नीतीश कुमार से जरूर बदला लेकर रहेंगे नरेंद्र मोदीः जीतन राम मांझी

बिहार में एनडीए के अहम सहयोगी रहे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेकुलर (हम) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन का हाथ थाम राज्य की सियासत में तूफान ला दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नियाज़ आलम

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने एनडीए से अलग होने के बाद नीतीश कुमार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हालांकि, मांझी जहां नीतीश कुमार को अपना निजी कद बढ़ाने वाला मुख्यमंत्री बताकर उन पर तीखा हमला कर रहे हैं, वहीं वह पीएम नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने से बचने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। बिहार में आगामी उपचुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव समेत कई मुद्दों पर जीतन राम मांझी ने नवजीवन से विशेष बातचीत में बेबाकी से अपनी राय रखी। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।

मांझी जी, एनडीए का साथ छोड़ कर आप महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं। इसकी क्या वजह है, क्या एनडीए में घटक दलों की नहीं सुनी जाती है ?

देखिए, बात सुनी जाती है या नहीं सुनी जाती है, यह अलग मामला है। बात ये है कि मैंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेकुलर का गठन ही इसलिए किया था कि अपने मुख्यमंत्री रहते जो 34 जनउपयोगी निर्णय मैंने लिए थे, उसे राज्य में लागू करवा सकें। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब महागठबंधन में थे तो हमने उनसे कहा था कि आप एनडीए में आ जाइए और इन फैसलों को लागू कीजिए। जब नीतीश कुमार एनडीए में आ गए तो हमें लगा कि अब सभी फैसले लागू हो जाएंगे। लेकिन उन्होंने किसी भी निर्णय को सही रूप में लागू नहीं किया। दूसरी तरफ हमारे कार्यकर्ता भी लगातार दबाव बना रहे थे कि जिन फैसलों के लिए पार्टी का गठन किया गया था, उसे तो लागू किया ही नहीं जा रहा। एनडीए से अलग होने का एक बड़ा कारण यह भी है।

जहां तक घटक दलों की बात न सुनने की बात है, तो यह सही है। 2015 में जब हमने उनका साथ दिया तो हमें भी उसी तरह से लाभ मिलना चाहिए था, जिस तरह से दूसरे दलों को मिला। दूसरे दलों से मंत्री बनाए गए। हमारी पार्टी में मेरे सिवा कोई विधायक नहीं था, तो ऐसे में हमें और हमारे लोगों को अन्य विभागों में एडजस्ट किया जाना चाहिए था, जो नहीं हुआ। उपचुनाव की बात करें तो जब मैं मुख्यमंत्री था, तो गया और जहानाबाद में काफी बेहतर काम किया। लोगों का यह मानना था कि अगर जीतन राम मांझी तीन-चार महीने और मुख्यमंत्री रहते, तो इन क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाता। लेकिन इन बातों को भी दरकिनार कर गठबंधन ने जहानाबाद से हमें टिकट नहीं दिया, जबकि वहां से हमारी जीत पक्की थी। तमाम परिस्थितियों के हमारे अनुकूल रहने के बावजूद उनलोगों ने नौटंकी कर दी और हमें टिकट नहीं दिया। दरअसल गठबंधन में कोआर्डिनेशन नाम की कोई चीज ही नहीं है। किसी भी निर्णय में कभी कोई राय नहीं ली जाती। ऐसी परिस्थिति में कोई गठबंधन के साथ कैसे रह सकता है। राज्य में शराबबंदी हो या बालू बंदी सभी मामलों में हमने अपनी जबान बंद रखी, लेकिन दिल में हमेशा यही लगता रहा कि हम इन लोगों का साथ देकर पाप कर रहे हैं।

जैसा कि आपने कहा कि बिहार में शराबबंदी में पकड़े गए 99% लोग दलित, महादलित और पिछड़े वर्ग से हैं, गरीब हैं। ऐसे में नीतीश कुमार की शराबबंदी कितनी सफल है और आप शराबबंदी के इस फैसले को किस तरह से देखते हैं ?

देखिये शराबबंदी पूरी तरह से फ्लॉप है। पहले जितनी मात्रा में शराब मिलती थी, अब उससे भी ज्यादा शराब बिक रही है। पुलिसकर्मी और अधिकारी मालामाल हो रहे हैं। मेरा कहना है कि शराबबंदी तो अच्छी चीज है, लेकिन जिस रूप में नीतीश कुमार शराबबंदी को लागू करवा रहे हैं, वह ठीक नहीं। इसमें गरीब परेशान हो रहे हैं। इन गरीबों में दलित और महादलित नहीं बल्कि सभी गरीब हैं, चाहे वह अल्पसंख्यक हो या स्वर्ण। मैं सभी गरीबों की बात कर रहा हूं।

मुजफ्फरपुर हो या नंदन गांव, पिछले कुछ समय में दलितों के खिलाफ बड़ी संख्या में अपराध हुए हैं। सुशासन का दावा करने वाले नीतीश कुमार के राज में दलित, महादलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कितने सुरक्षित हैं ?

सवाल यह है कि अपराध होना और बात है, लेकिन अपराध हो जाने के बाद उसके खिलाफ कार्यवाही करना दूसरी बात है। नीतीश कुमार के राज में ऐसे मामलों में जो कार्यवाही होती है उसकी दिशा ही बिल्कुल उल्टी होती है। यहां पीड़ित ही परेशान होता है। हमने रेप जैसी कई घटनाएं देखी हैं, जिनमें आरोपी खुलेआम घूम रहा है और पीड़ित परेशान है। सच तो यह है कि यहां अलग-अलग वर्ग के लिए अलग-अलग कानून है। जो नीचे तबके के लोग हैं उन्हें बिना वजह मुकदमों में फंसा दिया जाता है। उनको डराया जाता है और इसी कारण कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।

क्या आप मानते हैं कि वर्तमान बिहार सरकार सूबे में संघ के एजेंडे को लागू करने में जुटी है ?

