कौन बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति, चुनाव आज, लेकिन बन सकते हैं ऐसे हालात जिससे नतीजा लटक जाएगा कई दिनों तक

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए आज चुनाव होना है। वहां की चुनाव व्यवस्था में वोटिंग काफी पहले से जारी है और चुनाव नतीजों का ही मोटे तौर पर ऐलान होना है। लेकिन चुनाव नतीजे आने से पहले कुछ स्थितियां ऐसी भी बन सकती हैं जो नतीजों को कुछ दिन के लिए टाल दें।

फोटो : Getty Images
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सौरभ कुमार शाही

इस लेख को लिखते समय अमेरिकी चुनाव में जो बिडेन को मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर बड़ीअच्छी बढ़त हासिल है। विभिन्न निष्पक्ष सर्वेक्षणों का आकलन है कि बिडेन को 7-10 अंकों की आरामदायक बढ़त है। चूंकि लोकप्रिय वोट का मतलब अमेरिकी चुनाव में बहुत ज्यादा नहीं होता, इसलिए सभी की निगाहें इलेक्टोरल कॉलेज की स्थिति पर टिकी हैं। और यही वह जगह है जहां ट्रंप अपने लिए मौका देखते हैं। आखिर पिछले चुनाव में भी तो वह लोकप्रिय वोटों के मामले में पीछे थे लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज के ज्यादा वोट हासिल करके व्हाइट हाउस तक पहुंचने का रास्ता साफ करने में सफल रहे थे।

आइए, उन विभिन्न संभावित परिदृश्यों पर नजर डालें जो परिणाम घोषित होने के दिन सामने आ सकते हैं। सबसे सीधा और आसान- सा परिदृश्य तो यही है कि दोनों में से किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट जीत हासिल हो जाए, यानी जीत इतने अंतर से हो कि दूसरे उम्मीदवार के लिए इस पर विवाद खड़ा करने की कहीं कोई गुंजाइश ही न रहे। अगर यह परिस्थिति बनती है तो मौजूदा हालात में तमाम कारकों को ध्यान में रखने के बाद भी जो बिडेन के पक्ष में परिणाम आने की पूरी-पूरी संभावना होगी। इस परिदृश्य के बारे में इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि ट्रंप के कट्टर समर्थक सर्वेक्षण भी ट्रंप को भारी अंतर से जिताने की हिम्मत नहीं कर रहे।

अब बिडेन की बात। बिडेन कैसे भारी अंतर से जीत सकते हैं? तीन-तीन राज्यों के दो समूहों पर गौर करें। ये हैं पेंसिल्वेनिया, मिशिगन और विस्कॉन्सिन जिन्हें आम तौर पर ‘रस्ट-बेल्ट’ राज्यों के रूप में जाना जाता है और फ्लोरिडा, जॉर्जिया और एरिजोना जिन्हें सामान्य बोलचाल में ‘सन-बेल्ट’ राज्य कहते हैं।

अगर बिडेन रस्ट-बेल्ट राज्यों और सन-बेल्ट में से किसी एक को जीत जाते हैं तो बड़ी जीत हासिल कर लेंगे। ऐसा कोई परिदृश्य नहीं है जिसमें ट्रंप फ्लोरिडा में हारने के बाद भी इलेक्टोरल कॉलेज वोट के मामले में बढ़त पा लें। ऐसी ही स्थिति होगी अगर वह पेनसिल्वेनिया को खो देते हैं।


