बिहारः एनडीए में एका दिखाने की कोशिश जारी, लेकिन लोकसभा क्षेत्रों में बगावत चरम पर

बिहार में गठबंधन के अंदर बगावत की बू को दूर करने में एनडीए प्रत्याशी लगातार जुटे हैं, लेकिन एक तरफ की गंध पर काबू पाने की कोशिश में दूसरी तरफ से दुर्गंध आने लग रही है। पांचवे चरण के चुनाव से पहले यह बगावत बीजेपी-जेडीयू नेताओं के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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शिशिर

बिहार में 6 मई को लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण का मतदान होगा। मतदान की तैयारी में जुटे लोकसभा क्षेत्रों में सीतामढ़ी, मधुबनी, सारण और मुजफ्फरपुर को लेकर किसी से पूछिए तो सीधा जवाब मिलता है कि एनडीए आगे है। बाहर से ऐसा दिखता भी है। लेकिन, अंदर का हाल तो एनडीए के प्रत्याशियों को भी पता है। बगावत की बू को दूर करने में एनडीए प्रत्याशी जुटे हुए हैं, लेकिन एक तरफ की गंध पर काबू पाने की कोशिश में दूसरी तरफ से परेशानी की दुर्गंध आने लग रही है।

सीतामढ़ी में महागठबंधन की ओर से आरजेडी प्रत्याशी अर्जुन राय चुनाव में हैं। अर्जुन राय बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और जेडीयू से 2009 में सीतामढ़ी के ही सांसद थे। 2014 में जेडीयू के टिकट पर हार गए और इस बार आरजेडी के टिकट पर उतरे हैं। पुरानी पार्टी के मजबूत नेताओं का साथ और सांसद के रूप में अपना निजी अनुभव अर्जुन को ताकत दे रहा है तो दूसरी ओर उनके सामने जेडूयू ने ‘बॉरो प्लेयर’ उतारा है। जेडीयू ने यहां से पहले डॉ वरुण को टिकट दिया था, लेकिन असहयोग की बात कहते हुए उन्होंने उम्मीदवारी लौटा दी।

ऐसे में आनन-फानन में बीजेपी के पूर्व विधायक सुनील कुमार पिंटू को जेडीयू में एंट्री दिलाते हुए सीतामढ़ी का टिकट दे दिया गया। पिंटू खुद को एनडीए का कैंडिडेट बताते नहीं थक रहे ताकि बीजेपी का वोट भी आए और टिकट के नाते जेडीयू का भी। लेकिन, जेडीयू में इससे बेहद नाराजगी है। नामांकन के समय पिंटू की प्रस्तावक भी बीजेपी विधायक गायत्री देवी रहीं, न कि जेडीयू का कोई कद्दावर नेता।

दूसरी तरफ, अर्जुन राय भले जेडीयू से आए, लेकिन उन्हें टिकट देने वाली पार्टी आरजेडी के जिलाध्यक्ष ही उनके प्रस्तावक बने। यहां वैश्य मतदाताओं की तादाद करीब 15 प्रतिशत है और डॉ. वरुण के हटने से इस जाति के एक खेमे में जेडीयू के प्रति नाराजगी भी है। पिंटू भी वैश्य हैं, लेकिन उन्हें इस नाराजगी को दूर करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। पिंटू के लिए मुसीबत के रूप में निर्दलीय माधव चौधरी भी सामने हैं, जो एनडीए की कथित वोट बैंक अगड़ी जातियों में ठीकठाक प्रभाव रखते हैं।

सीतामढ़ी से भी ज्यादा लोग मुजफ्फरपुर में एनडीए को मजबूत मान रहे हैं, क्योंकि यहां से बीजेपी के मौजदा सांसद अजय निषाद को टिकट मिला है। लेकिन, महागठबंधन ने यहां से ‘सन ऑफ मल्लाह’ मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी, यानी वीआईपी को टिकट दिया है। वीआईपी ने राजभूषण चौधरी निषाद को उम्मीदवार बनाकर एनडीए प्रत्याशी के निषाद वोटरों पर एकतरफा वर्चस्व को ध्वस्त कर दिया है। इसी कारण एनडीए को इस सीट पर उम्मीद से अधिक पसीना बहाना पड़ रहा है। खुद नरेंद्र मोदी यहां सभा कर चुके हैं।

मधुबनी को एनडीए के लिए सहज कहा जा रहा है, क्योंकि यहां से पांच बार के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक यादव को बीजेपी ने टिकट दिया है। हुकुमदेव नारायण के बात-व्यवहार की क्षेत्र में चर्चा है, लेकिन अब तक अशोक यादव खुद की इमेज नहीं बना सके हैं। ऐसे में इस सीट को एनडीए के लिए सहज कहने वाले महागठबंधन की ताकत के साथ उतरे वीआईपी उम्मीदवार बद्री कुमार पूर्वे की जमीनी पहुंच को नहीं आंक पा रहे हैं। मुकेश साहनी अपनी खगड़िया सीट पर मतदान के बाद से लगातार मुजफ्फरपुर और मधुबनी में कैंपेनिंग कर रहे हैं। इसका फायदा पूर्वे को मिलता दिख रहा है।

सारण सीट पर राजीव प्रताप रूडी बीजेपी का टिकट पाने में कामयाब रहे, लेकिन अंत तक उनका नाम फंसा हुआ था। पहले केंद्रीय कैबिनेट से छंटनी और फिर टिकट मिलने को लेकर ऊहापोह के कारण रूडी की छवि सारण में पहले जैसी नहीं बची थी। टिकट मिलने के बाद रूडी ने हाथ-पांव मारना शुरू किया, लेकिन तब तक लालू समर्थकों से भरे सारण में उनके समधी चंद्रिका राय ने स्थिति मजबूत कर ली। अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ तेज प्रताप यादव खुद बयान जरूर दे रहे हैं, लेकिन महागठबंधन के ठीकठाक जनाधार के बीच इससे भी रूडी मजबूत होते नहीं दिख रहे। बेरोजगारी और धर्म के आधार पर बांटने की भाजपाई नीति भी लोगों को रास नहीं आ रही।

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