दुनिया की खबरें: बांग्लादेश में एक और तख्तापलट की अटकलें और अफगानिस्तान के साथ 'दुश्मनी' भुलाने को तैयार पाकिस्तान
बांग्लादेश में सैन्य शासन लागू होने या आपातकाल लगने की अटकलें तेज हो गई हैं। सेना, प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच बढ़ते तनाव ने इन चिंताओं को जन्म दिया है कि आर्मी मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के खिलाफ कदम उठा सकती है।

बांग्लादेश में सैन्य शासन लागू होने या आपातकाल लगने की अटकलें तेज हो गई हैं। सेना, प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच बढ़ते तनाव ने इन चिंताओं को जन्म दिया है कि आर्मी मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के खिलाफ कदम उठा सकती है।
ढाका में बांग्लादेशी सेना की तैनाती ने तख्तापलट की अफवाहों को और हवा दी है। रिपोर्टों से पता चलता है कि बांग्लादेशी सेना की सावर स्थित 9वीं डिवीजन की टुकड़ियां इक्ट्ठी हो रही हैं और उन्होंने चरणबद्ध तरीके से राजधानी में प्रवेश करना शुरू कर दिया है।
देश के प्रमुख मीडिया आउटलेट, नॉर्थईस्ट न्यूज के अनुसार, सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों का कहना है कि सेना खासतौर से ढाका में नियंत्रण मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
हालांकि, बढ़ती अटकलों को शांत करने की कोशिश में सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने सोमवार को अफवाहों को खारिज करते हुए धैर्य रखने की अपील की।
ढाका छावनी में 'अधिकारी अभिभाषण' में देश भर से आए वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को संबोधित करते हुए जनरल वाकर ने सेना के समर्पण, पेशेवर रवैय की सराहना की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गलत सूचनाओं की वजह से ध्यान नहीं भटकना चाहिए।
जनरल वाकर ने बिगड़ती कानून व्यवस्था, गलत सूचना के खतरे और भड़काऊ बयानबाजी सहित प्रमुख चिंताओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा 'देश और उसके लोग सेना की सर्वोच्च प्राथमिकता बने हुए हैं'।
सेना प्रमुख ने सैनिकों से सतर्क रहने और उकसावे के आगे न झुकने की अपील की।
बता दें सेना छह महीने से अधिक समय से मजिस्ट्रेसी शक्तियों का इस्तेमाल कर रही है और नागरिक प्रशासन की मदद कर रही हैं।
सुरक्षा बलों ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाने और यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हाल के महीनों में राजनीतिक दलों और छात्र संगठनों के बढ़ते विरोध के कारण तनाव बढ़ गया है, जिससे सैन्य हलकों में बेचैनी पैदा हो गई है।
इन हालात ने कथित तौर पर सेना के भीतर कुछ गुटों को असहमति की आवाजों को नियंत्रित करने के उपायों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, जनरल वाकर ने किसी भी आवेगपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह के कदम देश को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों के हितों की पूर्ति कर सकते हैं।
नाजुक हालात ने एक और मोड़ तब ले लिया जब शुक्रवार को जारी एक पूर्व-रिकॉर्डेड वीडियो में एक छात्र नेता ने सेना प्रमुख के खिलाफ विस्फोटक आरोप लगाए।
एक अन्य प्रमुख छात्र कार्यकर्ता और नई नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी), हसनत अब्दुल्ला ने हाल ही में सेना के खिलाफ एक जन आंदोलन शुरू करने की धमकी दी।
अंतरिम सरकार में स्थानीय सरकार, ग्रामीण विकास और सहकारिता मंत्रालय के सलाहकार के रूप में कार्य करने वाले आसिफ महमूद शोजिब भुइयां ने दावा किया कि जनरल वाकर शुरू में मुख्य सलाहकार के रूप में मोहम्मद यूनुस की नियुक्ति का समर्थन करने में अनिच्छुक थे।
11 मार्च को अब्दुल्ला और जनरल वाकर के बीच एक गुप्त बैठक की खबरें आईं, जिसके दौरान सेना प्रमुख ने कथित तौर पर शेख हसीना की अवामी लीग के राजनीति में लौटने और चुनाव लड़ने की संभावना का संकेत दिया।
अफगानिस्तान के साथ 'दुश्मनी' भुलाने को तैयार पाकिस्तान, क्या बेहतर होंगे रिश्ते?
पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए नए सिरे से कोशिश करने का फैसला किया है। अफगानिस्तान के लिए विशेष प्रतिनिधि सादिक खान के नेतृत्व में एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की काबुल यात्रा के दौरान यह निर्णय लिया गया था।
पाकिस्तानी टीम की यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के जाने के तुरंत बाद हुई थी।
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की यात्रा का उद्देश्य कूटनीतिक जुड़ाव को आगे बढ़ाना, व्यापार, सीमा प्रबंधन और शरणार्थी मुद्दे पर सहयोग को मजबूत करना था।
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि दोनों पक्ष उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल यात्राओं का एक साल का कार्यक्रम बनाने पर सहमत हुए, जिसमें इशाक डार की काबुल यात्रा भी शामिल है।
सूत्र ने कहा, "हम दोनों देशों के बीच कोई संवादहीनता नहीं छोड़ना चाहते हैं। दोनों पक्षों के मंत्री नियमित रूप से एक-दूसरे के यहां जाएंगे और ऑनलाइन बैठकों का भी कार्यक्रम है।"
एजेंडे में शामिल प्रमुख और महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक तोरखम सीमा पर चल रही स्थिति है। दोनों पक्षों की तकनीकी टीमें अप्रैल में सीमा पर विवादित क्षेत्रों पर चर्चा करने के लिए मिलने वाली हैं। वे समाधान खोजने के लिए उपग्रह इमेजरी, मानचित्रों और संरचनात्मक डिजाइनों की भी समीक्षा करेंगे।
इस बीच पाकिस्तान और अफगानिस्तान पाक-अफगान तोरखम सीमा को फिर से खोलने पर सहमत हुए। विवादित सीमा के आसपास अफगान बलों की ओर से निर्माण कार्य करने की वजह से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया जिसकी वजह से तोरखम क्रॉसिंग को बंद करना पड़ा। विवाद के चलते हिंसक झड़पे भी हुईं जिसमें सीमा के निकट कई सशस्त्र बल कर्मियों और नागरिकों की मौत हो गई।
संयुक्त समन्वय आयोग (जेसीसी) की बैठक, जो लंबे समय से लंबित थी, को भी पुनर्निर्धारित किया जाएगा। जेसीसी की बैठकों की बहाली को द्विपक्षीय सहयोग को संस्थागत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
पाकिस्तान के अवैध रूप से रह रहे या अफगान नागरिक कार्ड रखने वाले लाखों अफगानों को निर्वासित करने के फैसले पर भी चर्चा की गई, क्योंकि इनके लिए स्वेच्छा से पाकिस्तान छोड़ने की समय-सीमा 31 मार्च को समाप्त हो रही है।
पाकिस्तान का कहना है कि वह समय-सीमा समाप्त होने के बाद देश में अवैध रूप से रह रहे अफगान नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी को तोरखम सीमा के जरिए उनके देश वापस भेजा जाए।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि दोनों देशों के बीच सभी लंबित मामलों को निरंतर बातचीत के ज़रिए सुलझाया जा सकता है।
हालांकि, सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और बाड़ लगाने से जुड़े संवेदनशील मुद्दे और अफगान नागरिकों की वापसी, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण कारक बने हुए हैं।
बता दें दोनों देशों के बीच तनाव का मुख्य कारण पाकिस्तान का यह आरोप है कि अफगानिस्तान टीटीपी जैसे आतंकी संगठनों पनाहगाह बना हुआ है। वहीं तालिबान प्रशासन इस आरोप को खारिज करता रहा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पाकिस्तान में कई आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका है।
बांग्लादेश : पुलिस के साथ हिंसक झड़प में कई मजूदर घायल, क्या है मामला?
