राजस्थानः कांग्रेस लहर और हर सीट पर आंतरिक कलह ने उड़ा दिए हैं बीजेपी के होश

राजस्थान में लोकसभा चुनाव के अगले चरण की 12 सीटों पर बीजेपी की हालत बहुत खराब है। विधानसभा चुनाव में वोटों के अंतर के हिसाब से कांग्रेस इस चरण की 12 में से 9 सीटों पर आगे है। बीजेपी की दूसरी दिक्कत यह है कि उसे हर सीट पर अंदरूनी कलह से भी जूझना पड़ रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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अंकित छावड़ा

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव परिणाम को आधार मानें तो लोकसभा चुनाव के अगले चरण की 12 सीटों पर बीजेपी की हालत बहुत खराब है। वोटों के अंतर के हिसाब से कांग्रेस इस चरण की 12 में से 9 सीटों पर बीजेपी से आगे है। इन सीटों में आने वाली विधानसभा सीटों की बात की जाए तो कांग्रेस ने कुल 56 सीटें जीती हैं जबकि बीजेपी सिर्फ 23 जीत पाई थी। वहीं अन्य के खाते में क्षेत्र की 17 सीटें गई थीं।

राजस्थान में पहले चरण में 13 सीटों पर वोट पड़े थे। ये वो सीटें थीं जिन पर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया था। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेताओं को इन सीटों पर खासी मशक्कत करनी पड़ी। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने चार सभाएं कीं, जबकि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक सभा और एक रोड शो किया। इसके अलावा हेमा मालिनी, सनी देओल और कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी प्रचार में अपनी ताकत झोंक दी।

दूसरे चरण में राजस्थान की उत्तरी और पूर्वी हिस्से की सीटों पर चुनाव होना है। यही वह क्षेत्र है जहां बीजेपी-कांग्रेस के अलावा कई सीटों पर बहुजन समाज पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी का भी दबदबा है।

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से बीजेपी ने गठबंधन कर लिया है, अन्यथा यह पार्टी भी बीजेपी के लिए चुनौती बनती। इन संसदीय सीट में पड़ने वाली विधानसभा सीटों की बात करें तो बीजेपी सिर्फ श्रीगंगानगर और बीकानेर सीटों पर आगे थी। बाकी सभी जगह कांग्रेस आगे रही है।

बीजेपी की दूसरी दिक्कत यह है कि उसे हर सीट पर अंदरूनी कलह से जूझना पड़ रहा है। अब जैसे, बीकानेर सीट को ही लें। यहां केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल बीजेपी प्रत्याशी हैं। उन्हें कांग्रेस के मदन गोपाल मेघवाल से कड़ी चुनौती मिल रही है। अर्जुन राम बीजेपी का दलित चेहरा माने जाते हैं। पर वह पार्टी के अंदर से ही विरोध का सामना करते रहे हैं।

बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने उनका विरोध करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया और सार्वजनिक तौर पर प्रचार के दौरान मेघवाल का विरोध किया जो आखिर तक जारी रहा। मेघवाल के कहने पर बाद में पार्टी ने भाटी की सदस्यता समाप्त कर दी। बीकानेर के अनुराग हर्ष का कहना है कि मेघवाल के सामने चुनौती कड़ी है। उनके खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है, क्योंकि उन्हें तीसरी बार मौका दिया गया है।

अलवर में बीजेपी ने संत बाबा बालकनाथ को उतारा है। वह यहां से पिछली बार सांसद बने महंत चांदनाथ के उत्तराधिकारी हैं। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बाबा बालकनाथ एक ही पीठ से जुडे हैं। बीजेपी ने पिछले चुनाव में तो यहां से जीत हासिल की थी लेकिन महंत चांदनाथ के निधन के बाद पिछले वर्ष फरवरी में हुआ उपचुनाव वह हार गई थी। ऐसे में यह सीट अभी कांग्रेस के पास है। कांग्रेस ने यहां से अलवर राजपरिवार से जुडे भंवर जितेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है।

