कश्मीर में पाबंदियों का एक महीना: जब हर चेहरे पर दिखे मातम, तो कैसे कहें कि सामान्य हो रहे हैं हालात

कश्मीर में पाबंदियों का एक महीनो हो चुका है। सरकारी दावे तो खूब किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि घाटी के हर चेहरे पर मातम ही नजर आता है। लोग तो इस हद तक चिंता में हैं कि अगर खुदा न करे किसी की मौत हो जाए, तो उसे दफ्न करने का कैसे इंतज़ाम होगा

फोटो : Getty Images
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अमरीक

कश्मीर घाटी से सीधी सूचनाएं नहीं मिल रही हैं और जो मिल भी रही हैं, वे सरकारी सूत्रों से। लेकिन पंजाब के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे कश्मीरी बच्चों को लैंडलाइन के जरिये अपने परिवार के लोगों से जो सूचनाएं मिल रही हैं, वे डिप्रेशन में डाल रही हैं। ऐसे कई बच्चों को डॉक्टर्स से संपर्क तक करना पड़ रहा है।

पंजाब में लगभग आठ हजार कश्मीरी बच्चे पढ़ रहे हैं। संडे नवजीवन ने इनमें से कुछ बच्चों से संपर्क किया, तो उन्होंने बातें तो कई बताईं, पर इस शर्त के साथ कि उनके नाम नहीं छापे-बताए जाएंगे। वैसे, सभी ने एक चीज यह बताई कि परिवार वालों से उनकी लैंडलाइन फोन पर ही बात हो पा रही है और वह भी तब जब परिवार वाले उनके नंबर पर कॉल कर रहे हैं। इधर से कॉल करने पर शायद ही किसी नंबर पर फोन उठता हो। साफ है कि अधिकतर नंबर पर फाल्स रिंग जाती है और यह सेवा भी कम समय के लिए ही बहाल की जाती है। स्वाभाविक है कि इस तरह होने वाली बातचीत भी संक्षिप्त ही रहती है।


इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे ऐसे ही एक छात्र ने बताया कि उसका परिवार शोपियां में रहता है (सुरक्षा के खयाल से जगह का नाम भी बदल दिया गया है)। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से उसका परिवार वालों से संपर्क नहीं हो पा रहा था और पहला संपर्क 1 सितंबर को हो पाया। बात भी हो पाई बमुश्किल तीन मिनट ही। घरवालों ने बताया कि अघोषित तौर पर कर्फ्यू लगातार जारी है। कभी-कभी आंशिक ढील मिलती तो है लेकिन मुहल्ले-टोले में भी चार से ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं हो सकते।

ढील के दौरान भी शायद ही कोई दुकान खुलती है। राशन की भारी किल्लत है। दवाइयां तक नहीं मिल रही हैं। लगभग सभी गैर सरकारी-निजी अस्पताल बंद हैं। उस लड़के ने बताया कि उसके दादा गंभीर रूप से बीमार हैं। मेरे वालिद को चिंता है कि उन्हें कुछ हो गया तो ऐसे आलम में उन्हें कैसे कहां दफ्न करेंगे।

एक अन्य छात्र के मुताबिक, कश्मीर में बीमार लोगों की मुसीबतों में इसलिए भी इजाफा हो रहा है कि गंभीर अवस्था में एंबुलेंस बुलाने के साधन ही लोगों के पास नहीं हैं। मोबाइल फोन पूरी तरह से बंद है। लैंडलाइन कुछ लोगों के पास ही है और जिनके पास है भी उनके फोन अधितर समय डेड रहते हैं। गंभीर रूप से बीमार लोग भी डॉक्टरों तक नहीं पहुंच पा रहे। चूंकि ट्रक वगैरह चल नहीं रहे, तो दवाइयों और सर्जिकल सामान की किल्लत होने लगी है।

मूल रूप से श्रीनगर के रहने वाले छात्र इरफान ने बताया कि वहां चप्पे- चप्पे पर हथियारबंद सुरक्षाकर्मी फैले हुए हैं। वहां इस बार काली ईद मनाई गई। मातम पसरा रहा। पटाखे चलाने और पतंग उड़ाने का तो सवाल ही नहीं। उसकी बहन ने उसे बताया कि लगातार विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी हो रही है। झड़पें भी हो रही हैं और जख्मी होने वालों में बच्चे और महिलाएं भी हैं। एमबीए कर रहे कश्मीरी छात्र असद ने बताया कि दो सितंबर को जब वह डाउन टाउन में रह रहे अपने घर वालों से बात कर रहा था, उसी वक्त उसने उधर गोलियों की आवाज सुनी। उसे बताया गया कि ढील के दौरान सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प में फायरिंग हो रही है।