बांग्लादेश की राजधानी में मंगलवार को पुलिस के साथ हुई झड़प में कई कपड़ा मजदूर घायल हो गए। प्रदर्शनाकरियों ने श्रम भवन से सचिवालय की ओर मार्च करने की थी।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश भर में कई कारखानों के मजदूर पिछले तीन दिनों से ढाका के श्रम भवन में अपने बकाया वेतन की मांग को लेकर धरना दे रहे थे।
घायल मजदूरों को बाद में इलाज के लिए ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल (डीएमसीएच) ले जाया गया।
गारमेंट वर्कर्स ट्रेड यूनियन सेंटर के महासचिव सादिकुल रहमान शमीम ने बांग्लादेशी समाचार आउटलेट बीडीन्यूज24 को बताया, "मजदूरों के बैरिकेड तक पहुंचने से पहले ही पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाठियां भांजी। जब मजदूरों ने फिर से इकट्ठा होने की कोशिश की, तो पुलिस ने फिर से हस्तक्षेप किया। मैंने खुद सात या आठ मजदूरों को अस्पताल भेजा, लेकिन घायलों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।"
बांग्लादेश गारमेंट्स एंड स्वेटर्स वर्कर्स यूनियन के एक अन्य नेता ने चेतावनी दी कि अगर ईद से पहले वेतन और बोनस का भुगतान नहीं किया गया तो कर्मचारी त्योहार के दिन मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के कार्यालय का घेराव करेंगे। उन्होंने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।
इससे पहले, धरना-प्रदर्शन के दौरान एक कपड़ा कर्मचारी की मौत के बाद प्रदर्शनकारी वर्कर ने श्रम भवन के अधिकारियों को सात घंटे तक बंधक बनाए रखा। बाद में उच्च स्तरीय सरकारी बैठक के आश्वासन के बाद अधिकारियों को मुक्त किया गया।
हाल ही में, हज़ारों मजदूरों ने फैक्टरी को फिर से खोलने, वार्षिक छुट्टी, बकाया छुट्टी भुगतान और बोनस की मांग को लेकर प्रदर्शन किया और ढाका-मैमनसिंह राजमार्ग को जाम कर दिया। उन्होंने दो घंटे तक राजमार्ग को जाम रखा जिससे यातायात की आवाजाही बाधित रही।
इस सप्ताह की शुरुआत में सैकड़ों श्रमिकों ने वेतन न मिलने के मुद्दे पर गाजीपुर के भोगरा बाईपास चौराहे पर ढाका-तंगैल और ढाका-मैमनसिंह हाईवे को जाम कर दिया था। विरोध प्रदर्शन के कारण पहले से ही भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में यातायात जाम की स्थिति पैदा हो गई। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि 300 से अधिक मजदूरों को उनका वेतन नहीं मिला। अधिकारी बिना कोई वैध कारण बताए उनके वेतन में देरी कर रहे हैं।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह गाजीपुर के कलियाकोइर में कम से कम 15 कपड़ा कारखानों के मजदूरों ने एक कारखाने के बंद होने और श्रमिकों पर कथित हमले के विरोध में ढाका-तंगैल हाईवे को ब्लॉक कर दिया था।
नवंबर 2024 में जारी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका और भूटान के बाद बांग्लादेश में दक्षिण एशियाई देशों में कम वेतन वाले मजदूरों का तीसरा सबसे बड़ा प्रतिशत है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस बढ़ती असमानता ने कम आय वाले और अकुशल श्रमिकों को भोजन की खपत कम करने के लिए मजबूर किया है।
अगस्त 2024 में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही बकाया भुगतान न मिलने और काम करने की बिगड़ती परिस्थितियों को लेकर पूरे देश में श्रमिकों के विरोध और हड़तालों ने जोर पकड़ लिया है।
कई रिपोर्टों से पता चला है कि मजदूरों के लगातार विरोध प्रदर्शन के कारण कई फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं, जबकि विरोध मार्च के दौरान कई श्रमिकों की जान भी चली गई या वे गंभीर रूप से घायल हो गए।
