दुनिया की खबरें: संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की निंदा की और गाजा में भुखमरी!
यूएन विशेषज्ञों ने 24 जुलाई को जारी अपने बयान में कहा, "धर्म या आस्था के आधार पर कमजोर समुदायों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की खबरों से हम स्तब्ध हैं।" इस बयान में दशकों से जारी दमन के प्रति नाराजगी और निराशा की झलक दिखी।

पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को लेकर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मानवाधिकार विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से तत्काल जांच, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए आवश्यक सुधार लागू करने की अपील की है।
यूएन विशेषज्ञों ने 24 जुलाई को जारी अपने बयान में कहा, "धर्म या आस्था के आधार पर कमजोर समुदायों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की खबरों से हम स्तब्ध हैं।" इस बयान में दशकों से जारी दमन के प्रति नाराजगी और निराशा की झलक दिखी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान को "उस दंडहीनता के चक्र को तोड़ना होगा जिसने अत्याचारियों को बेखौफ बना दिया है।"
बता दें कि अहमदिया मुस्लिम, ईसाई, हिंदू और शिया समुदाय पाकिस्तान में सबसे अधिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच की ताज़ा रिपोर्टों में अल्पसंख्यकों पर हिंसा को "संगठित आतंक" करार दिया गया है, जिसे "रैंडम नहीं बल्कि सुनियोजित" बताया गया है।
रिपोर्टों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की निष्क्रियता को दोषियों को बढ़ावा देने वाला बताया गया है। बताया गया, "डर का यह चक्र लोगों और संस्थाओं दोनों को इन अल्पसंख्यकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करने से रोकता है।"
विशेष रूप से अहमदिया समुदाय को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें 1974 से पाकिस्तान के संविधान में गैर-मुस्लिम घोषित किया गया है। उन्हें खुद को मुस्लिम कहने, सार्वजनिक रूप से अपने धार्मिक विश्वासों को प्रकट करने या अपने पूजा स्थलों को मस्जिद कहने की कानूनी मनाही है।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने 2024 में अहमदिया समुदाय के खिलाफ कई हमलों को दर्ज किया है, जिनमें मस्जिदों का अपवित्रीकरण, कब्रिस्तानों की तोड़फोड़ और धार्मिक ग्रंथों को जलाया जाना शामिल है। रिपोर्ट में बताया गया, "मृत्यु के बाद भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता।"
अहमदियों को अलग वोटर लिस्ट में रखा जाता है, उनके धार्मिक स्थलों को पुलिस द्वारा सील किया जाता है और उन्हें अक्सर झूठे ईशनिंदा मामलों में फंसा दिया जाता है, जिससे उनकी गिरफ्तारी, गुमशुदगी और यहां तक कि हत्या तक हो जाती है।
2025 की आयोग रिपोर्ट में कहा गया है कि ईसाई, हिंदू, शिया और अहमदिया मुस्लिम समुदायों पर सबसे ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए हैं।
इसके अलावा, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और बलात्कार, धर्म परिवर्तन की घटनाएं भी लगातार सामने आ रही हैं। हिंदू, ईसाई और सिख लड़कियों को अगवा कर जबरन धर्म परिवर्तन कर शादी कर दी जाती है। इनमें कई लड़कियों की उम्र तो 12 साल के करीब होती है।
गाजा में इजराइल का हमला, 36 फलस्तीनियों की मौत
इजराइल द्वारा सोमवार को गाजा के विभिन्न स्थानों पर किये गए हमलों में कम से कम 36 फलस्तीनी मारे गए। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
इस हमले से एक दिन पहले ही इजराइल ने क्षेत्र में गंभीर होते मानवीय संकट के मद्देनजर प्रतिबंधों में ढील दी थी।
