हरियाणाः कर्ज में डूबे 15 लाख से ज्यादा किसानों पर गिरफ्तारी की तलवार, ऐसे में कैसे होगी बीजेपी की नैया पार

पिछले पांच साल में कर्ज में दबे किसानों का कोई सरकारी आंकड़ा तो जारी नहीं हुआ है, लेकिन अनुमान है कि प्रदेश के 16.5 लाख किसान परिवारों में से साढ़े पंद्रह लाख किसान किसी-न-किसी रूप से कर्जदार हैं। जबकि करीब तीन चौथाई किसानों की जमीन बैंकों के पास गिरवी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

बीजेपी भले दावा करती है कि ग्रामीण इलाके उसके साथ हैं लेकिन जमीनी हालात उसके अनुकूल नहीं लगते। देश भर में किसानों की समस्याएं दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ती ही गई हैं। हरियाणा भी इसका अपवाद नहीं है। बल्कि हरियाणा में तो इस बार हर सीट पर बीजेपी के लिए किसानों की समस्याएं बड़ी दिक्कत की तरह है।

पिछले पांच साल में कर्ज में दबे किसानों का कोई सरकारी आंकड़ा तो जारी नहीं हुआ है, लेकिन अनुमान है कि प्रदेश के 16.5 लाख किसान परिवारों में से साढ़े पंद्रह लाख किसान किसी-न-किसी रूप से कर्जदार हैं। करीब तीन चौथाई किसानों की जमीन बैंकों के पास गिरवी है।

साल 2011-12 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में बताया गया था कि हरियाणा के प्रति किसान परिवार पर 79 हजार रुपये कर्ज है। हरियाणा भारतीय किसान यूनियन के मुताबिक, करीब 86 हजार करोड़ का सरकारी कर्ज हरियाणा के किसानों पर है। इनमें से 90 फीसदी डिफाल्टर हो चुके हैं। यूनियन का अनुमान है कि इतनी ही राशि किसानों ने साहूकारों और आढ़तियों से कर्ज ली हुई है।

हरियाणा की करीब ढाई करोड़ की आबादी में से लगभग 64 फीसदी लोग खेती-किसानी करते हैं। हरियाणा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चडूनी का कहना है कि एक तरफ तो फसलों के दाम नहीं मिल रहे, दूसरी तरफ कर्ज अदा न कर पाने वाले किसानों का बैंकों की रोजाना की धमकियों से जीना मुहाल हो गया है। इसकी तस्दीक किसान खुद कर रहे हैं।


कुरुक्षेत्र जिले के पेहेवा स्थित गांव मैसी माजरा के किसान जसमेर सिंह ने साल 2010 में ट्रैक्टर के लिए साढ़े चार लाख का लोन लिया था। अब यह बढ़कर 10-12 लाख हो चुका है। जसमेर का कहना है कि कई साल से बर्बाद हो रही फसल के चलते वह लोन चुकता नहीं कर पाया। सरकारी मदद के नाम पर कभी कुछ मिला नहीं। अब कभी कुर्की, तो कभी गिरफ्तारी की धमकी से वह परेशान हैं। अभी उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकल चुका है।

पेहेवा के ही पिंडारसी गांव के सुल्तान सिंह की भी यही कहानी है। उन्होंने 2008-09 में अपनी जमीन पर ढाई लाख का लोन लिया था। 2010 में बैंक ने उन्हें ढाई लाख और दे दिए। अब बैंक वाले कह रहे हैं कि उनका लोन 14 लाख हो गया है। कई साल से वह बीमार हैं। उनके 4-5 ऑपरेशन हो चुके हैं। कई साल पहले सरकारी मदद के नाम पर उन्हें 8-9 सौ रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से चंद रुपये मिले थे। कर्ज चुकता करने की स्थिति में वह नहीं हैं। वह डिफॉल्टर घोषित हो चुके हैं। उनके पास 3 एकड़ जमीन है।

पिंडारसी गांव के ही कूड़ाराम की भी ऐसी ही कहानी है। कूड़ाराम के बेटे विकास ने बताया कि 2008 में उसके पिता ने 3 लाख रुपये बैंक से लोन लिया था। अब बैंक वाले कह रहे हैं कि यह 7 लाख हो चुका है। कई साल से फसल न होने के चलते वह लोन चुकता कर पाने में असमर्थ है। कूड़ाराम के पास भी तीन एकड़ जमीन है।

गुरनाम सिंह चडूनी इस सरकारी खेल को ठीक से समझाते हैं। वह कहते हैं कि “मान लीजिए, किसी किसान ने एक लाख रुपये का ऋण लिया। यदि वह साल के अंत में किस्त नहीं दे पाया तो बैंक मूल रकम का दस प्रतिशत लोन उसे और दे देते हैं। इस तरह बैंक अपनी किस्त और ब्याज ले लेते हैं, लेकिन किसान पर कर्ज की रकम बढ़ती जाती है। किसान डिफॉल्टर होने के दायरे में भी नहीं आता। सरकार भी इस तरह डिफॉल्टर किसानों की संख्या कम करके बताती है। सरकार कहती है कि 20 फीसदी किसान डिफॉल्टर हैं, लेकिन सच्चाई में यह संख्या 90 फीसदी है।”


चडूनी का कहना है कि इस तरह कर्जदार किसानों पर प्रति वर्ष दस फीसदी लोन भी बढ़ता जाता है। एक वक्त ऐसा आता है कि लोन की रकम इतनी हो चुकी होती है कि किसान इसे चुकता करने में असमर्थ हो जाता है। फिर बैंक वाले आए दिन उसका अपमान करते हैं। नतीजे में वह खुदकुशी जैसे कदम उठाता है। जींद के जुलाना से विधायक परमिंदर ढुल का कहना है कि किसान के पास खाने के लिए जब अन्न का दाना नहीं बचता तो वह कर्ज कहां से चुकाएगा?

सोनीपत के गोहाना से विधायक जगबीर मलिक का कहना है कि किसानों की 75 फीसदी जमीन बैंकों और आढ़तियों के पास गिरवी रखी है। सरकार ने फसल खरीद की सीमा तय कर रखी है। इसके चलते सिर्फ गन्ने में सोनीपत के किसान को 54 हजार प्रति एकड़ और पानीपत के किसान को 49 हजार प्रति एकड़ का नुकसान हो रहा है। जबकि सरसों में 72 सौ और बाजरे में 68 सौ रुपये प्रति एकड़ का नुकसान हो रहा है। वह पूछते हैं कि मंडियों में फसल बिक नहीं पा रही तो किसान कर्ज कहां से अदा करेगा?

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Published: 26 Apr 2019, 5:23 PM