अलीगढ़ लाइव एनकाउंटरः जांच टीम का दावा, यूपी पुलिस ने की हत्या, नहीं हुई थी कोई मुठभेड़

अलीगढ़ पुलिस द्वारा लाइव एनकाउंटर में दो कथित बदमाशों को मार गिराने के दावे को झूठा बताते हुए मानवाधिकार संगठन, ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ की एक जांच टीम ने दावा किया है कि अलीगढ़ पुलिस ने नौशाद और मुस्तकीम का लाइव एनकाउंटर नहीं बल्कि लाइव मर्डर किया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आसिफ एस खान

इस महीने की 20 तारीख को अलीगढ़ पुलिस द्वारा कथित दो वांछित अपराधियों के लाइव एनकाउंटर के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। मानवाधिकार संगठन ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ की एक जांच टीम ने एनकाउंटर में मारे गए नौशाद और मुस्तकीम के घरवालों से मुलाकात की और पुलिस के तमाम बयानों की गहन जांच के बाद दावा किया है कि अलीगढ़ पुलिस ने दोनों का लाइव एनकाउंटर नहीं बल्कि लाइव मर्डर किया है। मृतकों के परिवार ने इस मामले में इंसाफ की गुहार लगाई है और निष्पक्ष जांच की मांग की है। इस जांच टीम में वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन, अमित सेनगुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता नदीम खान, जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे।

शनिवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में एनकाउंटर में मारे गए मृतको के परिजन की मौजूदगी में जांच चीम के सदस्यों ने जांच रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नौशाद और मुस्तकीम के घर वालों ने दावा किया है कि अलीगढ़ पुलिस 16 सितंबर को दोनों को घर से उठाकर ले गई थी। इसके बाद 18 तारीख को पुलिस ने दोनों को भगोड़ा घोषित करते हुए उन पर ईनाम का ऐलान किया और 20 सितंबर को कुछ मीडियाकर्मियों को बुलाकर लाइव एनकाउंटर में मार डाला। जांच टीम की रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ है कि पुलिस ने मृतकों का शव भी घरवालों को नहीं सौंपा और खुद ही बिना किसी धार्मिक रीति रिवाज, जिसमें जनाजे की नमाज होती है, ऐसे ही गडढा खोदकर दफन कर दिया। अलीगढ़ पुलिस की क्रूरता यहीं नहीं रुकी। दोनों की हत्या के बाद पुलिस वालों ने उनके घर पर फिर से दबीश दी और परिजनो के आधार कार्ड, वोटर कार्ड समेत कई तरह के कागजात और पैसे लेकर चले गए। अलीगढ़ पुलिस ने घटना के बाद से ही दोनों मृतकों के परिवार के सदस्यों को हिरासत में रखा हुआ है और परिजनों को घर पर ही एक तरह से नजरबंद कर रखा है।

जांच टीम ने बताया कि जब यूनाइटेड अगेंस्ट हेट की जांच टीम 27 सिंतबर को अलीगढ़ पहुंची तो मृतकों के परिजनों से उनकी मुलाकात बड़ी मुश्किल से हो पायी। अपने दौरे पर जांच टीम अलीगढ़ के अतरौली पुलिस स्टेशन भी गई, जिसके इलाके में ये एनकाउंटर हुआ था। लेकिन वहां एसएचओ प्रवेश राना को ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने जांच टीम से काफी बदतमीजी से बात की। यही नहीं जांच टीम के अनुसार पुलिसवालों ने फोन कर बजरंग दल के 25-30 कार्यकर्ताओं को थाने बुला लिया, जो थाने में ही जांच टीम के खिलाफ नारेबाजी करने लगे और उन्हें गालियां देने लगे। स्थिति खराब होते देख जांच टीम ताने से निकल गई, लेकिन रास्ते में उन्हें सैंकड़ों लोग भगवा गमछा औऱ झंडा लिए थाने की तरफ जाते हुए दिखे, जो ये बताने के लिए काफी है कि अगर जांच टीम के लोग थोड़ी देर और वहां रुकते तो पुलिस वाले थाने में ही उनकी मॉब लिंचिंग करवा देते।

