असम में बांग्लादेशी हिंदुओं के भुरभुरे भरोसे पर है बीजेपी

बीजेपी असम में बांग्लादेश से आकर बसने वाले हिंदुओं को कैसे वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2018 तक आए हिंदुओं का भी वोटर आई कार्ड बन गया है। ये लोग पक्के मकान में रह रहे हैं और बिजली का कनेक्शन भी मिल गया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

बीजेपी किस तरह धर्म के आधार पर भेदभाव कर रही है और वह कैसे लोगों को सिर्फ वोट बैंक की नजर से देखती है, यह समझना हो तो असम एक अच्छी जगह है। यहां बांग्लादेश से साल 2018 तक आए हिंदुओं के वोटर आई कार्ड बना दिए गए हैं और राज्य में ही रह रहे मुसलमानों को ‘विदेशी’ करार दिया जा रहा है। जबकि 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद शायद ही कोई मुसलमान सीमा के उस पार से भारत में आया।

प्रधानमंत्री मोदी ने 4 जनवरी को बराक घाटी के सिलचर से चुनाव प्रचार शुरू किया। उन्होंने बराक घाटी को ही क्यों चुना, यह जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। साल 2016 के विधानसभा चुनावों में जीत से पहले तक बीजेपी मोटे तौर पर बराक घाटी तक ही सिमटी हुई थी, जहां बंगाली हिंदुओं की बड़ी संख्या थी। बीजेपी इन बंगाली हिंदुओं का वोट पाने के लिए यहां हिंदुत्व का कार्ड खेलती रही है। यहां बीजेपी के अच्छी स्थिति में आने के साथ ही सांप्रदायिक हिंसा की छिटपुट घटनाएं अक्सर हो जाया करती हैं।

बीजेपी बांग्लादेश से आकर बसने वाले हिंदुओं को कैसे वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2018 तक आए हिंदुओं का भी वोटर आई-कार्ड बन गया है। ये लोग पक्के मकान में रह रहे हैं और बिजली का कनेक्शन भी मिल गया है।

दूसरी ओर, 1971 के बाद से यहां शायद ही कोई मुसलमान बांग्लादेश से आया होगा। और हाल-फिलहाल बांग्लादेश से आया हिंदुओं का एक धड़ा लंबे समय से रहते आए मुसलमानों को ही ‘विदेशी’ साबित करने में जुटा है। बीजेपी ने नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिये बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का इरादा जाहिर किया है।

दरअसल, उसकी मंशा एक तीर से दो निशाने साधने की है। पहला, बांग्लादेश से आए हिंदू उसके वोटर बन जाएं और दूसरा, वह देश के दूसरे हिस्सों के अपने समर्थकों को बता सके कि वह हिंदुओं के लिए किस हद तक जा सकती है। ध्रुवीकरण के इस माहौल के बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सिलचर और करीमगंज लोकसभा क्षेत्र के बीच पड़ने वाले गांव पंचग्राम में रैली की। यह रैली काफी कुछ संकेत देती है।

तेज हवा और लगातार हो रही बारिश के कारण राहुल को पहुंचने में दो घंटे से भी ज्यादा देरी हुई, लेकिन 1.5 लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ डटी रही। लोग हाईवे पर इंतजार कर रहे थे और स्थिति यह थी कि राहुल के चले जाने के बाद भी भीड़ को छंटने में तीन घंटे लग गए। राहुल की इस सभा में बड़ी संख्या में मुसलमान, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों ने भाग लिया।

सिलचर और करीमगंज में 18 अप्रैल को चुनाव होना है और माना जा रहा है कि यहां मुकाबला खासा दिलचस्प होने जा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी सिलचर से सुष्मिता देव ने जीत दर्ज की थी। बगल की करीमगंज सीट से कांग्रेस ने साफ-सुथरी छवि वाले स्वरूप दास को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछली बार करीमगंज से राधेश्याम बिस्वास ने एआईयूडीएफ के टिकट पर चुनाव जीता था। लेकिन उसके बाद से पार्टी अपनी जमीन खोती गई है और हाल में हुए पंचायत चुनाव में उसका प्रदर्शन खासा खराब रहा।

स्वरूप दास ने कहा, “करीमगंज सुरक्षित सीट है और इस बार एआईडीयूएफ कोई फैक्टर नहीं है। इस क्षेत्र में 55 फीसदी वोट अल्पसंख्यकों के हैं, जिनमें मुसलमान, ओबीसी, एससी-एसटी हैं। ऐसे में भला राधेश्याम क्या कर लेंगे? बीजेपी प्रत्याशी कृपानाथ मल्लाह चाय बागान समुदाय से हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें लोगों का समर्थन नहीं मिलने जा रहा। वजह यह है कि पिछली बार मोदी ने वादा किया था कि न्यूनतम मजदूरी 350 रुपये कर दी जाएगी, लेकिन उन्हें तो अब भी 145 रुपये ही मिल रहे हैं।”

चाय समुदाय के बंधन रजत कहते हैं, “मैं ग्रेजुएट हूं, लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली। रोजगार के सारे अवसर खत्म हो गए हैं। हमारे लिए पेपर मिल एक उम्मीद थी, लेकिन बीजेपी सरकार इसके पक्ष में नहीं। हमारे लिए कोई अंतर नहीं कि प्रधानमंत्री कौन बनता है। लेकिन अगर हम कांग्रेस के उम्मीदवार को चुनते हैं तो महीने के 6,000 रुपये देने का वादा किया गया है।”

वहीं राहुल गांधी की रैली में भाग लेने वाले बहरुद्दीन चौधरी ने कहा, “कांग्रेस ने शिक्षा पर बजट बढ़ाने का वादा किया है। मेरे लिए यह जरूरी है कि बच्चों को शिक्षा और स्कॉलरशिप कैसे मिले।”

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