अलवर शहर के ही रहने वाले नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि लोगों में महंत चांदनाथ के खिलाफ नाराजगी थी जो उपचुनाव में सामने भी आई। अब बीजेपी ने उनके ही उत्तराधिकारी को मौका दिया है। इसके अलावा इस सीट पर बीएसपी के प्रत्याशी इमरान खान भी हैं जो मुकाबले को रोचक बना रहे हैं।

दौसा सीट पर टिकट तय करने में ही बीजेपी के पसीने छूट गए। यहां बीजेपी के कद्दावर नेता किरोड़ी लाल मीणा अपनी पत्नी या भाई को टिकट दिलाना चाहते थे जबकि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खेमे ने पूर्व संसदीय सचिव ओम प्रकाश हुडला को आगे कर दिया था। हुडला और मीणा में छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों की खींचतान में यहां का टिकट पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री रहीं जसकौर मीणा को मिल गया।

ऐेसे में, यहां पार्टी की आतंरिक कलह समझी जा सकती है। दौसा में लालसोट के रहने वाले महेन्द्र मीणा कहते हैं कि यह सीट मीणा समुदाय पर वर्चस्व की लडाई की सीट मानी जाती है। इसे लेकर दो नेताओं में लड़ाई थी और इसका खामियाजा अब यहां बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है क्योंकि प्रत्याशी चयन में पार्टी ने काफी देर लगा दी। यहां से कांग्रेस ने मौजूदा विधायक मुरारी लाल मीणा की पत्नी सविता मीणा को उम्मीदवार बनाया है।

नागौर में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव तो अपने दम पर लड़ा था लेकिन इस बार उसने यह सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को दी है। इस पार्टी के अध्यक्ष और मौजूदा विधायक हनुमान बेनीवाल यहां से प्रत्याशी हैं। यह पार्टी विधानसभा चुनाव के समय ही बनी थी और चुनाव में इसके तीन विधायक जीते हैं। बेनीवाल पहले बीजेपी में ही थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके नजदीकी मंत्री रहे युनूस खान के धुर विरोधी हैं। गठबंधन से पहले तक वह राजे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करते रहे हैं। गठबंधन की घोषणा के समय राजे जयपुर में होते हुए भी पार्टी मुख्यालय नहीं पहुंचीं। युनूस खान खुद नागौर के ही हैं। ऐसे में, बेनीवाल को भी भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है।

बेनीवाल का मुकाबला लंबी राजनीतिक विरासत रखने वाले मिर्धा परिवार की ज्योति मिर्धा से है। ज्योति कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती हैं। नाथूराम मिर्धा ऐसे नेता थे जो 1977 की जनता लहर में भी सांसद बन गए थे। नागौर के रहने वाले भगवत चैधरी कहते हैं कि मुकाबला कड़ा है क्योंकि विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने बीजेपी नेताओं का जम कर विरोध किया था, इसलिए हो सकता है, बीजेपी कार्यकर्ता उनके साथ मन लगा कर काम न करें।

जयपरु ग्रामीण सीट से केंद्रीय मंत्री राज्यर्धन सिंह राठौड़ बीजेपी प्रत्याशी हैं। ओलंपिक में पदक विजेता रहे राठौड़ का मुकाबला ओलंपिक में ही भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं कृष्णा पूनिया से है। यानी इस सीट पर दो पूर्व ओलम्पियन चुनाव मैदान में हैं। जातिगत समीकणाों के लिहाज से यह सीट अहम है क्योंकि यहां मुकाबला राजपूत और जाट प्रत्याशियों के बीच है जो राजस्थान में परस्पर विरोधी जातियां मानी जाती हैं और इस कारण इस संसदीय क्षेत्र पर मुकाबला भी काफी दिलचस्प है।

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