आधार पर फैसला गरीबों और वंचितों के खिलाफ, सरकार की मनमानी को चुनौती देने का रास्ता खुला: याचिकाकर्ता

आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इसे चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता निराश हैं लेकिन साथ ही उन्हें संतोष है कि कई मुद्दों पर सरकार को पीछे हटना पड़ा है। खासतौर से मोबाइल और बैंक को आधार से अलग किए जाने से। वे इस फैसले को चुनौती देंगे या नहीं,अभी इसका ऐलान नहीं किया गया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बुधवार को दिल्ली में वूमन प्रेस क्लब में हुई एक प्रेस कांफ्रेंस में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि फैसले के कुछ सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन बड़े स्तर पर देखा जाए तो यह फैसला निराशाजनक है। प्रेस कांफ्रेंस में वरिष्ठ वकील उषा रामनाथन, मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे, आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज और केस से जुड़े वकील प्रसन्ना शामिल हुए।

उषा रामनाथन ने कहा कि, “इस फैसले में कुछ सकारात्मक पहलू है लेकिन बड़े पैमाने पर यह निराशाजनक है। इसमें गरीबों और वंचितों की तरफ से जो दस्तावेज-हलफनामे दिये गये थे, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संज्ञान नहीं लिया। यह बहुत दुखद और परेशान करने वाला है।“ उन्होंने कहा कि देश की पूरी आबादी को डाटा में तब्दील करना खतरनाक है।

उषा रामनाथन ने कहा कि, “हालांकि इस फैसले में आधार को मनी बिल के तौर पर सही ठहराया गया है, लेकिन साथ ही इस रास्ते की संवैधानिकता को चुनौती देने का रास्ता भी खोला है। इससे भविष्य में सरकार की मनमानी को चुनौती देने की राह खुलती है।“ उन्होंने कहा कि, “इस फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ के असहमति के फैसले में हमारी अधिकांश चिंताओं को जगह मिली है।“

वहीं निखिल डे ने इस फैसले को गरीब और वंचितों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि, “आधार की वजह से देश के गरीब न तो सही ढंग से राशन ले पा रहे हैं और न ही उन्हे पेंशन मिल रही है। अकेले राजस्थान में ही मनरेगा का करोड़ों रुपया मजदूरों को आधार की वजह से नहीं मिल पाया।“ उन्होंने कहा कि, “इस फैसले में अदालत का वर्ग विभेद साफ दिखता है। जिस तरह से पिछले 4-5 साल से गरीब जूझ रहे हैं, उसकी अनदेखी सुप्रीम कोर्ट कैसे कर सकता है। आधार जीवन के अधिकार का हनन है और इसे अधिकारों के आइने में अदालत को देखना चाहिए था।“

सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रसन्ना ने कहा कि, “इस फैसले में हमारी जीत हुई है क्योंकि निजी कंपनियों की जो निगाह आधार डाटा पर लगी हुई थी, उस पर अदालत ने विराम लगाया है। सरकार को इस पर अपने कदम पीछे खींचने पड़ेंगे। वहीं अंजलि भारद्वाज ने कहा कि यह विडंबना है कि, “इस फैसले में सबसे ज्यादा दुहाई गरीबों और वंचितों के अधिकारों और सुरक्षा के बारे में दी गई है, जबकि उन्हें ही सबसे ज्यादा अपनी निजता और संवैधानिक अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है।

अंजलि भारद्वाज ने कहा कि, “मध्य वर्ग को राहत पहुंचाने के बारे में सोच कर सुप्रीम कोर्ट ने बैंक खातों और मोबाइल फोन के लिए आधार की अनिवार्यता को खत्म कर दिया, लेकिन गरीब के राशन पर विचार नहीं किया। हमने आधार की अनिवार्यता की वजह से होने वाली भूख से मौतों का पूरा ब्यौरा सौंपा था लेकिन उसके बारे में कोई तवज्जो नहीं दी गई।“

उन्होंने कहा कि सरकार का यह दावा कि आधार मनी बिल इसलिए है क्योंकि इसमें पैसा शामिल है, यह सरासर गलत है और भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार यह प्रचारित कर रही है कि आधार की वजह से 14 हजार करोड़ रुपये बचे है, हजारों फर्जी टीचर पकड़े गये हैं, लेकिन अभी तक एक भी मामला इस बारे में दर्ज नहीं क्यों नहीं हुआ।

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