एक बच्चे के पिता श्रीनगर में पत्रकार हैं। उन्होंने घर के बजाय एक बूथ से फोन करके बताया कि 5 अगस्त के बाद से हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया है या फिर घरों में नजरबंद कर दिया गया है। वे लोग खासतौर पर सरकार के निशाने पर हैं जिनका अतीत में पथराव करने का मामूली-सा भी रिकॉर्ड रहा है। उनके परिजनों को भी सुरक्षाबल नहीं बख्श रहे। सोपोर का रहने वाला असद उल्लाह बख्श कहता है कि केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 निरस्त कर पूरे कश्मीर को नए सिरे से अंधी सुरंग में धकेल दिया है। खुदा जाने आगे क्या होगा?


अशरद वसीम के एक संबंधी श्रीनगर के एक अस्पताल में नौकरी करते हैं। उस रिश्तेदार ने इस छात्र को बताया कि ज्यादातर गर्भवती महिलाएं अस्पताल तक पहुंच नहीं पा रहीं और जो पहुंच पा रही हैं, वे भी बहुत मुश्किल से। इसकी वजह यह है कि कदम-कदम पर बैरिकड्स और चेक पोस्ट हैं। चिकित्सा के अभाव में प्रसूताओं और नवजातों की मौतों में बेइंतहा इजाफा हो रहा है लेकिन यह सब किसी सरकारी-गैरसरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया जा रहा।

लुधियाना में पढ़ रहे छात्र निकहत के बड़े भाई डल झील की एक हाउसबोट पर नौकरी करते हैं। उन्होंने फोन पर उसे जानकारी दी कि डल एकदम सूनी पड़ी है। करीब 30 साल में ऐसा पहली बार है कि एक भी टूरिस्ट वहां नहीं है। ऐसा बुरहान वानी के बाद लगे सख्त कर्फ्यू में भी नहीं हुआ था। अधिकांश के मालिक-कर्मचारी सब्जी बेचने या अन्य ऐसे दूसरे कामों में लगे हैं। टैक्सी वाले अलग से बेरोजगार हो गए हैं। खुद सरकार के निर्देश हैं कि पाबंदी में ढील के दौरान भी सिर्फ निजी वाहन चलेंगे। स्वाभाविक है कि कर्ज लेकर टैक्सी खरीद कर चलाने वाले बेइंतहा बेजार हैं।


अनिश्चिकाल के लिए टल रहीं शादियां

ईद के बाद कश्मीर में शादियों का सीजन शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार आलम सिरे से बदला हुआ है। अमृतसर में रह रहे छात्र नुसरत गिलानी ने बताया कि कश्मीरी अमूमन घर बनाने और आलीशान ढंग से शादियां करने के लिए ताउम्र पैसे जोड़ते कमाते हैं। आतंकवाद के चरम दौर में भी वहां जबरदस्त धूमधाम के साथ विवाह के उत्सव होते रहे हैं। नुसरत के बड़े भाई का निकाह सितंबर में होना था जो अब अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया है। उस निकाह के लिए महीनों पहले तैयारियां की गई थी और राशन जुटाया गया था। लेकिन सब धरा रह गया। नुसरत के रिश्तेदारों का कहना है कि जाहिरन कन्या पक्ष को ज्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ रहा होगा और बड़ा नुकसान उनका होगा।


एक पुख्ता मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर में 2500 से ज्यादा शादी की दावतें स्थगित की जा चुकी हैं। इन सबका असर हलवाइयों, वेटरों आदि का काम करने वाले तबके पर भी पड़ा है। साल भर वे लोग शादियों के सीजन का इंतजार करते हैं ताकि शेष वक्त की रोटी चल सके। नौबत अब भुखमरी की है।

वैसे, पंजाब में रह रहे करीब 80 कश्मीरी छात्रों को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने निवास पर बुलाकर ईद की दावत दी। उस दावत में शरीक रहे एक छात्र ने कहाः सूबे का मुख्यमंत्री हमें बुलाए और दावत दे, यह बहुत खुशी की बात होनी चाहिए। पर घाटी और अपने परिजनों के हालात व हालत के मद्देनजर हम बेतहाशा मायूस तथा गमगीन थे। इसलिए भी कि ईद पर हमारे घरों में मातम-जैसा माहौल था। जिस तरह के हालात हैं, उसमें लोगों को यह डर खाए जा रहा है न जाने आगे क्या होगा?

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