आधार-वोटर आईडी लिंक करने से बड़ी संख्या में छिन जाएगा लोगों का मतदान का अधिकार, विपक्ष ने की इस पर बहस की मांग

केंद्र की मोदी सरकार ने आधार और वोटर आईडी के लिंक करने वाला बिल सोमवार को लोकसभा में संख्या बल के आधार पर पास करा लिया। लेकिन विपक्ष और डिजिटल एक्टिविस्ट का मानना है कि इससे बड़ी संख्या में लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

लोकसभा ने सोमवार (20 दिसंबर, 2021) को निर्वाचन अधिनियम संशोधन बिल 2021 को पास कर दिया। इस बिल के तहत के मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) या मतदाता सूची यानी को आधार से लिंक करने की लोकसभा से मंजूरी मिल गई। हालांकि इसके लिए सरकार ने जनविमर्श यानी इस विषय में लोगों के विचार नहीं लिए और सिर्फ चुनाव आयोग की सिफारिशों के आधार पर इस बिल को लोकसभा से संख्याबल के आधार पर पास करा लिया।

हालांकि इसमें आधार और वोटर आईडी को लिंक करने की अनिवार्यता या बाध्यता नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि इससे ‘बड़ी संख्या में डुप्लीकेट वोटर (ऐसे वोटर जिनका एक से अधिक जगह मतदाता सूची में नाम है)’ के नाम मतदाता सूची से हटाने में मदद मिलेगी। इस बिल को निजी जानकारी सुरक्षा कानून या पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन कानून के बिना पास किया गया है। आपत्तियां उठ रही हैं कि आधार से वोटर आडी को लिंक करने से एक समुदाय विशेष के मतदाताओं को बड़ी संख्या में उनके मताधिकार से वंचित किया जा सकता है, यानी मतदाता सूची से उनका नाम हट सकता है।

लोकसभा में कानून मंत्री किरण रिजिजू ने जब इस बिल को पास करने का प्रस्ताव रखा तो कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इस बात को दोहराया कि इस तरह का कानून लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है। उन्होंने कहा, “आधार कानून दो डेटाबेस को एक दूसरे से जोड़ने की इजाजत नहीं देता। मतदान एक कानूनी अधिकार है और आधार का इस्तेमाल सिर्फ कल्याण योजना का लाभ लेने के लिएकिया जा सकता है।”


लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी इस बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इससे बड़ी संख्या में मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। उन्होंने जस्टिस के एस पुत्तस्वामी बनाम भारत सरकार के मामले में अदालती निर्णय का हवाला दिया और मांग की इस बिल को संसद की स्थाई समिति पास भेजा जाए। केरल के थिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरुर ने भी बिल का विरोध करते हुए कहा आधार सिर्फ पते का प्रमाण है और सिर्फ भारतीय नागरिक ही मतदान कर सकते हैं, लेकिन इस बिल के बाद भारत में रहने वालों को भी वोट करने की छूट मिल जाएगी।

एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसी बात को रेखांकित किया कि इस बिल से निजी गोपनीयता के अधिकार का हनन होता है, साथ ही चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्रता भी प्रभावित होती है। उन्होंने बिल के प्रस्ताव पर सदन में मतदान कराने की मांग की लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गयी।

तृमणूल कांग्रेस सांसद प्रोफेसर सौगत राय ने भी इसका विरोध किया और कहा, “आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। केंद्र सरकार इस बिल के माध्यम से चुनाव आयोग की स्वायत्तता में हस्तक्षेप कर रही है।”

ध्यानार्थ बता दें कि चुनाव आयोग ने आधार और वोटर आईडी को लिंक कराने का विचार 2015 में सामने रखा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर इस पर रोक लगा दी थी जब जस्टिस के एस पुत्तुस्वामी मामले में कोर्ट ने आधार की वैधता के मामले से इसे जोड़ दिया था। उस मामले में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के करीब 55 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए थे।


डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट ने भी इस बिल का विरोध किया है। उनका कहना है कि इस पर गहनता से बहस होने की जरूरत है। सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के परसनाथ सुगाथन ने कहा कि, “इस तरह के महत्वपूर्ण बिल पर वृहद विचार और बहस की जरूरत है। इस बहस में न सिर्फ संसद बल्कि आम नागरिकों को भी शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि यह उनके अधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है।”

डिजिटल राइट्स एक्टिविस्ट श्रीनिवास कोडाली ने भी कहा कि, “वोटर आईडी और आधार को लिंक करना एक मुसीबत को जन्म देना है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आधार और वोटर आईडी को लिंक करने का प्रयोग असफल रहा था और इसके चलते लाखों मतदाताओं के नाम सूची से कट गए थे। इस बिल से मतदाताओं का ऐसा वर्ग खड़ा हो जाएगा जो भारत भर में कहीं भी वोट नहीं दे पाएंगे।”

वाईएसआर कांग्रेस के सांसद वी विजयसाई रेड्डी की शिकायत पर यूआईएआई (आधार अथॉरिटी), चुनाव आयोग और साइब्राबाद पुलिस ने गोपनीयता के हनन की जांच शुरु की थी जिसमें आंध्र प्रदेश के 3.7 करोड़ मतदाताओं की निजी जानकारियों का दुरुपयोग की बात कही गई थी। आरोप था कि आधार और वोटर आईडी लिंक करने से मतदाताओं का एक प्रोफाइल तैयार हो जाएगा और आँध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी पर इस प्रोफाइल का 2019 के चुनाव में दुरुपयोग किया था।

विजयसाई ने आरोप लगाया कि सरकारी डेटा जोकि स्मार्ट पल्स सर्वे से हासिल हुआ था उसे स्टेट रेजिडेंट डेटा हब से मिलाकर आधार चुनाव आयोग की मतदाता सूची बनाई गई थी।


सुगाथन ने कहा कि, “मतदान लोकतंत्र का आधार है। अगर आप लोगों के मताधिकार को सिर्फ इस आधार पर छीन लेंगे कि उनका आधार या बायोमेट्रिक नहीं मिल रहा है तो यह लोकतंत्र के लिए चुनौती के रूप में सामने आएगा।” उन्होंने कहा कि इस विषय पर विचार के लिए लोगों को समय दिया जाना चाहिए था।

कोडाली ने कहा कि यह सब यहीं नहीं रुकेगा, क्योंकि बीजेपी एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार वाली पार्टी है और आधार ऑनलाइन वोटिंग का आधार बन सरका है। उन्होंने कहा, “अभी आधार और वोटर आईडी लिंकिंग को स्वैच्छिक रखा गया है, लेकिन जल्द ही इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा, और अगर किसी के बायोमेट्रिक नहीं मिल रहे हैं तो वह व्यक्ति मतदान नहीं कर पाएगा।” उन्होंने एस्टोनिया और कीन्या की मिसाल देते हुए कहा कि 2017 में कीन्या ने ऐसी व्यवस्था की थी, लेकिन नतीजा यह हुआ कि वहां के सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव ही रद्द कर दिया।

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