अयोध्या फैसले के बाद संघ ने किया राम मंदिर ‘आंदोलन के शहीदों’ को याद, काशी-मथुरा की गारंटी लेने से इनकार

बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस ने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश की आस्था और भावनाओं के अनुरूप बताते हुए शांति व्यवस्था और भाईचारा बनाए रखने की अपील की है। लेकिन संघ प्रमुख ने यह कहते हुए काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद की कोई गारंटी देने से इनकार कर दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस ने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश की आस्था और भावनाओं के अनुरूप बताते हुए शांति व्यवस्था और भाईचारा बनाए रखने की अपील की है। लेकिन संघ प्रमुख ने यह कहते हुए काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद की कोई गारंटी देने से इनकार कर दिया।

ध्यान रहे कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी हुई है जबकि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिस से सटी हुई है। आरएसएस और इससे जुड़े संगठन लगातार मांग करते रहे हैं कि जिस भूमि पर यह दोनों मस्जिदें स्थित हैं उन्हें हिंदुओं को सौंपा जाए।


दिल्ली के संघ कार्यालय केशवकुंज में पत्रकारों से बातचीत के दौरान जब संघ प्रमुख मोहन भागवत से सवाल पूछा गया कि क्या अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संघ काशी और मथुरा की मस्जिदों का आंदोलन चलाएगा, तो उनका जवाब था कि, “संघ व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण करता है और किसी आंदोलन में शामिल नहीं होता।” भागवत ने कोई सीधा जवाब देने से बचते हुए कहा, “पूर्व में, परिस्थितियां अलग थीं जिसके चलते संघ को (अयोध्या) आंदोलन में शामिल होना पड़ा। हम एक बार फिर चरित्र निर्माण के काम में जुटेंगे।”

भागवत ने प्रेस कांफ्रेंस में बयान पढ़ते हुए कोर्ट का सम्मान और वकीलों का धन्यवाद दिया, वहीं कहा, “इस लंबे प्रयास में अनेक प्रकार से योगदान देने वाले सभी सहयोगियों और बलिदानियों का हम कृतज्ञता पूर्वक स्मरण करते हैं।”


हालांकि मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किसी की जात या हार नहीं माना, फिर भी संकेतों में अपने स्वंयसेवकों को इस जश्न मनाने के लिए भी कह दिया। उन्होंने कहा, “इस निर्णय को जय-पराजय की दृष्टि से नहीं देखना चाहिये। सत्य और न्याय के मंथन से प्राप्त निष्कर्ष को भारत वर्ष के संपूर्ण समाज की एकात्मता व बंधुता के परिपोषण करने वाले निर्णय के रूप में देखना व उपयोग में लाना चाहिये। सम्पूर्ण देशवासियों से अनुरोध है कि विधि और संविधान की मर्यादा में रहकर संयमित व सात्विक रीति से अपने आनंद को व्यक्त करें।”

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