बांग्लादेश में मतदान कल: क्या इस चुनाव में खत्म हो जाएगी ‘बेगमों की लड़ाई’ !

बांग्लादेश में कल होने वाले आम चुनाव में एक तरफ आत्मविश्वास और ताकत से भरी प्रधानमंत्री शेख हसीना हैं तो दूसरी तरफ ढाका जेल में बंद बीमार बेगम खालिदा जिया हैं। नतीजों को लेकर कयास लगने लगे हैं कि क्या इस बार बांग्लादेश में ‘बेगमों की लड़ाई’ का अंत होगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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DW

बांग्लादेश की सत्ता पर दबदबा रखने वाली इन दो बेगमों की लड़ाई तीन दशक से ज्यादा पुरानी है। हालांकि, कल होने वाले आम चुनाव को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद इस बार 71 साल की शेख हसीना देश में सबसे ज्यादा समय तक राज करने का रिकॉर्ड खालिदा जिया से छीन लेंगी।

साल 1980 से ही देश की सत्ता पर दोनों बेगमों का प्रभुत्व है। 73 साल की खालिदा जिया सैनिक शासक की विधवा हैं, जबकि शेख हसीना के पिता बांग्लादेश के संस्थापक नेता थे। इन दोनों ने सैन्य तानाशाह हुसैन मुहम्मद इरशाद को सत्ता से हटाने और लोकतंत्र कायम करने के लिए 1990 में लड़ाई शुरू की थी। 1991 में जिया के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों एक दूसरे के खिलाफ मैदान में आ गईं और उसके बाद से सत्ता बारी-बारी इन्हीं दोनों के हाथ में आती रही है।

कल होने वाले चुनाव में शेख हसीना चौथी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए लोगों से वोट मांग रही हैं और चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि सरकार पर निरंकुश होने के आरोपों के बीच भी उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।

वहीं, खालिदा जिया फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में 17 साल की जेल की सजा काट रही हैं, जबकि उनकी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी उन पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रही है। दोषी साबित होने के कारण खालिदा जिया चुनाव नहीं लड़ सकतीं और बीएनपी का यह भी कहना है कि यह चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं। पार्टी का दावा है कि उसके हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया है।

जेल में बंद खालिदा जिया को गठिया और डायबिटिज की बीमारी भी है। उनके घुटने बदले गए हैं और वह अपना एक हाथ भी बड़ी मुश्किल से चला पाती हैं। पश्चिमी देशों के राजनयिक भी उनकी वापसी की उम्मीद छोड़ चुके हैं। ढाका में तैनात एक राजनयिक ने कहा, “राजनीतिक रूप से उनका वक्त पूरा हो गया है।”

इस राजनयिक ने यह भी कहा कि उनके बाहर निकलने की एक ही सूरत है जब उन्हें इलाज के लिए विदेश भेजने का प्रस्ताव दिया जाए। पूरे जिया वंश के लिए ही यह वक्त मुश्किलों का है। खालिदा जिया के सबसे छोटे बेटे की 2015 में निर्वासन के दौरान बैंकॉक में मौत हो गई थी। उनके सबसे बड़े बेटे तारिक रहमान ने 2001 में उनकी सत्ता में वापसी कराई थी, लेकिन 2008 से ही वो लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। इस साल अक्टूबर में उन्हें हसीना की एक रैली पर हुए ग्रेनेड हमले में कथित भूमिका के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 2004 की इस रैली में 20 लोगों की मौत हुई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भले ही इस वक्त जिया चमक-दमक से दूर हैं लेकिन तब भी चुनावों पर उनका काफी असर होगा। इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अली रियाज का कहना है, “यह कहना सही है कि बांग्लादेशी राजनीति जो पारंपरिक रूप से ‘बेगमों की लड़ाई’ कही जाती रही है, वह कुछ वक्त के लिए पीछे छूट गई है। हालांकि अभी से ही खालिदा जिया की राजनीति को खत्म मान लेना जल्दबाजी होगी। भले ही वह बैलेट पर नहीं हैं लेकिन उनका नाम, उनका प्रभाव कम नहीं हुआ है।”

खालिदा जिया का बुरा वक्त 2014 के चुनाव का बहिष्कार करने के बाद से शुरू हुआ। शेख हसीना ने तब केयरटेकर सरकार के अधीन चुनाव कराने के सिस्टम को पलट दिया था। बीएनपी ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया था। इस दौरान हुई हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए थे। उसके अगले साल पूरे देश में सड़क और रेल जाम किया गया ताकि शेख हसीना को समय से पहले चुनाव कराने पर मजबूर किया जाए। उस दौरान भी करीब 150 लोग मारे गए।

बहुत से लोग इस अभियान से नाराज हुए और हसीना को बीएनपी के खिलाफ कार्रवाई करने का मौका मिल गया। ढाका में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर अताउर रहमान कहते हैं, “चुनाव के बहिष्कार का फैसला और उसके बाद चक्का जाम करना आत्मघाती साबित हुआ। उन्होंने पार्टी को कमजोर कर दिया और हसीना के हाथ में अपने विरोधियों से निपटने का एक बड़ा मौका आ गया। इसके बाद एक तरह से देश में एकदलीय राजनीतिक व्यवस्था जैसे हालात बन गए।”

कुछ लोगों का मानना है कि जिया परिवार की पकड़ बीएनपी पर कमजोर हो गई है। यहां पार्टियों की वंश परंपरा ही राजनीति का चरित्र है। जिया के बेटे पार्टी के कार्यकारी प्रमुख हैं और उन्होंने चुनाव में संभावित उम्मीदवारों का लंदन से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इंटरव्यू लिया। ओस्लो यूनिवर्सिटी में लेक्चरर मुबशर हसन कहते हैं, “यह सब इस बात के संकेत हैं कि जिया वंश अब भी बहुत मजबूत है और पार्टी पर अपनी पकड़ कायम रखे हुए है।”

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