गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में माना दिल्ली दंगे सुनियोजित थे, फिर भी तो जिम्मेदारी आपकी ही है गृहमंत्री जी !

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि प्रथम दृष्टया लगता है कि दिल्ली दंगे सुनियोजित थे। उनके ऐसा कहने का तात्पर्य तो यही निकलना चाहिए कि दिल्ली पुलिस और खुफिया विभाग जो उन्हीं के अधीन काम करते हैं, पूरी तरह नाकाम रहे।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में माना कि दिल्ली दंगे सुनियोजित थे, एक साजिश के तहत इसकी योजना बनाई गई। फिर भी उन्होंने इसके लिए न तो दिल्ली पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस और न ही उनके अधीन आने वाले खुफिया विभाग को नाकाम बताया। उन्होंने उलटा दिल्ली पुलिस की पीठ थपथपाई कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों को राजधानी के बाकी हिस्सों में नहीं फैलने दिया गया।

अमित शाह ने लोकसभा में नियम 193 के तहत दिल्ली दंगों पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा कि इस हिंसा के लिए कुछ भड़काऊ भाषण जिम्मेदार हैं। उन्होंने बिना नाम लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भाषण, एआईएमआईएम के वारिस पठान का भाषण और इंडिया अगेंस्ट हेट नाम के एनजीओ के भाषण का जिक्र किया। लेकिन उन्होंने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा उस भाषण के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला जिसके बाद दिल्ली जल उठी थी।

अमित शाह ने आंकड़े गिनाते हुए बताया कि इसमें 52 लोगों की मौत हुई, 526 घायल हुए, 371 दुकानों और 129 घरों को आग लगा दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि इस सिलसिले में 2,647 लोगों को या तो हिरासत में लिया गया है या फिर गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि उत्तर पूर्वी दिल्ली देश का सबसे घनी आबादी वाला इलाका है, इसलिए संकरी गलियों में पुलिस फोर्स और दमकल पहुंचने में देर हुई।

अमित शाह ने दंगों की जांच के बारे में बताया कि फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर की मदद से दंगा करने वालों की पहचान की जा रही है। इसमें वोटर आईडी, ड्राइविंग लाइसेंस आदि का डेटा इस्तेमाल किया जाता है और इसकी मदद से 1100 दंगाइयों की पहचान हो चुकी है। उन्होंने बताया कि ऐसे 300 लोगों की भी पहचान हुई है जो उत्तर प्रदेश से आए थे।

गृहमंत्री ने बार-बार कहा कि दिल्ली के दंगे एक साजिश के तहत योजना बनाकर किए गए। इसके लिए पैसे भी बाहर से आए और पैसा पाने वाले दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। लेकिन सवाल है कि दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा के ज्वालामुखी पर बैठी थी और देश की खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी? अमित शाह कहते हैं कि सोशल मीडिया के जरिए लोगों को भड़काने का काम किया गया, सवाल है कि इसे रोकने की क्या कोशिश की गई। गृहमंत्री बताते हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं के बयानों ने आग में घी का काम किया, लेकिन दिल्ली चुनाव को भारत-पाकिस्तान का चुनाव बताने वाले, देश के गद्दारों को, गोली मारो...जैसे बयान, भाषण और नारे लगाने वालों के बारे में कुछ नहीं कहा।

गृहमंत्री ने अपने भाषण में फिर शाहीन बाग का जिक्र किया और कहा कि जिस दिन शाहीन बाग में धरना शुरु हुआ, उसी दिन दिल्ली में दंगों की योजना बन गई थी, लेकिन वे भूल गए कि दिल्ली में चुनाव के दौरान उन्होंने ही कहा था कि शाहीन बाग को करंट लगना चाहिए। इसके साथ ही अगर शाहीन बाग का धरना शुरु होते ही दंगों की योजना बन गई थी तो फिर गृहमंत्री के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस और खुफिया विभाग ने इसे रोकने के लिए कोई काररवाई क्यों नहीं की? आखिर क्यों पुलिस ने 23 फरवरी तक इंतजार किया? आखिर दिल्ली पुलिस के डीसीपी के सामने खुली धमकी देने वाले कपिल मिश्रा के भाषण का संज्ञान क्यों नहीं लिया गया?

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