भारत ने पाकिस्तान को दी कश्मीर छोड़ने की चेतावनी, कहा- आतंकवाद को सही ठहराना बंद करे
भारत ने पाकिस्तान से कहा है कि वह जम्मू और कश्मीर में अवैध रूप से कब्जे वाली जमीन को खाली करे और राज्य प्रायोजित आतंकवाद को सही ठहराना बंद करे।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का मुद्दा बार-बार उठाने की कोशिश के जवाब में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने सोमवार को कहा, "ऐसे बार-बार के उल्लेख न तो उनके अवैध दावों को सही ठहराते हैं और न ही उनके राज्य द्वारा प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद को उचित ठहराते हैं।"
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान, जम्मू और कश्मीर के क्षेत्र पर अवैध कब्जा जारी रखे हुए है, जिसे उसे खाली करना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "यह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 के अनुरूप होगा, जो 21 अप्रैल 1948 को पारित हुआ था और जिसमें पाकिस्तान से अपनी सेनाओं और घुसपैठियों को कश्मीर से हटाने की मांग की गई थी।"
हरीश ने कहा, "जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और हमेशा रहेगा।"
उन्होंने कहा, "हम पाकिस्तान को सलाह देंगे कि वह अपने संकीर्ण और विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस मंच का ध्यान भटकाने की कोशिश न करे।"
इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मामलों के कनिष्ठ मंत्री सैयद तारिक फातमी ने कहा कि परिषद को कश्मीर के लिए जनमत संग्रह पर अपने प्रस्ताव को लागू करना चाहिए।
हालांकि, उस प्रस्ताव में यह मांग की गई कि पाकिस्तान "जम्मू और कश्मीर राज्य से उन कबीलों और पाकिस्तानी नागरिकों को हटाने की व्यवस्था करे, जो वहां सामान्य निवासी नहीं हैं और लड़ाई के उद्देश्य से राज्य में घुसे हैं।"
प्रस्ताव में यह भी आदेश दिया गया था कि पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करना या घुसपैठ कराना बंद करे। इसमें इस्लामाबाद से कहा गया कि वह "ऐसे तत्वों के राज्य में किसी भी घुसपैठ को रोके और राज्य में लड़ रहे लोगों को सामग्री सहायता प्रदान करने से रोक लगाए।"
जब परिषद का प्रस्ताव पारित हुआ था, तब जनमत संग्रह नहीं हो सका क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर से अपनी वापसी की शर्त का पालन करने से इनकार कर दिया था।
भारत का कहना है कि अब जनमत संग्रह अप्रासंगिक हो गया है, क्योंकि कश्मीर के लोगों ने चुनावों में हिस्सा लेकर और क्षेत्र के नेताओं को चुनकर भारत के प्रति अपनी निष्ठा स्पष्ट कर दी है।
फातमी ने भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यूएनएमओजीआईपी) का जिक्र किया, जिसकी स्थापना 1949 में नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम की निगरानी के लिए की गई थी।
भारत यूएनएमओजीआईपी की मौजूदगी को बमुश्किल बर्दाश्त करता है और इसे इतिहास का अवशेष मानता है, जो 1972 के शिमला समझौते के बाद अप्रासंगिक हो गया। इस समझौते में दोनों देशों के नेताओं ने कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय मुद्दा घोषित किया था, जिसमें तीसरे पक्ष के लिए कोई जगह नहीं थी। भारत ने नई दिल्ली में सरकारी इमारत से यूएनएमओजीआईपी को हटा दिया है।
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