मोदी सरकार के पांच बड़े फैसले जिसका जनता पर हुआ बहुत बड़ा असर, कई जिंदगियां हो गईं तबाह!

गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के ऑल इंडिया मैनेजमेंट के 46वें कनवेंशन में मोदी सरकार द्वारा लिए गए 50 फैसलों की बात कर अपनी सरकार की जमकर वाहवाही की। लेकिन यह ‘पब्लिक है सब जानती है’ कि मोदी सरकार के उन 50 फैसलों की कैसे दुर्दशा हुई है।

फोटो: सोशल मीडिया
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हैदर अली खान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 69वां जन्मदिन मना रहे हैं। इस मौके पर केंद्र सरकार के मंत्री पीएम मोदी की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। देश को ऐसी बातें बताई जा रही हैं, जैसे प्रधामंत्री मोदी से बड़ा जनता के लिए कोई मसीहा हो ही नहीं सकता। दिल्ली के ऑल इंडिया मैनेजमेंट के 46वें कनवेंशन में गृह मंत्री ने अमित शाह ने पीएम मोदी की जमकर तारीफ की। इस दौरान उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी ने जनता के मन में विश्वास जगाया है कि 21वीं सदी भारत की हो सकती है। शाह ने कहा कि पिछली सरकारों ने 30 सालों में 5 बड़े फैसले लिए, वहीं मोदी सरकार ने 5 सालों में 50 फैसले लिए हैं।

गृह मंत्री ने 50 बड़े फैसलों की बात कर अपनी सरकार की जमकर वाहवाही की। लेकिन यह ‘पब्लिक है सब जानती है’ कि मोदी सरकार के उन 50 फैसलों की कैसे दुर्दशा हुई है। 50 नहीं मोदी सरकार के सिर्फ 5 फैसलों की बात करते हैं, जिनको आधार बनाकर अमित शाह, पीएम मोदी को मसीहा बता रहे हैं।

नोटबंदी:

8 नवंबर, 2018 को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का फैसला लिया था। पीएम मोदी ने फैसले को ऐतिहासकि बताया था, लेकिन इस फैसले का परिणाम सिफर रहा। नोटबंदी के फैसले से न सिर्फ आम लोगों को परेशानी हुई, बल्कि कई जिंदगियां भी काल के गाल में समा गईं। पीएम मोदी ने नोटबंदी का ऐलान करते हुए कहा था कि कालेधन और भ्रष्टाचार पर चोट करने के मकसद से यह फैसला लिया गया है। लेकिन न तो कालाधन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार में कमी देखने को मिली। नोटबंदी की नाकामी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आरबीआई भी यह कह चुका है कि बाजार में मौजूद पुराने नोट करीब 99 फीसदी वापस आ चुके हैं। ऐसे में सवाल यह है कि बकौल मोदी सरकार बाजार में फैले जाली नोटों और छुपाए गए कालेधन का क्या हुआ? क्या नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगा, क्या इससे देश की अर्थव्यवस्था में कोई बदलाव आया? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब आज तक मोदी सरकार नहीं दे पाई।


जीएसटी:

1 जुलाई, 2017 को मोदी सरकार ने जीएसटी लागू किया था। जीएसटी को सबसे बड़ा फैसला बताते हुए मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को ज्यादा औपचारिक बनाने का वादा किया था। जीएसटी को लागू हुए 2 साल से ज्यादा के वक्त बीत चुके हैं। आलम यह कि अब जीएसटी को अर्थव्यवस्था पर सबसे बड़ी चोट बताया जा रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद छोटे, मध्यम वर्ग के रोजगार पूरी तरह से तबाह हो गए। छोटे मिल और कारखाने बंद हो गए। लाखों लोगों की नकौरियां चलई गईं। आज देश में आर्थिक मंदी छाई है। आर्थिक मंदी से सभी सेक्टर प्रभावित हैं। आलम यह है कि ऑटो सेक्टर की कंपनियां प्रोडक्शन बंद करने को मौजबूर हैं। आर्थिक मंदी के पीछे उद्योगपति जीएसटी को एक बड़ा आधार बता रहे हैं।

