लोकतंत्र के पन्ने: सारण लोकसभा सीट, बीजेपी दोहराएगी जीत का जादू या आरजेडी लेगी बदला?

लोकसभा चुनाव 1977 में लालू प्रसाद सारण सीट से चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। वहीं 1980 में जनता पार्टी के सत्यदेव सिंह और 1984 में कांग्रेस के योगेश्वर प्रसाद योगेश तथा 1985 में जनता पार्टी के राम बहादुर सिंह सांसद बने।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जन्मभूमि सारण सीट बिहार की सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय सीट मानी जाती है। जेपी का जन्म स्थान अब यूपी के बलिया का हिस्सा हो चुका है। जेपी ने देश में सम्पूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका था। यह धरती लोकप्रिय क्रांतिकारी भोजपुरी गायक भिखारी ठाकुर के नाम से भी जानी जाती है। हमेशा से ही सारण राजनीतिक रूप से वीआईपी क्षेत्र बना रहा है। 2008 के परिसीमन से पहले इसका नाम छपरा था।

बीजेपी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रुडी यहां के वर्तमान सांसद हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजीव प्रताप रूडी ने लालू यादव की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी को हराया था। राजीव प्रताप रूडी को 3,55,120 वोट मिले थे। जबकि राबड़ी देवी को 3,14,172 वोट। जेडीयू के सलीम परवेज 1,07,008 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे।

इससे पहले 2009 के चुनाव में सारण सीट से आरजेडी चीफ लालू यादव जीते थे। लालू यादव को 2,74,209 वोट मिले थे जबकि राजीव प्रताप रुडी को 2,22,394 वोट।

सारण लोकसभा सीट का इतिहास

2008 के परिसीमन से पहले सारण लोकसभा सीट छपरा के नाम से जानी जाती था। इस सीट से 1957 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राजेंद्र सिंह चुनाव जीते थे। जबकि इसके अगले तीन लोकसभा चुनाव 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस के राजशेखर प्रसाद सिंह यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। वहीं 1977 में लालू प्रसाद सारण सीट से चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। वहीं 1980 में जनता पार्टी के सत्यदेव सिंह और 1984 में कांग्रेस के योगेश्वर प्रसाद योगेश तथा 1985 में जनता पार्टी के राम बहादुर सिंह सांसद बने।

इस लोकसभा सीट से 1989 में लालू यादव जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। तो वहीं 1991 में जनता दल के लाल बाबू राय यहां से सांसद बने। इसके अगले 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से खाता खोला। पार्टी के उम्मीदवार राजीव प्रताप रूडी चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे। हालांकि 1998 में आरजेडी के उम्मीदवार हीरालाल राय चुनाव जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 1999 के चुनाव में रुडी एक बार फिर यहां से सांसद बने।

2004 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव एक बार फिर इस लोकसभा सीट पर चुनाव लड़े। उनका मुकाबला बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से था। लालू ने रुडी को करारी शिकस्त दी। अब तक यह लोकसभा सीट छपरा के नाम से जाना जाता था। लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद यह सारण के नाम से जाना जाने लगा। 2009 के चुनाव में भी लालू यादव यहां से जीते। चारा घोटाले में सजा हो जाने के बाद लालू के चुनाव लड़ने पर रोक लग गई। इसके बाद बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी इस सीट से उतरीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला बीजेपी के राजीव प्रतार रूडी से था। रूडी चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

जातीय समीकरण

सारण में जातीय समीकरण तब दिलचस्प हो जाता है जब आरजेडी और बीजेपी उम्मीदवार आमने-सामने होते हैं। यहां यादवों की संख्या 25 फीसदी, राजपूतों की 23 फीसदी, वैश्य 20 फीसदी, मुस्लिम 13 फीसदी और दलित 12 फीसदी हैं। इस लिहाज से पार्टियां यहां राजपूत और यादव उम्मीदवार पर ही दांव खेलती है।

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