स्पष्ट जीत की स्थितियों के बाद अब आइए नजदीकी परिदृश्यों पर गौर करें। विस्कॉन्सिन और मिशिगन में बिडेन को आसान बढ़त हासिल है। वैसी किसी भी अप्रत्याशित स्थिति को छोड़कर जिसमें अचानक वोटिंग ट्रेंड ट्रंप के पक्ष में हो जाए, बिडेन के हिस्से आसान जीत आ रही है। यहां तक कि 2016 की तरह अगर मतदान संबंधी त्रुटियों को शामिल कर लें तो भी। पेंसिल्वेनिया में पांच फीसदी की संभावित बढ़त के बाद भी डेमोक्रेट को पसीना बहाना पड़ रहा है। इसका कारण है कि पिछली बार 4.4 प्रतिशत स्विंग में ट्रंप को 0.7 प्रतिशत के अंतर से जीत मिली थी। तकनीकी रूप से देखें तो बिडेन को इतनी बढ़त है कि ऐसे स्विंग में किसी भी त्रुटि की स्थिति में भी उन्हें एक आराम बढ़त मिल जाए लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि मेल-वोटिंग ने गणना को जटिल बना ही दिया है। मेल-वोटिंग की स्थिति में पेंसिल्वेनिया की प्रक्रिया उलझाऊ हो जाती है। अन्य राज्यों के विपरीत यहां मतपत्र को पहले एक छोटे गुप्त-मतपत्र लिफाफे में रखना होता है और फिर उस लिफाफे को एक बड़े लिफाफे में। और इतना ही काफी नहीं। उस लिफाफे पर हस्ताक्षर भी करना होता है, यानी यह बात एकदम साफ है कि ऐसी कई स्थितियां हैं जब मतपत्र को अस्वीकार किया जा सकता है।

दो अन्य बातें भी डेमोक्रेट की पेशानी पर बल को गहरा करने वाली है। पहली यह है कि मेल-वोटिंग में कम उम्र के लोगों और अफ्रीकी अमेरिकियों ने डेमोक्रेट के पक्ष में जमकर मतदान किया लेकिन अस्वीकार किए गए वोट में रिपब्लिकन की तुलना में डेमोक्रेट के वोट कहीं ज्यादा रहे। दूसरी बात यह कि पहली बार वोट डालने वालों में भी डेमोक्रेट की अच्छी पकड़ है लेकिन इनके वोट डालने में गलती कर बैठने की संभावना अधिक है।

डेमोक्रेट ने इन स्विंग राज्यों में मेल-वोटिंग के तरीके के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए विज्ञापन परअच्छा-खासा खर्च किया है लेकिन फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस बार बड़ी संख्या में वोट खारिज होने वाले हैं।


रिपब्लिकन भी इन राज्यों में भारत की तरह वाट्सएप पर फर्जी खबरों को फैलाकर भारतीय- अमेरिकी समुदाय के बुजुर्गों को बहला-फुसलाकर डेमोक्रेट को वोट न देने के लिए मना रहे हैं क्योंकि यह समुदाय पारंपरिक रूप से डेमोक्रेट के पक्ष में जाता है। उन राज्यों में जहां पिछली बार एक प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से नतीजे आए थे, वहां एक-एक वोट मायने रखता है। और फिर मेल-वोट को लेकर 50 राज्यों में 50 कानून होने का मामला है। इसका नमूना देखिए: मिशिगन का कानून कहता है कि उन्हीं मतपत्रों की गिनती होगी जिनमें 2 नवंबर से पहले का पोस्टमार्क हो और नवंबर17 से पहले गिनती केंद्र पर पहुंच गए हों। वहीं, विस्कॉन्सिन का कानून कहता है कि मतपत्र पर 3 नवंबर तक का पोस्टमार्क हो और ये 9 नवंबर तक गिनती केंद्र पर पहुंच जाएं। जबकि उत्तरी केरोलिना उन मतपत्रों को गिनने की अनुमति देता है जिन्हें 3 नवंबर तक चिह्नित किया गया हो और 12 नवंबर तक केंद्र पर पहुंच गए हों।