नासेर अस्पताल के अनुसार, मृतकों में एक नवजात भी शामिल है, जिसका जन्म मां की हमले में मौत के बाद एक जटिल सर्जरी से हुआ था।
इजराइली सेना ने रविवार को कहा था कि वह बड़ी आबादी वाले गाजा सिटी, दीर अल-बलाह और मुवासी में सीमित समय के लिए युद्ध रोकेगी, ताकि ‘मानवीय सहायता का दायरा बढ़ाया जा सके’। यह रोक रविवार से शुरू होकर, अगली सूचना तक, स्थानीय समयानुसार प्रतिदिन पूर्वाह्न 10:00 बजे से रात 8:00 बजे तक रहेगी।
मध्य गाजा स्थित अवदा अस्पताल के मुताबिक सात शव उसके पास लाए गए है। अस्पताल का दावा है कि इन लोगों की मौत सोमवार को अमेरिका और इजराइल समर्थित गाजा ह्यूमैनिटेरियन फ़ाउंडेशन द्वारा संचालित एक सहायता केंद्र के पास इजराइली गोलीबारी में हुई। अस्पताल ने बताया कि घटनास्थल के पास 20 अन्य लोग घायल भी हुए हैं।
फलस्तीनी रेड क्रिसेंट के मुताबिक दक्षिणी शहर खान यूनिस के पश्चिम में मुवासी इलाके में एक घर पर हुए हमले में सात महीने की गर्भवती महिला और 11 अन्य लोगों की मौत हो गई।
नासेर अस्पताल ने बताया कि अन्य हमला खान यूनिस में एक मकान को निशाना बनाकर किया गया जिसमें कम से कम 11 लोग मारे गए। मृतकों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं।
स्थानीय अस्पतालों के अनुसार, गाजा में अन्य स्थानों पर हुए हमलों में कम से कम पांच लोग मारे गए।इजरायली सेना ने इन हमलों को लेकर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की है।
इजराइल-अर्जेंटीना के पूर्व बंधक ने हमास के कब्जे से भाई को छुड़ाने के लिए लड़ाई जारी रखी
गाजा में मानवीय सहायता बढ़ाने के इजराइल के ऐलान के बीच, एक पूर्व इजराइली-अर्जेंटीनियाई बंधक को अपने प्रत्यक्ष अनुभव से पता है कि इसका चरमंथी संगठन हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों के लिए क्या मतलब हो सकता है।
डेढ़ साल तक कैद में रहने वाले इयर हॉर्न ने कहा कि बंधकों को यह पता चल जाता था कि कब अधिक सहायता उपलब्ध थी, क्योंकि उन्हें अधिक भोजन मिलता था।
हॉर्न ने कहा, ‘‘जब खाना कम होता है, तो बंधकों को भी यह कम मिलता है। जब सहायता उपलब्ध होती है, तो संभावना है कि आपको खीरा मिल जाए।’’
हमास के हमले के बाद 46 वर्षीय इयर हॉर्न को सात अक्टूबर 2023 को किबुत्ज नीर ओज से 250 अन्य लोगों के साथ अगवा किया गया था। वह 498 दिन तक गाजा में एक भूमिगत सुरंग में बंधक बनाकर रखे गए, जहां उनके साथ उनके छोटे भाई ईतान हॉर्न (38) भी थे। हॉर्न को 15 फरवरी को रिहा किया गया था।
रिहाई के बाद से, हॉर्न गाजा में अब भी बंधक अपने भाई ईतान और 50 अन्य लोगों की रिहाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं। माना जाता है कि इन बंधकों में से 20 अब भी जीवित हैं।
इयर ने कहा कि इस सप्ताहांत फिर से इजराइल और हमास के बीच बातचीत ठप हो जाना उनके परिवार के लिए निराशाजनक था। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई नेताओं से मुलाकात कर बंधकों की रिहाई की अपील की है।
उन्होंने कहा, “मैं राजनीति नहीं समझता, मैं केवल इतना चाहता हूं कि मेरा भाई वापस आए।’’
इयर और उनके भाई ईतान को शुरू में अलग-अलग रखा गया था, फिर लगभग 50वें दिन उन्हें एक साथ रखा गया। दोनों भाइयों ने कैद के दौरान बचपन की यादें साझा कीं और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया।
उनके माता-पिता के बीच तलाक हो चुका है। इयर की मां रुटी चमेल स्ट्रम ने कहा है कि उन्होंने तीनों भाइयों को पाला है और वे एक-दूसरे के मजबूत सहारे हैं।
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि गाजा में इजराइल के युद्ध में अब तक 59,700 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें आधे से अधिक महिलाएं और बच्चे हैं। मंत्रालय उग्रवादियों और नागरिकों के बीच अंतर नहीं करता है।