गौरतलब है कि अलीगढ़ लाइव एनकाउंटर पर घटना के दिन से ही सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पुलिस को कैसे पता था कि आधे घंटे बाद एनकाउंटर होने जा रहा है, जो उन्होंने फोन कर मीडिया के लोगों को लाइव करने के लिए बुलाया। यही नहीं, एनकाउंटर की पुलिस की कहानी में कई झोल हैं जो पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े करते हैं। एनकाउंटर मामले में पुलिस ने 4 अलग-अलग एफआईआर दर्ज किये हैं। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जिस चारी की बाइक से भागने के मृतकों पर पुलिस आरोप लगा रही है उसका नंबर हर एफआईआर में अलग दर्ज है। वहीं लाइव एनकाउंटर के वीडियो में भी साफ दिख रहा है कि पुलिस वाले एनकाउंटर का अभिनय करने की कोशिश कर रहे हैं। वीडियो में सिर्फ पुलिस की तरफ से गोलियां चलती नजर आ रही हैं, अपराधियों की तरफ से गोली चलती नहीं दिखाई दे रही है। इसके अलावा वीडियो में कुछ ही पुलिसकर्मी गोली चला रहे हैं. जबकि उनके आसपास कई पुलिस वाले बड़े आराम से टहल रहे हैं, जैसे टहलने आए हैं।

इससे पहले मानवाधिकार संगठन रिहाई मंच ने भी इस एनकाउंटर को फर्जी करार दिया था। मंच की जांच टीम ने भी राजीव यादव के नेतृत्व में अतरौली की नई बस्ती भैंसपाड़ा में मुस्तकीम और नौशाद के घर जाकर उनके परिजनों से मुलाकात की। उस दौरान मुस्तकीम की मां शबाना ने बताया कि 16 सितंबर को ही पुलिस उनके बच्चे को मारते-पीटते उठाकर ले गई थी। उन्होंने बताया कि उसके दो दिन बाद पुलिस वालों ने आकर उनके फरार होने की बात कही। मुस्तकीम के भाई सलमान को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है। और उसी दिन से उनके पति इरफान का भी कोई अता-पता नहीं है। वहीं रिहाई मंच को नौशाद की मां शाहीन ने बताया कि बच्चों को मारने के बाद पुलिस वाले उनके साथ रफीकन और शबाना को भी थाने ले गए थे। बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में उनसे जबर्दस्ती सादे कागजों पर अंगूठे लगवाने के बाद देर रात छोड़ा गया। यही नहीं पुलिस ने उनके परिवार वालों को घर में कैद कर दिया है। पुरुष पुलिस वाले घर के बाहर और यहां तक कि अंदर मौजूद रहते हैं। उन्होंने बार-बार इस बात को कहा कि उन्हें पुलिस पूछताछ के नाम पर लगातार परेशान कर रही है और उन्हें घर के बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है। पुलिस ने नौशाद के मानसिक रूप से विक्षिप्त भाई को भी हिरासत में रखा हुआ है।

बता दें कि पुलिस ने नौशाद और मुस्तकीम को अलीगढ़ के जिस दोहरे हत्याकांड में आरोपी बताकर एनकाउंटर में मार गिराया है, उस केस में पुलिस के विरोधाभासी बयानों ने खुद यूपी पुलिस पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला 12-13 अगस्त की रात अलीगढ़ के पाली थाना क्षेत्र में एक साधु और एक किसान दंपति की हत्या का है। अलीगढ़ पुलिस ने इस डबल मर्डर केस के दो खुलासे कर खुद पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। मामले का पहला खुलासा करते हुए पुलिस ने तीन स्थानीय युवकों तुलसी, विजय और बबलू को 25 दिन पहले जेल भेजा। वहीं 25 दिन बाद दूसरा खुलासा करते हुए पांच लोगों को जेल भेजा और दो लोगों को एनकाउंटर में मार गिराया। 18 सितंबर को अलीगढ़ पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया और तीन अन्य मुस्तकीम, नौशाद और अफसर को फरार बताया। पुलिस ने इन सभी को दोहरे हत्याकांड में शामिल बताया। फिर 20 सिंतबर को सुबह साढे 6 बजे एसएसपी के पीआरओ मीडिया वालों को फोन कर बुलाते हैं और तकरीबन 7 बजे सभी को अलीगढ़ के हरदुआगं के मछुआ नहर के पास ले जाया जाता है। वहां पर पुलिस एनकाउंटर में नौशाद और मुस्तकीम मारे जाते हैं, जिसका लाइव प्रसारण कई चैनलों पर होता है।

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Published: 29 Sep 2018, 9:37 PM