10 साल में दलित उत्पीड़न के मामलों में 66 फीसदी बढ़ोतरी, बीजेपी शासित राज्यों में सबसे ज्यादा घटनाएं: रिपोर्ट 

एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़े देश में दलितों की समाज में स्थिति और उनकी दशा की कहानी बयां करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले 4 साल में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है।

फोटो: सोशल मीडिया
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आईएएनएस

समाज में हमेशा हाशिए पर रहे दलित समुदाय को पिछले 10 साल में काफी बुरे हालात का सामना करना पड़ा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 साल (2007-2017) में दलित उत्पीड़न के मामलों में 66 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई। इस दौरान रोजाना देश में 6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए, जो 2007 की तुलना में दोगुना है। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में दलितों के साथ आपराधिक घटनाएं हुईं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़े देश में दलितों की समाज में स्थिति और उनकी दशा की कहानी बयां करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले 4 साल में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। 2006 में दलितों के खिलाफ अपराधों के कुल 27,070 मामले सामने आए जो 2011 में बढ़कर 33,719 हो गए। वर्ष 2014 में अनुसूचित जाति के साथ अपराधों के 40,401 मामले, 2015 में 38,670 मामले और 2016 में 40,801 मामले दर्ज किए गए।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 10 साल में दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई, रिपोर्ट के मुताबिक 2006 में जहां प्रत्येक दिन दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के केवल तीन मामले दर्ज होते थे जो 2016 में बढ़कर 6 हो गए।

देश में दलित उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि पर विख्यात दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद ने अमेरिका में अश्वेतों का उदाहरण देते हुए बताया, "अमेरिका में 1618 से दासता की शुरुआत हुई और एक जनवरी 1863 में खत्म हुई। जब अश्वेत लोग इस दासता से आजाद हुए तो वहां अश्वेतों के साथ लिंकिंग की घटनाएं सामने अने लगी। सड़कों पर उन्हें पीटा जाने लगा, उनके ऊपर अत्याचार किए जाने लगे। ठीक उसी तरह जब आज भारत में दलित समुदाय जातिवाद से आजाद हो रहा है तो उनपर हमले हो रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "बदलते दौर में दलित समाज में नेता उभर कर सामने आने लगे हैं जो आजादी के लिए आवाज उठाते हैं। पहले दलित जवाब देने में संकोच करता था लेकिन अब दलित जवाब दे रहा। पहले लोग दलित के प्रति सुहानभूति दिखाते थे लेकिन अब लोगों ने उनके प्रति ईष्यालु रवैया अपना लिया है। इसी कारण उन्हें अब ज्यादा से ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है, और आने वाले वक्त में उनके ऊपर हमले और बढ़ेंगे।"

एनसीआरबी के आंकड़ों से कई चौंकाने वाली बातें सामने निकलकर आई हैं। 2014 से 2016 के दौरान जिन राज्यों में दलित उत्पीड़न के सबसे मामले दर्ज हुए, उन राज्यों में या तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार है या फिर उसके सहयोगी की।

बात करें दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहे राज्यों की तो मध्यप्रदेश दलित उत्पीड़न में सबसे आगे रहा। 2014 में राज्य के अंदर दलित उत्पीड़न के 3,294 मामले दर्ज हुए, जिनकी संख्या 2015 में बढ़कर 3,546 और 2016 में 4,922 तक जा पहुंची। देश में दलितों पर अत्याचार के कुल प्रतिशत में मध्यप्रदेश का हिस्सा 12.1 फीसदी रहा।

वहीं, राजस्थान दलितों पर अत्याचार के मामले में दूसरे नंबर पर रहा। हालांकि यहां उत्पीड़न के मामलों में कमी आई है। राज्य में 2014 में दलित उत्पीड़न के 6,735 मामले, 2015 में 5,911 मामले और 2016 में 5,136 मामले दर्ज हुए। इसके बाद बिहार, जहां भाजपा और जदयू के गठबंधन की सरकार है, वहां 2016 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के 5,701 मामले दर्ज हुए।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, इसके बाद नंबर गुजरात का है, जहां 2014 में दलित उत्पीड़न के 1,094 मामले, 2015 में 1,010 मामले और 2016 में 1,322 मामले दर्ज किए गए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों का राष्ट्रीय औसत जहां 20.4 फीसदी था, उसमें गुजरात का हिस्सा 32.5 फीसदी रहा।

देश में बीजेपी शासित राज्यों में दलित उत्पीड़न के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए चंद्रभान प्रसाद ने कहा, "इसमें सरकार की गलती नहीं है, जहां जहां बीजेपी की सरकारें बनी हैं वहां के ऊंची जाति के लोगों ने समझ लिया है कि अब उनकी सरकार आ गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि उन लोगों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। जो वर्ग पहले दूसरी सरकार के शासन में दुबका हुआ बैठा था वह अब बाहर आने लगा है।"

यह पूछे जाने पर कि बीजेपी के 'सबका साथ-सबका विकास' नारे में दलितों के लिए अहमियत कम दिखाई देती है? इस पर उन्होंने कहा, "जी हां, बीजेपी के 'सबका साथ-सबका विकास' में ईमानदारी की कमी दिखाई देती है।"

2016 में अनुसूचित जाति पर हमलों के मामले में उत्तर प्रदेश (10,426) शीर्ष स्थान पर रहा। यहां दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 1065 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले लखनऊ में 88 घटनाएं (40 दुष्कर्म, जयपुर, (43 दुष्कर्म) मामले) महिलाओं के साथ घटी।

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