गाजा में भुखमरी, ट्रंप बोले- तस्वीरें दर्दनाक, लेकिन 'वो' खाना हड़प रहे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को गाजा पट्टी में मानवीय संकट और भुखमरी से संबंधित मौतों की खबरों पर अपनी राय पेश की। ट्रंप ने अफसोस जताया कि अमेरिका ने गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (जीएचएफ) को कथित तौर पर 6 करोड़ डॉलर का दान दिया, लेकिन 'किसी अन्य देश ने कुछ नहीं दिया।'
गाजा में बच्चे भुखमरी से मर रहे हैं। इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं। स्कॉटलैंड की चार दिवसीय यात्रा पर ट्रंप से इस बारे में एक पत्रकार ने पूछा, तो उन्होंने इन तस्वीरों को 'भयानक' बताया, लेकिन ट्रंप ने तुरंत अपनी बात बदलते हुए कहा, "वो लोग खाना चुरा (हड़प) रहे हैं।"
भले ही ट्रंप ने यह नहीं बताया कि उनका इशारा किस ओर था, लेकिन माना जा रहा है कि इशारा संभवतः हमास की ओर था, जिस पर इजरायल अक्सर अपने फायदे के लिए सहायता सामग्री चुराने का आरोप लगाता रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, "ऐसा करने पर आपको थोड़ा बुरा लगता है, और आप जानते हैं, दूसरे देश भी कुछ नहीं दे रहे। हमारे अलावा किसी ने कुछ नहीं दिया। हम बहुत सारा पैसा, बहुत सारा खाना, बहुत सारी चीजें दे रहे हैं। सच कहूं तो मुझे लगता है कि अगर हम वहां नहीं होते, तो लोग भूख से मर जाते।"
भुखमरी से संबंधित मौतों की खबरों पर व्यापक आलोचना के बीच इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि अगर वह न होते तो हालात और बदतर होते। शनिवार रात गाजा में सहायता प्रणाली में कई बदलावों को मंजूरी देने के साथ ही उन्होंने कहा, "अगर वह न होते, तो गाजा के लोग बहुत पहले ही भूख से मर गए होते।"
ट्रंप की सलाहकार और प्रमुख इवेंजेलिकल पादरी, पाउला व्हाइट की ओर से आयोजित यरुशलम में एक ईसाई सम्मेलन में नेतन्याहू ने कहा, "गाजा में कोई भुखमरी नहीं है।"
नेतन्याहू ने दावा किया कि इजरायल ने 'अंतरराष्ट्रीय कानून की ओर से निर्धारित मात्रा' में सहायता को गाजा पट्टी में प्रवेश करने की अनुमति दी, जो उसके अनुसार अक्टूबर 2023 में युद्ध शुरू होने के बाद से लगभग 1.9 मिलियन टन राहत सामग्री के बराबर है।
इजरायली प्रधानमंत्री ने कहा, "इजरायल ने युद्ध की पूरी अवधि के दौरान मानवीय सहायता को सक्षम किया, वर्ना गाजा में कोई नहीं होता।"
अगर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने यूट्यूब को किया बैन तो उठाएंगे कानूनी कदम: गूगल
गूगल ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार को चेतावनी दी है कि अगर वह 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर लगने वाले सोशल मीडिया बैन में यूट्यूब को शामिल करती है, तो कंपनी कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
गूगल और यूट्यूब के ऑस्ट्रेलियाई कार्यालय के अधिकारियों ने संचार मंत्री एनीका वेल्स को भेजे एक पत्र में कहा है कि यदि सरकार पहले लिए गए निर्णय को पलटती है और यूट्यूब को प्रतिबंध में शामिल करती है, तो कंपनी "अपने कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है।"
पत्र में गूगल ने तर्क दिया है कि यूट्यूब एक वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म है, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं। गूगल ने यह भी संकेत दिया कि वह यूट्यूब को शामिल किए जाने पर संवैधानिक आधारों पर कानूनी चुनौती देगा।