देखिए हमें तो ऐसा लगता है कि नीतीश सरकार के पास कोई सटीक एजेंडा ही नहीं है। वर्तमान सरकार के पास सिर्फ और सिर्फ एक ही एजेंडा है और वह है गरीबों के नाम पर नीतीश कुमार के छवि को उभारना। यहां शौचालय नहीं बन रहे, इंदिरा आवास नहीं बन रहा, बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल रहा। जो काम होना चाहिए वह तो नहीं हो रहा और सरकार बड़े-बड़े कन्वेंशन हॉल और म्यूजियम बनवा रही है। लगभग 600 करोड़ की लागत से राजधानी में म्यूजियम बनवाने की क्या आवश्यकता है? अगर इसे बनवाना ही था तो मसौढ़ी या हिलसा जैसे छोटी जगह पर बनवाना चाहिए था ताकि वहां का विकास हो सके। लेकिन नीतीश कुमार ने यह सब केवल वाहवाही लूटने के लिए किया। नीतीश कुमार यह सब केवल अपना निजी कद बढ़ाने के लिए करते हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आप पुराने साथी हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर आप उनकी कार्यशैली को किस तरह देखते हैं ?

देखिए जब हम उनके साथ थे, तब भी हम उनको बहुत सारी बातें कहते थे। हमने शराबबंदी के फैसले पर भी उनको कहा था कि यह फैसला ठीक नहीं है। इससे गरीबों को कोई फायदा नहीं होगा बल्कि वह परेशान ही होंगे। उनको यह भी कहा था कि 5 एकड़ जमीन वाले किसानों की बिजली माफ की जाए, बेरोजगारों को रोजगार दिया जाए, लेकिन वह यह सब कभी नहीं करते। हमने ठेकेदारी में आरक्षण की बात की ताकि गरीबों को फायदा हो सके। बात सिर्फ इतनी है कि उनको सफलता मिलती चली गई। उन्होंने चालाकी से लालू प्रसाद का इस्तेमाल किया और महागठबंधन के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन गए। आज दुनिया जानती है कि नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद की क्या दुर्दशा की है।

फिलहाल नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं और आप भी वहीं से आए हैं। फिलहाल एनडीए में नीतीश कुमार की क्या स्थिति है?

देखिए एनडीए के लोग, खास तौर पर नरेंद्र मोदी कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। नीतीश कुमार ने पहले उन्हें आमंत्रण दिया था और फिर साथ में खाने पर नहीं बुलाकर नीतीश कुमार ने जो उनका अपमान किया है, आज नहीं तो कल, वह इसका बदला जरूर लेंगे। अगर नीतीश कुमार सतर्क हैं तो आगे कितना सतर्क रहेंगे यह तो वही जानें, लेकिन नरेंद्र मोदी कायदे से इनसे हिसाब बराबर करेंगे। वह इन्हें छोड़ने वाले नहीं।

कहा जा रहा है कि रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी किसी भी वक्त एनडीए छोड़ सकते हैं। क्या इस संबंध में आपकी उनसे कोई बात हुई है?

कुशवाहा जी एनडीए छोड़ेंगे या नहीं छोड़ेंगे, यह उनकी पार्टी का अंदरुनी मामला है। हम इस पर कुछ क्यों कहेंगे। हालांकि, इतना जरूर है कि फिलहाल वह मंत्री हैं और गठबंधन से अलग होने पर उन्हें पद छोड़ना पड़ सकता है। इसलिए हो सकता है कि वह चुनाव के समय कोई फैसला लें।

केंद्र की मोदी सरकार को लगभग 4 साल होने वाले हैं? ऐसे में आप देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को कहां आंकते हैं ?

जहां तक मोदी सरकार का मामला है तो इसमें गरीबी दूर करने करने समेत कई मामले हैं, जिन्हें हम धरातल पर नहीं देखते हैं। मेरा मानना है कि राज्य स्तर पर नरेंद्र मोदी को जो फीडबैक दिया जाता है, वह सही नहीं है और यही कारण है की फिलहाल उनका कार्यकलाप संतुष्ट करने वाला नहीं है।

मोदी सरकार के दौरान देशभर में कई दलित विरोधी घटनाएं हुई हैं। देश और राज्य में सामाजिक न्याय की क्या स्थिति है ?

देखिये जहां तक सामाजिक न्याय की बात है तो हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दो बातें कही थी। एक तो यह की अनुसूचित जाति के अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण का जो विधेयक लटका हुआ है, उशे पारित करा दीजिए। इसके अलावा उनसे यह भी कहा था कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व नगण्य है। अगर आप इसमें आरक्षण लाएंगे तो आप चैंपियन हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ऐसे ही कुछ मुद्दों पर अगर नरेंद्र मोदी काम करते, तो वह देश के चैंपियन बन जाते, लेकिन हो सकता है कि वह किसी दबाव में ऐसा नहीं कर रहे हों।

मांझी जी। किस तरह के दबाव में नरेंद्र मोदी काम कर रहै हैं?

अब इस बात को पर्दे में ही रहने दीजिए।

अब आप महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं तो अब आपकी आगे की रणनीति क्या होगी?

आगे की रणनीति यही होगी कि हम महागठबंधन के साथ मिलकर सूबे में सरकार बनाएंगे और अपने मुख्यमंत्री काल में जो मैंने 34 जन उपयोगी निर्णय लिए थे, उसे लागू करेंगे। यह सभी निर्णय पूरी तरह से जन उपयोगी हैं।

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Published: 06 Mar 2018, 5:01 PM