उत्तराखंड में अपने ही नेता बी सी खंडूरी के नाम से डर रही है बीजेपी

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे खंडूरी उसूल और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। रक्षा संबंधी संसदीय समिति के चेयरमैन रहते उनकी रिपोर्ट ने मोदी सरकार की रक्षा तैयारियों की पोल खोल दी थी। यही वजह है कि मोदी-शाह की राजनीति की शैली में ऐसे लोग फिट नहीं बैठते।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

उत्तराखंड से सांसद भुवन चंद्र खंडूरी हैं तो बीजेपी नेता लेकिन विपक्ष के लोग भी उनका सम्मान करते हैं। साल 2007 से 2009 और फिर, 2011 से 2012 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे खंडूरी उसूल और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण भी है। रक्षा संबंधी संसदीय समिति के चयरमैन रहते उन्होंने जो रिपोर्ट दी, उसने मोदी सरकार की रक्षा तैयारियों की पोल खोल दी।

मोदी-शाह की राजनीति की शैली में ऐसे लोग फिट नहीं बैठते। इसलिए उन्हें कोपभाजन का शिकार होना पड़ा है। खंडूरी खुद तो पार्टी लाइन से अलग कुछ नहीं बोल रहे, पर पौड़ी से उनके बेटे और कांग्रेस प्रत्याशी मनीष खंडूरी की यह बात लोगों के दिलों में उतर रही है कि “मैंने पिता की आंखों में दो ही दफा आंसू देखे- एक बार बहन की विदाई के वक्त और दूसरी दफा संसद की रक्षा समिति से हटाए जान पर।”

यह बात उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर असर डाल रही है। यहां हर सीट पर सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों की भरमार है, जिनमें खंडूरी का बेहद मान-सम्मान है। एक और बात ध्यान में रखने की है कि जब हरिद्वार कुंभ घोटाले की आंच बीजेपी को झुलसाने लगी थी, तब 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खंडूरी की ईमानदारी का कार्ड खेला था। इसलिए इस बार उसके पास कहने को कुछ नहीं है।

राज्य में पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक का चुनावी असर भी नहीं दिख रहा। यहां अगर कांग्रेस राफेल घोटाले पर आक्रमण कर रही है, तो आश्चर्य नहीं। देहरादून के रूरल लिटिगशन एंड एंटाइटिलमेंट केंद्र के अध्यक्ष पद्श्री अवधश कौशल कहते भी हैं कि मोदी सरकार में जीरो टॉलरेंस की बात की जाती है लेकिन राफेल जैसा घोटाला हो जाता है। जम्मू-कश्मीर में हालात बदतर हो गए हैं। जो विरोध करता है, उसे राष्ट्रविरोधी कह कर पाकिस्तान जाने की बात कह दी जाती है।

लेकिन बीजेपी के खिलाफ सिर्फ यही मुद्दा नहीं। दो ऐसी बातें हैं जो उसके लिए सिरदर्द है- एक, ऑल वदर रोड और दो, नमामि गंगे योजना। मई में चारधाम यात्रा होनी है। चारों धामों के कपाट खुलने से एक सप्ताह पहले ही बड़ी संख्या में लोग आने लगते हैं। लेकिन ऑल वेदर रोड अधूरा है। इससे स्थानीय ट्रैवल्स और होटल व्यवसायियों की परशानी बढ़ गई है।

चमोली जिले में आगाज फेडरेशन के अध्यक्ष जगदंबा प्रसाद मैठाणी कहते हैं कि केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारों ने विकास के नाम पर जमीनें पूंजीपतियों द्वारा कब्जाने की छूट दे दी है। गाय, गंगा और गायत्री के नाम पर सरकार में आई बीजेपी के शासन में गाय और गंगा- दोनों की ही दुर्दशा बड़ा चुनावी मुद्दा है।

गंगा रक्षा के लिए दो संतों स्वामी निगमानंद और स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के जीवन बलिदान और तीसरे ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का डेढ़ सौ से अधिक दिनों से जारी अनशन बीजेपी के लिए गले की हड्डी है। अरबों खर्च के बाद भी गंगाजल के प्रदूषित रहने पर उठ रहे सवालों के जवाब उसके पास नहीं हैं।

पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत भी कहते हैं कि नमामि गंगे अभियान तो अच्छा था मगर गंगा साफ नहीं हुई। डबल इंजन की सरकार का नारा देने वाली बीजेपी के शासनकाल में अपेक्षानुरूप विकास न होना और भ्रष्टाचार के किस्से आम होना मुश्किल पैदा कर रहे हैं। तब ही तो चाहे देहरादून के शिक्षाविद डॉ. राकेश काला हों या हल्द्वानी के सामाजिक चिंतक श्याम सिंह रावत- दोनों ही कहते हैं कि मोदी ने अपने कार्यकाल में विफलताओं छिपाने के लिए विकास के मुद्दे पीछे धकेल दिए।

डॉ काला तो दो कदम आगे बढ़कर कहते हैं कि हमें दो किस्म के फूलों से सावधान रहने की जरूरत है- एक अप्रैल फूल और दूसरा कमल का फूल। ज्ञानपीठ एवं व्यास सम्मान से अलंकृत पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी संभवतः इसीलिए कहते हैं कि “मोदी सरकार पर मैं क्या टिप्पणी करूं? जनता टिप्पणी करने जा रही है। उसका ही इंतजार है।”

(उत्तराखंड से जय सिंह रावत और ज्योति एस की रिपोर्ट)

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