उत्तराखंडः हड़ताली कर्मचारियों पर ‘महामारी एक्ट’ में केस, बीजेपी सरकार पर कोरोना के बहाने विरोध कुचलने का आरोप
सरकारी नौकरी में प्रमोशन को लेकर हड़ताल पर बैठे सैकड़ों कर्मचारियों से कड़ाई से निपटने के लिए उत्तराखंड सरकार ने उनके खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत केस दर्ज किया है। अब ये हड़ताली कर्मचारी पुलिस से बचने के लिए भागे-भागे फिर रहे हैं।
कोरोना वायरस के कोहराम के बीच उत्तराखंड सरकार ने राज्य में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में रिजर्वेशन के आधार पर वरीयता की मांग को लेकर हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों से कड़ाई से निपटने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है। इसी के तहत मंगलवार को जबरन स्टेडियम में घुसे सैकड़ों हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस ने महामारी अधिनियम के तहत केस दर्ज कर लिया है। अब ये हड़ताली कर्मचारी पुलिस से बचने के लिए भागे-भागे फिर रहे हैं।
मंगलवार को देहरादून स्टेडियम में दीवार-दरवाजों से कूदकर घुसने वाले सैकड़ों कर्मचारियों के खिलाफ स्थानीय डालनवाला थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है। एफआईआर देहरादून के जिला क्रीड़ा अधिकारी राजेश ममगई की शिकायत पर दर्ज किया गया है। चूंकि अचानक स्टेडियम में घुसने वाली भीड़ में सैकड़ों हड़ताली शामिल थे, इसलिए सबकी अलग-अलग पहचान तुरंत कर पाना मुमकिन नहीं था। लिहाजा एफआईआर में किसी को नामजद नहीं कराया गया है।
देहरादून की पुलिस अधीक्षक श्वेता चौबे ने बुधवार को बताया, "थाना डालनवाला में एक एफआईआर अज्ञात भीड़ के खिलाफ दर्ज की गई है। यह एफआईआर देहरादून जिले के डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स ऑफिसर की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ है, जिसमें महामारी अधिनियम और जबरन सरकारी स्थल में घुसने की धाराएं लगाई गई हैं।" एसपी सिटी ने बताया कि स्टेडियम/परेड ग्राउंड (स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स) में घुसी भीड़ में करीब दो से ढाई सौ लोग शामिल थे। उन्होंने कहा कि आरोपियों की तलाश में छापेमारी जारी है। जल्द ही कई गिरफ्तारियां होने की उम्मीद है।"
उल्लेखनीय है कि जब से कोरोना जैसी महामारी ने कोहराम मचाया है तब से अब तक हिंदुस्तान में उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ 'महामारी अधिनियम' के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। जिन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ महामारी अधिनियम और जबरन सरकारी जगह में घुसने का केस दर्ज किया गया है, उनमें से अधिकांश कई दिन से हड़ताल पर हैं।
बता दें कि सोमवार से मंगलवार रात तक बिना अनुमति धरना देने के बाबत इन कर्मचारियों के खिलाफ 24 घंटे में तीन से ज्यादा मामले दर्ज किये जा चुके हैं। सभी मामले देहरादून जिले के डालनवाला थाने में दर्ज बताए जाते हैं। हड़ताल न तोड़ने पर अमादा अड़ियल कर्मचारियों के खिलाफ डालनवाला थाने में ही एक और मामला दर्ज कराया गया। यह मामला देहरादून के उप कोषाधिकारी अरविंद सैनी द्वारा मारपीट, सरकारी काम में बाधा पैदा करने की शिकायत पर दर्ज किया गया है।
वहीं, महामारी अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर में फंसे हड़ताली कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें प्रमोशन में रिजर्वेशन के आधार पर वरीयता दी जाए। हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि सरकार उनके विरोध को कुचलने के लिए कोरोना वायरस के कहर को देखते हुए लागू महामारी एक्ट का सहारा ले रही है। सरकारी कर्मचारियों ने कहा कि उनकी मांग पर बातचीत करने या विचार करने की बजाय सरकार ने सीधा महामारी एक्ट में केस दर्ज कर साफ बता दिया है कि अपने अधिकारों के लिए किसा तरह का प्रदर्शन उसे पसंद नहीं है।
यहां बता दें कि महामारी अधिनियम (एपीडमिक डिसीज एक्ट) के तहत देश में हड़ताल पर बैठे सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भले ही उत्तराखंड पुलिस ने पहला मामला दर्ज किया है, मगर देश में कोरोना महामारी के मामले में यह दूसरा केस बताया जा रहा है। इससे पहले आगरा पुलिस ने एक पिता के खिलाफ भी इसी महामारी एक्ट की धाराओं में केस दर्ज किया है। आरोपी पर बेटी के कोरोना संक्रमित होने की बात प्रशासन से छिपाने का आरोप है।
क्या है महामारी एक्ट
दरअसल यह कानून करीब सवा सौ साल पुराना है। इसे सन् 1897 में लागू किया गया था। उस वक्त हिंदुस्तान पर ब्रिटिश हुकूमत का कब्जा था। इस कानून को बनाने के पीछे भी उन दिनों मुंबई में प्लेग (महामारी) फैलना ही प्रमुख वजह थी। उस महामारी का नाम 'ब्यूबॉनिक' था। उस दौरान महामारी एक्ट के तहत सरकारी अफसरों-कर्मचारियों को कुछ विशेष अधिकार दिए गए थे। हालांकि तब से अब तक चले आ रहे इस एक्ट (कानून या अधिनियम को) को हिंदुस्तान के कानूनों में सबसे छोटे कानूनों की श्रेणी में गिना जाता है। इसमें कुल चार सेक्शन हैं।
इस कानून के पहले हिस्से में कानून के बारे में विस्तृत ब्योरा है। दूसरे हिस्से में विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है। इस कानून के तहत राज्य और केंद्र सरकार को विशेषाधिकार (महामारी के दौरान) खुद-ब-खुद ही मिल जाते हैं। तीसरे भाग में इस कानून की धारा 3 और आईपीसी 188 के तहत जुमार्ने और अर्थदंड का उल्लेख है। महामारी कानून की धारा-3 के अंतर्गत 6 महीने की कैद या एक हजार का अर्थदंड अथवा दोनों सजाएं सुनाई जा सकती हैं।
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