जामिया-एएमयू को आंतकवाद से जोड़ने की कोशिश, 200 से ज्यादा शिक्षाविदों ने UGC सर्कुलर पर उठाया सवाल

देशभर के शिक्षाविदों ने यूजीसी के उस सर्कुलर पर सवाल उठाया है जिसमें एएमयू और जामिया जैसी यूनिवर्सिटी को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की गई है। शिक्षाविदों ने कहा है कि एक अनाम पाकिस्तानी लेखक की किताब को लेकर सवाल उठाया जाना चिंताजनक है।

फोटो - सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पूछे गए सवाल से देशभर के शिक्षाविद् आक्रोशित हैं। इस सांसद के सवाल पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जिस तरह का सर्कुलर जारी किया है उस पर शिक्षाविदों ने आशंका जताई है कि सरकार इस बहाने शैक्षिक कार्य में सेंसरशिप लागू करने की कोशिश कर रही है।

करीब 200 शिक्षाविदों ने इस बारे में एक साझा बयान जारी किया है। मंगलवार को जारी बयान में शिक्षाविदों ने कहा है कि सांसद द्वारा एक ऐसी बेनामी पुस्तक को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जामिया यूनिवर्सिटी) में पढ़ाने पर रोक की मांग की गई है जिसे एक पाकिस्तानी लेखक ने लिखा है।

बता दें कि सांसद ने राज्यसभा में सवाल पूछा था और जिस पर यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने सर्कुलर जारी किया है कि क्या इस पुस्तक में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जो कि भारतीय नागरिकों के लिए आपत्तिजनक हो सकती है और क्या इसमें आतंकवाद को समर्थन देने की बात कही गई है। सवाल पूछने वाले सांसद बीजेपी के हरनाथ सिंह यादव हैं। उन्होंने राज्यसभा में मौखिक तौर पर यह प्रश्न पूछा था।

जामिया-एएमयू को आंतकवाद से जोड़ने की कोशिश, 200 से ज्यादा शिक्षाविदों ने UGC सर्कुलर पर उठाया सवाल

यह सवाल भी पूछा गया है कि क्या सरकार इस लेखक द्वारा लिखी गई अन्य पुस्तकों की समीक्षा करेगी और इस पुस्तक को विश्वविद्यालयों को कोर्स में शामिल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेगी।

शिक्षाविदों ने प्रश्न के उस आखिरी हिस्से पर चिंता जताई है जिसमें शिक्षकों या विश्वविद्यालय के अधिकारों को दंडित करने की बात कही गयी है। यूजीसी ने जो सर्कुलर विश्वविद्यालयों को भेजा है उसमें ऐसा सवाल पूछने वाले सांसद का नाम या उसकी पार्टी का नाम नहीं दिया गया है। रोचक है कि सर्कुलर में उस पाकिस्तानी लेखक का नाम भी नहीं दिया गया है जिसकी पुस्तक पर आपत्ति जताई गई है।

शिक्षाविदों ने कहा है कि जिस तरह से सवाल पूछे गए हैं उससे ऐसा प्रतीत होता है कि जानबूझकर पुस्तक, लेखक और उसकी सामग्री को अस्पष्ट रखा गया है। शिक्षाविदों ने बयान में कहा है कि, “पुस्तक का नाम (शीर्षक) न बताए जाने का तो यही अर्थ निकलता है कि किसी भी पाकिस्तानी लेखक की कोई भी पुस्तक जिसे संभवतः ‘भारतीय नागरिकों के लिए अपमानजनक’ और ‘आतंकवाद का समर्थन करने’ के रूप में माना जा सकता है, को किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। और ऐसा करने पर इस किताब को पढ़ाने वाले शिक्षकों के खिलाफ शायद आपराधिक आरोप दर्ज किए जाएंगे।


बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में इतिहासकार और जेएनयू की प्रोफेसर एमेरिटा रोमिला थापर, दिल्ली विश्वविद्यालय से सतीश देशपांडे, नंदिनी सुंदर, आभा देव हबीब और अपूर्वानंद; जाधवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस सुकांत चौधरी; कोलकाता के सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र के मानद प्रोफेसर लक्ष्मी सुब्रमण्यन और पार्थ चटर्जी, जेएनयू की प्रोफेसर आयशा किदवई; केरल काउंसिल फॉर हिस्टोरिकल रिसर्च के निदेशक जी अरुणिमा, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय से इतिहास की प्रोफेसर मृदु राय और आईआईटी दिल्ली से सिमोना साहनी शामिल हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब का कहना है कि ज्ञान की खोज के लिए सभी प्रकार की सामग्री के अध्ययन की आवश्यकता होती है, लेकिन विश्वविद्यालयों को भेजे गए सर्कुलर और उसमें उठाए गए प्रश्न पढ़ाए जाने वाले पाठों पर सेंसरशिप लगाने का प्रयास प्रतीत होते हैं।

उन्होंने कहा कि, "इस तरह के सर्कुलर और धमकियों के चलते शैक्षिक संस्थानों के फैकल्टी ऐसी किसी भी पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल करने में डरेंगे जिसमें सरकार या प्रतिगामी धार्मिक प्रथाओं की आलोचना की गई हो। इससे शिक्षकों के बीच भय पैदा होगा।  उन्होंने आगे कहा कि, " विश्वविद्यालयों को भेजे गए सर्कुलर और सवालों से ऐसी व्यवस्था पैदा होने का आशंका है कि शिक्षण संस्थानों में अब सतर्क रहेंगे और ऐसी किसी भी पाठ्य सामग्री को हटा देंगे जो किसी भी तरह आलोचनात्मक हो।"

यूजीसी ने जो पत्र भेजा है उसकी विषय पंक्ति के तौर पर ‘पाकिस्तान लेखक की पुस्तक को देश के शिक्षण संस्थानों में शामिल करना’ लिखा गया है। यह एक तरह से सांसद के सवालों को बल देने वाला कदम है। शिक्षाविदों के बयान में कहा गया है कि विषय पंक्ति से सांसद के प्रश्न को भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल पाकिस्तानी लेखकों की सभी पुस्तकों पर जानकारी एकत्र करने और उन्हें संदेह के दायरे में लाने का बहाना मिल गया है।

बयान में कहा गया है कि शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए, इस पत्र से ऐसा लगता है कि एक शिक्षक जो किसी भी पठन सामग्री को सौंपता है, उसे दिए गए पाठ में सभी तर्कों से सहमत होना चाहिए। आगे कहा गया है कि, "अक्सर ऐसा होता है कि छात्रों को विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों से अवगत कराने के लिए, विशेष रूप से मानविकी और सामाजिक विज्ञान में पाठ्यक्रम तैयार किए जाते हैं।"


बयान में शिक्षाविदों ने कहा है कि, “एक शिक्षक के तौर पर हमारी भूमिका छातरों को चर्चा करने, प्रश्न पूछने और इन मतों को जानने के लिए प्रोत्साहित करना है, न कि किसी पुस्तक का समर्थन करना या उसको मानना।” बयान में कहा गया है कि एएमयू और जामिया जैसे विश्वविद्यालयों (जिनका सीधा संबंध मुस्लिम समुदाय से है) को आंतकवाद से जोड़ने की कोशिशों का प्रतिरोध होना चाहिए। सांसद के सवाल पर सरकार को बुधवार (22 मार्च को) को जवाब देना था, लेकिन विभिन्न उत्सवों के चलते इस दिन संसद की छुट्टी घोषित की गई है।

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