‘नमामि गंगे’ पर आंखें खोलने वाली हैं इलाहाबद HC की टिप्पणियां! कोर्ट ने पूछा- खत्म कर दें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि गंगा सफाई से जुड़ी हुई रिपोर्ट सिर्फ आंखों में धूल झोंकने वाली है। कोर्ट ने कहा कि ट्रीटमेंट प्लांट किसी काम का नहीं हैं। आपने एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश में गंगा की सफाई के लिए चलाए जा रहे ‘नमामि गंगे’ परियोजना और उस पर खर्च किए जा रहे हजारों करोड़ रुपये को लेकर एक बार फिर सरकार की किरकिरी हुई है। गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं, वह आंखें खोल देने वाली हैं। साथ ही इस परियोजना पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने जल निगम, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर करते हुए तीखी टिप्पणियां कीं। हाईकोर्ट ने कहा कि जब गंगा में फैल रहे प्रदूषण की जांच और उस पर कार्रवाई नहीं की जा रही है तो यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्यों गठित कर रखा है? कोर्ट ने कहा कि क्यों न बोर्ड को खत्म कर दिया जाए?

हाईकोर्ट ने मामले में 'नमामि गंगे' परियोजना के महानिदेशक को निर्देश दिया कि 31 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई में गंगा को साफ और निर्मल बनाने में खर्च किए गए अरबों रुपये के बजट का ब्यौरा पेश करें। साथ ही कोर्ट ने पूछा कि गंगा अब तक साफ क्यों नहीं हो सकी?

कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से पूछा- कैसे की जाती है निगरानी?

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकली ने कोर्ट को बताया कि गंगा में शोधित जल नहीं जा रहा है। कानपुर में लेदर इंडस्ट्री, गजरौला में शुगर इंडस्ट्री की गंदगी शोधित हुए बगैर गंगा में जा रही है। शीशा, पोटेशियम और अन्य रेडियोएक्टिव चीजें गंगा को दूषित कर रहीं हैं। इस पर अदालत में मौजूद जल निगम के परियोजना निदेशक से पूछा कि एसटीपी की रोजाना निगरानी कैसे होती है? तब परियोजना निदेशक ने एक रिपोर्ट पेश की। अदालत ने रिपोर्ट पर असंतोष जताते हुए कहा कि यह तो मंथली (महीनावार) रिपोर्ट है, प्रतिदिन की रिपोर्ट कहां है? रिपोर्ट मांगने पर परियोजना के निदेशक उसे पेश नहीं कर पाए। अदालत ने रिपोर्ट देखकर पूछा कि निगरानी कैसे करते हो? निदेशक ने कोर्ट को बताया कि ऑनलाइन की जाती है। अदालत ने कहा कि क्या वीडियो देखकर निगरानी की जाती है? इस बीच अपर महाधिवक्ता नीरज कुमार तिवारी ने प्रतिदिन की रिपोर्ट तैयार करने का कोर्ट को आश्वासन दिया।


आंखों में धूल झोंक रहे जल शोधित के दावे: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने न्यायमित्र की अपीव कानपुर आईटी और बीएचयू आईटी की जांच रिपोर्ट पर ध्यानाकर्षण किया। अदालत ने सीलबंद रिपोर्ट को देखने के बाद हैरानी जाहिर की। उसमें से कुछ की रिपोर्ट इसलिए नहीं आई थींं, क्योंकि जांच के लिए भेजे गए सैंपल की मात्रा पर्याप्त नहीं थी। कुछ सैंपल की रिपोर्ट में शोधित पानी की रिपोर्ट मानक के अनुरूप नहीं पाई गई। इस पर अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट सिर्फ आंखों में धूल झोंकने वाली है। कोर्ट ने कहा कि ट्रीटमेंट प्लांट किसी काम का नहीं हैं। आपने एसटीपी की जिम्मेदारी निजी हाथों में दे रखी है। वे काम हीं नहीं कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को बताया गया कि गंगा किनारे राज्य में 26 शहर हैं। ज्यादातर शहरों में एसटीपी नहीं है। सैकड़ों उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में जा रहा है।

अडानी की कंपनी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चला रही है

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है। करार के मुताबिक, किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो शोधित करने की जवाबदेही नहीं होगी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि ऐसे करार से तो गंगा साफ होने वाली नहीं है। कोर्ट ने कहा ऐसी योजना बन रही, जिससे दूसरों को लाभ पहुंचाया जा सके और जवाबदेही किसी की न हो। अदालत ने कहा कि जब ऐसी संविदा है तो शोधन की जरूरत ही क्या है?


पानी की सैंपल जांच में होती है हेराफेरी!

अदालत ने कहा कि जब पानी की जांच करानी होती है तो साफ पानी मिलाकर सैंपल ले लिया जाता है और अच्छी रिपोर्ट तैयार करा ली जाती है। अदालत ने कहा कि ऐसे काम नहीं चलेगा। रिपोर्ट से साफ है एसटीपी काम नहीं कर रहे हैं और दूषित पानी सीधे गंगा में जा रहा है। परियोजना प्रबंधक ने कहा कि जब गंदा पानी ज्यादा मात्रा में एसटीपी से जाएगा तो शोधित नहीं हो पाएगा, इस पर बाउंड नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब बाउंड नहीं है तो एसटीपी का कोई मतलब ही नहीं है। कोर्ट ने फिर पूछा कि आपके पास कोई पर्यावरण एक्सपर्ट (इंजीनियर) है। जल निगम इस मामले में कैसे काम कर रहा है?

क्या है ‘नमामि गंगे’ परियोजना, कब हुई थी इसकी घोषणा?

गंगा नदी को साफ करने के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना शुरू की गई थी। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पहली बार 2014 के बजट भाषण में 'नमामि गंगे मिशन' की घोषणा की गई थी। उस दौरान यह दावा किया गया था कि 2019 तक गंगा को साफ कर दिया जाएगा।

‘नमामि गंगे’ नाम से गंगा संरक्षण मिशन को शुरू किया गया। यह इसलिए शुरू किया गया था कि गोमुख से लेकर हरिद्वार के सफर के दौरान गंगा 405 किलोमीटर का सफर तय करती है और इसके किनारे बसे 15 शहरों और 132 गांवों के कारण इनसे निकलने वाले कूड़ा-करकट से लेकर सीवरेज तक ने गंगा को प्रदूषित कर दिया है। इसके तहत 2017 से उत्तराखंड में गंगा की निर्मलता के लिए कोशिशें शुरू हुईं।

2019-2020 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने परियोजना का बजट बढ़ाकर चार गुना कर दिया था

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गंगा नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना बढ़ाते हुए 2019-2020 तक 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की कार्य योजना को मंजूरी दी थी। नमामि गंगे की 231 योजनाओं में गंगोत्री से शुरू होकर उत्तरप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, बिहार और बंगाल में विभिन्न जगहों पर पानी के स्वच्छ्ता का काम किया जाना है।


केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गंगा सफाई पर क्या कहा था?

बाद में जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि 2019 तक गंगा नदी की 80 प्रतिशत सफाई हो जाएगी, लेकिन पूरी प्रक्रिया 2020 तक पूरी हो जाएगी। 2019 में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि स्वच्छ गंगा निधि (सीजीएफ) के तहत जमा किए गए कुल धन का तब केवल 18 फीसदी खर्च किया गया था। साल 2022 के 6 महीने बीत जाने के बाद भी सफाई के मामले में गंगा की हालत कैसी है, यह किसी से पूछने की जरूरत नहीं।

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Published: 28 Jul 2022, 10:35 AM