य की दिशा
वैश्विक ऊर्जा कंपनियां भी अब इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं, जिससे व्यावसायिक स्तर पर खनन और परिशोधन तकनीकों के विकास की गति तेज होने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऑस्ट्रेलिया इस दौड़ में आगे रहना चाहता है, तो उसे तकनीकी क्षमताओं और घरेलू प्रसंस्करण ढांचे को तेजी से विकसित करना होगा।
( द कन्वरसेशन )
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