अब सबसे महत्वपूर्ण पेंसिल्वेनिया की बात। राज्य सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 3 नवंबर तक अगर मतपत्र पोस्टमार्क कर दिए जाएं तो ये अधिकतम 6 नवंबर तक गिनती केंद्रों तक पहुंच जाएं। इसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जहां 8 सदस्यीय खंडपीठ में 4-4 से मामला टाई हो गया और तब एमी कोनी बैरेट को 9वें न्यायाधीश के रूप में शामिल किया गया। रिपब्लिकन एक बार फिर अपील दायर करेंगे और उस स्थिति में वे अब इसे 5-4 से जीतेंगे। इसलिए डेमोक्रेट किसी प्रकार का जोखिम लेना नहीं चाहते और कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे वोटर मेल सेवा पर निर्भर न रहकरअपने मतपत्र को स्वयं गिनती केंद्र तक पहुंचा दें।

हालांकि यह याद रखना चाहिए कि किसी भी नजदीकी मुकाबले में 2000 के चुनाव का दोहराव हो सकता है। इस बात की ज्यादा संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट में 6-3 के बहुमत को देखते हुए वहां से नियम-कायदों और परंपराओं की धता बताते हुए ट्रंप के पक्ष में फैसला आए। इससे एक संवैधानिक संकट की स्थिति बनेगी जहां डेमोक्रेट्स को विनम्रता के साथ झुकना पड़ेगा जैसा 2000 में हुआ था। इस वजह से माना जा सकता है कि रिपब्लिकन चाहेंगे कि संकट उस स्तर तक बढ़े।


और बात इतनी ही नहीं। मतपत्रों को छांटने भी का मुद्दा है। यहां भी अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग नियम हैं। मिशिगन, विस्कॉन्सिन और पेंसिल्वेनिया में उपर्युक्त कानून को ध्यान में रखते हुए उनके नतीजे उसी रात नहीं आएंगे क्योंकि वे आने वाले मेल-वोटों की प्रतीक्षा करेंगे और इसमें काफी दिन लग सकते हैं। इसलिए जब मामला नजदीकी हो तो इस कारक को भी ध्यान में रखना होगा। ये राज्य मेल-मतपत्रों को केवल बाद के कुछ दिनों या चुनाव के दिन ही छांटना शुरू करते हैं। इसका मतलब है कि ये राज्य वैसे भी परिणाम का मिलान करने में अधिक समय लेंगे। इसके विपरीत, फ्लोरिडा, एरिजोना आदि में कानूनी प्रावधान आपको इजाजत देते हैं कि मेल-बैलट को पहले से ही छांट लें और इस कारण वे उसी रात नतीजा घोषित करने की हालत में होंगे।

इसने एक बहुत ही रोचक स्थिति को जन्म दिया है। क्योंकि फ्लोरिडा और एरिजोना तुरंत परिणाम बताने में सक्षम होंगे, अगर ट्रंप इन राज्यों को खो देते हैं, तो वह तुरंत चुनाव हार जाएंगे। लेकिन अगर वह जीत जाते हैं, तो इसका उलट होना उतना आसान नहीं रहेगा। बेशक बिडेन अब भी रस्ट-बेल्ट जीतकर चुनाव जीत सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह है कि परिणाम दिनों और हफ्तों तक खिंचेगा। क्योंकि ज्यादातर डेमोक्रेट मेल से मतदान करेंगे और जिन्हें धीरे-धीरे गिना जाएगा, रिपब्लिकन संभवतः कई राज्यों में शुरुआती बढ़त ले लेंगे। इस घटना को “ब्लूशिफ्ट” कहा जाता है।

अगर परिणाम का अंतर एक प्रतिशत से कम होता है तो रिपब्लिकन सुप्रीम कोर्ट में दौड़ेंगे औरअदालत से कथित दोषपूर्ण मतपत्रों को खारिज करने की मांग करेंगे क्योंकि वे 2000 के चुनाव में ऐसा करने में कामयाब रहे थे। तकनीकी रूप से, कांग्रेस को इस तरह के संवैधानिक संकट के समय हस्तक्षेप करने का अधिकार है लेकिन चूंकि सीनेट और सदन में पार्टी के लिहाज से समीकरण अलग होगा, नजदीकी मुकाबले में स्थिति निश्चित ही उलझाने वाली होगी और ट्रंप इस तरह की तमाम स्थितियों में लाभ में रहेंगे।

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