चीन और अमेरिका के बीच कारोबारी जंग जारी, डोनाल्ड ट्रंप ने 200 अरब डॉलर के सामान पर लगाया 10 फीसदी शुल्क  

चुनावी वादों को पूरा करने पर आमादा डोनाल्ड ट्रंप चीन से आने वाली चीजों पर आयात शुल्क बढ़ाते जा रहे हैं और चीन पूरी ईमानदारी से उन्हें जवाब देने में जुटा है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तनातनी किस ओर जाएगी?

फोटो: सोशल मीडिया 
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अमेरिका एक के बाद एक कर चीन से आने वाली चीजों पर टैक्स की दर बढ़ाता जा रहा है। दूसरी तरफ चीन उतने ही समर्पण के साथ अमेरिकी चीजों पर टैक्स की दर बढ़ा रहा है। चीन अमेरिका से बहुत ज्यादा आयात नहीं करता। ऐसे में इस जवाबी कदम का अमेरिका पर उतना असर नहीं होगा। दोनों देशों के कारोबार का हाल यह है कि 2017 में करीब 636 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। इसमें करीब 505 अरब डॉलर का सामान अमेरिका ने चीन से आयात किया और करीब 131 अरब डॉलर का सामान बेचा।

पिछले सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 200 अरब डॉलर के सामान पर टैक्स लगाने का एलान किया। 24 सितंबर से यह टैक्स 10 फीसदी की दर से शुरू होगा और साल के अंत तक 25 फीसदी पर पहुंच जाएगा। चीन ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका अपने रवैये को सुधारने के लिए कदम उठाएगा।

इसके साथ ही चीन ने 60 अरब डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैक्स लगा दिया। कारोबारी दायरे में रह कर भी चीन के पास कई ऐसे उपाय हैं जिनके जरिए वो अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा। कुछ अर्थशास्त्री यह आशंका जता रहे हैं कि चीन सिर्फ इतने से ही नहीं मानेगा और वह अमेरिकी कारोबार को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ दूसरे कदमों का भी सहारा लेगा। चीन से कारोबार करने वाली कंपनियों पर दबाव बढ़ाना इनमें से एक कदम हो सकता है।

दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रंप चेतावनी भी दे रहे हैं कि अगर चीन ने अमेरिकी कृषि और कारोबार को नुकसान पहुंचाया तो अच्छा नहीं होगा। डोनाल्ड ट्रंप चीन पर अमेरिका के किसानों को निशाना बना कर अमेरिकी चुनावों पर असर डालने का आरोप भी लगा रहे हैं। उधर चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता गाओ फेंग का कहना है, “चीन को जवाबी कदम उठाने पर विवश किया गया है और इन कदमों का मकसद सिर्फ चीन के अपने हितों की रक्षा है। इसके साथ ही वैश्विक मुक्त व्यापार की व्यवस्था को बचाना भी एक लक्ष्य है। इन कदमों का अमेरिका के घरेलू चुनाव से कोई लेना देना नहीं है।”

ऑनलाइन बाजार अलीबाबा शुरू करने वालों में एक चीन के अरबपति कारोबारी जैक मा ने कहा है, “वर्तमान आर्थिक स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं है और लोग जितना सोच रहे हैं यह उससे ज्यादा लंबी खिंच सकती है। चीन और अमेरिका के संघर्ष को देखते हुए लोगों को अगले 20 साल के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए। क्या सचमुच हालात इतने खराब होने जा रहे हैं।”

चीन और अमेरिका के इस कारोबारी तनाव ने प्रशांत क्षेत्र के दोनों ओर नौकरियों में कमी की आशंका पैदा की है। टैक्स की दर बढ़ने का असर सामानों के मुक्त प्रवाह और आर्थिक विकास पर होगा। हालांकि आंकड़े बता रहे हैं कि चीन और अमेरिका की इस तनातनी का असर वैश्विक कारोबार पर बहुत कम ही हुआ है। चीन और अमेरिका के बीच का कारोबार वैश्विक कारोबार का एक बहुत छोटा हिस्सा है।

कारोबार के लिहाज से देखें तो दुनिया के तीन इलाके सबसे ज्यादा अहम हैं। उत्तरी अमेरिका, यूरोप और पूर्वी एशिया। कुछ विशेषज्ञ तो यह भी कह रहे हैं कि अमेरिका जिन बातों की चेतावनी दे रहा है उसे पूरी तरह से लागू कर दे तो भी वैश्विक कारोबार पर असर 5 फीसदी से अधिक नहीं होगा। दरअसल बीते वर्षों में आसपास के देशों के साथ कारोबार देशों के लिए ज्यादा अहम हो गया है। चीन यहां भी चैम्पियन है और उसने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ निर्यात काफी ज्यादा बढ़ा लिया है। इनमें इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस और कंबोडिया जैसे देश हैं। अमेरिका से जो नुकसान होगा चीन उसकी भरपाई एशियाई देशों से करने में सक्षम है।

देशों के आर्थिक विकास के बावजूद वैश्विक कारोबार में बीते दिनों कमी जरूर आई है लेकिन इसकी वजह सिर्फ चीन अमेरिका का द्वंद्व नहीं है। मुद्रा का असर, कीमतों में बदलाव और व्यापार के नियमों का सख्त होना इसके पीछे ज्यादा बड़ी वजह है। हालात निश्चित रूप से तब जरूर खराब होंगे जब चीन दूसरे जवाबी कदम उठाने की सोचे। इनमें अमेरिकी ट्रेजरी बिलों को बड़ी मात्रा में बेचना, अमेरिकी सामानों का बायकॉट, चीन में चल रही अमेरिकी कंपनियों पर कड़े नियम और शर्तें लादना जैसे कदम शामिल हैं।

हालांकि इसके आसार फिलहाल कम हैं कि चीन ऐसा करेगा। फिलहाल तो चीन बढ़े अमेरिकी टैक्स की दरों से प्रभावित कंपनियों और गैर अमेरिकी देशों से कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए शर्तों में छूट दे कर स्थिति संभालने की कोशिश करेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। कुछ समय के लिए अंतरराष्ट्रीय कारोबार में उलझन और समस्याएं बढ़ेंगी और इसका ग्राफ नीचे जा सकता है। कंपनियां उत्पादन में निवेश को रोक सकती हैं। इसके साथ ही चीन से कच्चा माल खरीदने वाली कंपनियां दूसरे विकल्पों की ओर भी मुड़ सकती हैं। इसका सीधा असर तैयार माल की कीमतों पर पड़ सकता है।

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Published: 21 Sep 2018, 1:53 PM
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