साल जो गुजर गयाः वो 5 अंतरराष्ट्रीय हस्तियां जिनके जाने से दुनिया थोड़ी और खामोश हो गई

ये वो शख्सियतें थीं जिन्होंने दुनिया को अपने ज्ञान से चौंकाया। किसी ने चिंपाजियों की खूबियां बताई थीं, किसी ने हाथियों की भाव भंगिमाओं का अध्ययन किया था, कोई लाखों लोगों की आवाज बना तो एक ऐसी शख्सियत भी थे जिन्होंने इमारतों के जरिए कविता गढ़ी!

साल जो गुजर गयाः वो 5 अंतरराष्ट्रीय हस्तियां जिनके जाने से दुनिया थोड़ी और खामोश हो गई
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नवजीवन डेस्क

साल 2025 जाते-जाते अपने पीछे कई ऐसे सबक, घटनाएं और मोड़ छोड़ जाएगा, जिनके साथ हम 2026 में कदम रखेंगे। 2025 में कुछ ऐसी हस्तियां दुनिया से विदा हुईं जिन्होंने विज्ञान, साहित्य, मानवाधिकार, प्रकृति-संरक्षण और वैश्विक सोच को बदलने में अपनी पूरी जिंदगी होम कर दी। ये वो शख्सियतें थीं जिन्होंने दुनिया को अपने ज्ञान से चौंकाया। किसी ने चिंपाजियों की खूबियां बताई थीं, किसी ने हाथियों की भाव भंगिमाओं का अध्ययन किया था, कोई लाखों लोगों की आवाज बना तो एक ऐसी शख्सियत भी थे जिन्होंने इमारतों के जरिए कविता गढ़ी!

सबसे बड़ा झटका तब लगा जब अक्टूबर में प्रसिद्ध पर्यावरणविद और प्राइमेटोलॉजिस्ट जेन गुडॉल इस दुनिया से विदा हो गईं। चिंपांजी के व्यवहार और भावनाओं पर उनके अद्वितीय शोध ने दुनिया को नई दिशा दी। घने जंगलों में रहने वाला चिंपांजी केवल औजार बनाना ही नहीं जानता बल्कि उसके बखूबी इस्तेमाल में भी माहिर है- इससे पहला परिचय कराने वाली गुडॉल ही थीं। ताउम्र प्राइमेट्स की भाव भंगिमाओं को समझने और पर्यावरण से आम इंसान को प्यार करने का सबक सिखाया। गुडॉल का 1 अक्टूबर 2025 को देहांत हो गया।


इतिहास और राजनीति को सरल भाषा में समझाने वाली आवाज बहराम मोशिरी भी 10 नवंबर को दुनिया से रुखसत हो गए। उनके जाने से ईरानी प्रवासी समाज ने एक बेहद प्रभावशाली व्यक्तित्व खो दिया। मोशिरी की पहचान सिर्फ एक इतिहासकार की नहीं थी, बल्कि एक ऐसे कम्युनिकेटर की थी, जिसने जटिल विषयों को आम इंसान तक पहुंचाकर संवाद को मजबूत किया।

यूरोप में अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता का एक मजबूत स्तंभ मानी जाने वाली नार्वे की लेखिका हेगे न्यूथ 30 नवंबर को मात्र 59 साल में दुनिया को अलविदा कह गईं। वह अपने समाज में खुलकर बोलने, लिखने और विचारों की आजादी की हिमायती थीं। उनकी उपस्थिति उन देशों के लिए एक प्रतीक थी जो लोकतंत्र की बुनियादी आवाज को जिंदा रखना चाहते हैं।


5 दिसंबर को आधुनिक वास्तुकला के जादूगर फ्रैंक गेहरी भी दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी इमारतें कभी चमत्कृत करती थीं तो कभी कविता सरीखी बहती सी महसूस होती थीं। यह बताती थीं कि रचनात्मकता की कोई हद नहीं होती। गगनहाइम म्यूजियम और डिज्नी कॉन्सर्ट हॉल जैसे चमत्कार सिर्फ संरचनाएं नहीं, बल्कि वह साहस थे जो बताते हैं कि कला और विज्ञान जब मिलते हैं, तो ईंट-पत्थर भी बोल उठते हैं।

8 दिसंबर को ही एक और वन्यप्रेमी हमें छोड़ कर चले गए। वन्यजीवों और विशेषकर अफ्रीकी हाथियों की रक्षा में अपना जीवन समर्पित करने वाले जीवविज्ञानी इयान डगलस-हैमिल्टन का निधन भी पूरी संरक्षण दुनिया के लिए बड़ा आघात रहा। उन्होंने दशकों तक हाथियों की संख्या, उनके बर्ताव और भविष्य को समझने के लिए जमीन पर उतरकर वह काम किया जिसे दुनिया भर में “संरक्षण विज्ञान का दिल” कहा जाता था। उनके न रहने से अफ्रीकी जंगलों में एक ऐसी आंख कम हो गई, जो हर हाथी को परिवार की तरह देखती थी। दुखद बात ये रही कि सैर पर निकले डगलस पर मधुमक्खियों ने हमला किया और बाद में उनकी मौत हो गई।