जीतनराम मांझी ने 'राम' को बताया था काल्पनिक, AAP ने कैबिनेट में शामिल करने पर BJP पर साधा निशाना

मांझी को लेकर बीजेपी पर सवाल उठाते हुए सौरभ भारद्वाज ने पूछा कि क्या बीजेपी के भी अपने मंत्री के समान विचार हैं। क्या बीजेपी भगवान राम को काल्पनिक मानती है? क्या बीजेपी अब यह मानती है कि रावण भगवान राम से बेहतर था? क्या बीजेपी मांझी के बयान से सहमत है?

AAP ने मांझी को कैबिनेट में शामिल करने पर BJP पर साधा निशाना, बता चुके हैं 'राम' को काल्पनिक
AAP ने मांझी को कैबिनेट में शामिल करने पर BJP पर साधा निशाना, बता चुके हैं 'राम' को काल्पनिक
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नवजीवन डेस्क

आम आदमी पार्टी (आप) ने जीतन राम मांझी को कैबिनेट मंत्री बनाने पर सोमवार को बीजेपी पर निशाना साधा और पूछा कि क्या बीजेपी अब भगवान राम और रामायण को काल्पनिक मानती है। दरअसल मांझी ने पिछले साल कहा था, “मेरा हमेशा से मानना ​​रहा है कि भगवान राम एक काल्पनिक व्यक्ति हैं, न कि ऐतिहासिक। उन्होंने कथित तौर पर विवादित बयान में कहा था कि रावण भगवान राम से बेहतर है।

जीतनराम मांझी के इन्हीं बयानों को लेकर ‘आप’ के वरिष्ठ नेता सौरभ भारद्वाज ने सवाल किया कि क्या बीजेपी अब भगवान राम और रामायण को काल्पनिक मानती है। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने सत्ता के लिए अपनी धार्मिक मान्यताओं से समझौता कर लिया है। उन्होंने बीजेपी से मांझी की टिप्पणी पर रुख स्पष्ट करने का आग्रह किया।


सौरभ भारद्वाज ने कहा कि बीजेपी ने देश में लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है। उन्होंने कहा, "आश्चर्य की बात यह है कि जो व्यक्ति भगवान राम को काल्पनिक कहता है और रावण को भगवान राम से बेहतर बताता है, उसे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री पद दिया गया है।” बीजेपी पर सवाल उठाते हुए भारद्वाज ने पूछा कि क्या भगवा पार्टी के भी अपने मंत्री के समान विचार हैं। उन्होंने पूछा, “क्या बीजेपी भगवान राम को काल्पनिक मानती है? क्या बीजेपी रामायण को काल्पनिक मानती है? क्या बीजेपी अब यह मानती है कि रावण भगवान राम से बेहतर था? क्या बीजेपी जीतन राम मांझी के बयान से सहमत है?”

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख मांझी ने पिछले साल कहा था, “मेरा हमेशा से मानना ​​रहा है कि भगवान राम एक काल्पनिक व्यक्ति हैं, न कि ऐतिहासिक...।” उन्होंने कहा, “भले ही हम महाकाव्य का अनुसरण करें, लेकिन राम की तुलना में रावण कर्मकांड में कहीं अधिक पारंगत था। हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि वाल्मीकि, जिन्हें सबसे प्राचीन रामायण लिखने का श्रेय दिया जाता है, उन्हें कभी तुलसीदास (रामचरितमानस के लेखक) की तरह सम्मान क्यों नहीं दिया जाता है।”

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