यह प्रतिबंध दिसंबर से लागू होगा, जिसके तहत मेटा, टिकटॉक और स्नैपचैट जैसी कंपनियों को 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट बनाने या एक्सेस करने से रोकने के लिए "उचित कदम" उठाने होंगे।
सरकार ने शुरुआत में यूट्यूब को इस प्रतिबंध से इसलिए छूट दी थी क्योंकि उस पर शैक्षिक और स्वास्थ्य-संबंधी कंटेंट उपलब्ध है, लेकिन जून में ऑस्ट्रेलिया की शीर्ष ऑनलाइन सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि किसी भी प्लेटफॉर्म को छूट नहीं दी जानी चाहिए।
जब सोमवार को गूगल की कानूनी कार्रवाई की धमकी के बारे में पूछा गया, तो ऑस्ट्रेलिया की सामाजिक सेवा मंत्री टान्या प्लिबरसेक ने कहा कि सरकार टेक्नोलॉजी कंपनियों के दबाव में नहीं आएगी।
उन्होंने कहा, "हम ऑस्ट्रेलियाई बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जो जरूरी होगा, वो करेंगे। हम किसी भी सोशल मीडिया कंपनी की धमकी से डरने वाले नहीं हैं।"
मालूम हो कि मार्च में मेटा, टिकटॉक और स्नैपचैट ने सरकार को अपने ज्ञापन में यूट्यूब को छूट देने के फैसले की आलोचना की थी। इस नियम के उल्लंघन पर कंपनियों को 5 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 32.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
अगर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने यूट्यूब को किया बैन तो उठाएंगे कानूनी कदम: गूगल
गूगल ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार को चेतावनी दी है कि अगर वह 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर लगने वाले सोशल मीडिया बैन में यूट्यूब को शामिल करती है, तो कंपनी कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
गूगल और यूट्यूब के ऑस्ट्रेलियाई कार्यालय के अधिकारियों ने संचार मंत्री एनीका वेल्स को भेजे एक पत्र में कहा है कि यदि सरकार पहले लिए गए निर्णय को पलटती है और यूट्यूब को प्रतिबंध में शामिल करती है, तो कंपनी "अपने कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है।"
पत्र में गूगल ने तर्क दिया है कि यूट्यूब एक वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म है, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं। गूगल ने यह भी संकेत दिया कि वह यूट्यूब को शामिल किए जाने पर संवैधानिक आधारों पर कानूनी चुनौती देगा।
यह प्रतिबंध दिसंबर से लागू होगा, जिसके तहत मेटा, टिकटॉक और स्नैपचैट जैसी कंपनियों को 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अकाउंट बनाने या एक्सेस करने से रोकने के लिए "उचित कदम" उठाने होंगे।
सरकार ने शुरुआत में यूट्यूब को इस प्रतिबंध से इसलिए छूट दी थी क्योंकि उस पर शैक्षिक और स्वास्थ्य-संबंधी कंटेंट उपलब्ध है, लेकिन जून में ऑस्ट्रेलिया की शीर्ष ऑनलाइन सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि किसी भी प्लेटफॉर्म को छूट नहीं दी जानी चाहिए।
जब सोमवार को गूगल की कानूनी कार्रवाई की धमकी के बारे में पूछा गया, तो ऑस्ट्रेलिया की सामाजिक सेवा मंत्री टान्या प्लिबरसेक ने कहा कि सरकार टेक्नोलॉजी कंपनियों के दबाव में नहीं आएगी।
उन्होंने कहा, "हम ऑस्ट्रेलियाई बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जो जरूरी होगा, वो करेंगे। हम किसी भी सोशल मीडिया कंपनी की धमकी से डरने वाले नहीं हैं।"
मालूम हो कि मार्च में मेटा, टिकटॉक और स्नैपचैट ने सरकार को अपने ज्ञापन में यूट्यूब को छूट देने के फैसले की आलोचना की थी। इस नियम के उल्लंघन पर कंपनियों को 5 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 32.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है
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