यूपी में सहायता प्राप्त 558 मदरसों की जांच पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक, NHRC और शिकायतकर्ता को नोटिस

तल्हा अंसारी नामक एक व्यक्ति ने इन मदरसों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिस पर मानवाधिकार आयोग ने आर्थिक अपराध शाखा के महानिदेशक को जांच करने का निर्देश दिया था। आयोग के निर्देश और जांच की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

यूपी में सहायता प्राप्त 558 मदरसों की जांच पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई रोक, NHRC और शिकायतकर्ता को नोटिस
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नवजीवन डेस्क

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में सहायता प्राप्त 558 मदरसों के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर लखनऊ स्थित आर्थिक अपराध शाखा द्वारा की जा रही जांच पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने सोमवार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और शिकायतकर्ता को नोटिस भी जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर, 2025 को होगी।

मोहम्मद तल्हा अंसारी नामक एक व्यक्ति द्वारा इन मदरसों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आर्थिक अपराध शाखा के महानिदेशक को पत्र भेजकर जांच करने का निर्देश दिया था। आयोग के निर्देश और जांच की वैधता को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आयोग द्वारा इस साल 28 फरवरी, 23 अप्रैल और 11 जून को पारित आदेशों को रद्द करने का अनुरोध किया गया।


इन आदेशों के तहत आरोपों की जांच करने और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट देने को कहा गया था। याचिका में 23 अप्रैल 2025 को जारी उस सरकारी आदेश को भी रद्द करने का अनुरोध किया गया है जिसमें आर्थिक अपराध शाखा को सभी 558 मदरसों की जांच करने के लिए अधिकृत किया गया था।

खंडपीठ ने इन आदेशों पर अंतरिम रोक लगाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया। अदालत के समक्ष दलील दी गई कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के अंतर्गत आयोग के कार्यों का स्पष्ट उल्लेख है। साथ ही धारा 36(2) के अनुसार, मानवाधिकार उल्लंघन की तिथि से एक वर्ष बीतने के पश्चात आयोग उस मामले की जांच नहीं कर सकता।


यह भी तर्क दिया गया कि धारा 12-ए के अंतर्गत आयोग स्वतः संज्ञान लेकर, पीड़ित की याचिका पर, पीड़ित की ओर से किसी अन्य व्यक्ति की याचिका पर अथवा न्यायालय के निर्देश पर ही जांच कर सकता है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वर्तमान मामले में इन किसी भी स्थितियों की पूर्ति नहीं होती है। अदालत ने सभी प्रतिवादियों को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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