ब्रिट‍िश ब्रोकरेज फर्म एचएसबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि जीएसटी के जरिए अर्थव्यवस्था को ज्यादा औपचारिक बनाया जाना था, लेक‍िन एक साल बीत जाने के बाद भी मोदी सरकार ऐसा करने में नाकाम रही थी। एचएसबीसी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जीएसटी में अभी भी कई दिक्कतें मौजूद हैं, जिसकी वजह से एक बार फिर अर्थव्यवस्था में कैश की डिमांड बढ़ गई है।

विपक्ष शुरू से ही जीएसटी स्लैब को लेकर सवाल खड़े करता रहा, लेकिन मोदी सरकार ने एक न सुनी। बाद में मोदी सरकार को अपने फैसले में बदलाव करना पड़ा। जिस मोदी सरकार ने जीएसटी स्लैब में बदलाव करने से मना कर दिया था, वही सरकार पिछले दो सालों में अब तक कई बार जीएसटी स्लैब में बदलाव कर चुकी है।

मोटर व्हीकल एक्ट:

मोदी सरकार ने 1 सितंबर, 2019 से मोटर व्हीकल एक्ट को लागू किया है। देश में यातायात नियम को लेकर लोगों की कैसी प्रतिक्रियाएं हैं, किसी से यह छिपी नहीं है। यातायात नियम मजाक बनकर रह गया है। लोगों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि कब, कैसे और कहां किस चीज के लिए चालान कट जाए। मोटर व्हीकल एक्ट को लेकर देश भर के लोगों में भारी गुस्सा है। मोदी सरकार मोटर व्हीकल एक्ट को ऐतिहासिक फैसला बता रही है। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने इस कानून को लागू करने से मना कर दिया। वहीं जिन बीजेपी शासित राज्यों ने इस कानून को लागू किया है, उन्होंने जुर्माने की राशि को आधा कर दिया है।


अनुच्छेद 370:

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त, 2019 को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के ज्यादातर हिस्सों को हटाने का ऐलान किया था। इस फैसले को लेने से पहले मोदी सरकार ने घाटी को छावनी में तब्दील कर दिया था। सैलानियों और अमरनाथ यात्रियों को घाटी से वापस बुला लिया गया। घाटी में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी। घाटी से 370 हटाए जाने के ऐलान के बाद कश्मीर के राजनीतिक पार्टीयों के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। नजरबंद होने वालों में पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समते कई बड़े नेता शामिल थे। घाटी से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को एक महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। अभी भी वहां पर ज्यादातर हिस्सों में पाबंदिया लगी हुई हैं। घाटी के नेता आज भी नजरबंद है, लोग अपने घरों में कैद हैं। मोदी सरकार दावा कर रही है घाटी में सब कुछ सामान्य है। सवाल यह है कि अगर कश्मीर में सब कुछ सामान्य है तो अब तक पाबंदियां क्यों नहीं हटाई गई हैं? घाटी में नजरबंद किए गए नेताओं को क्यों नहीं छोड़ा जा रहा है। मीडिया और नेताओं को कश्मीर में जाने क्यों नहीं दिया जा रहा है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब मोदी सरकार नहीं दे पा रही है। घाटी से पूरी तरह से पाबंदियां हटने के बाद वहां कि क्या तस्वीर होगी यह सोचकर हर कोई डरा हुआ है।

आदर्श ग्राम योजना:

मोदी सरकार ने आदर्श ग्राम योजना के तहत सभी सांसदों के द्वारा 5 गावों को गोद लेने की व्यवस्था की थी, जिसमें 2016 तक हर सांसद को एक-एक गांव को विकसित बनाए जाने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन मोदी सरकार के 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी एक भी गांव आदर्श ग्राम की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया। अब तक बीजेपी के ही कितने सांसद एक गांव को विकसित कर पाए हैं और उसे आदर्श बना पाएं हैं, यह हकीकत किसी से छिपी नहीं है।

गृह मंत्री अमित शाह अपनी सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की फेहरिस्त तो गिना रहें, लेकिन वह यह नहीं बता रहे कि जो फैसले उनकी सरकार ने लिए, उनमें से ज्यादातर फैसले फ्लॉप रहे हैं। मोदी सरकार को अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए राष्ट्रवाद का चोला पहनना पड़ रहा है। हकीकत यह भी है कि जिन फैसलों और विकास की बात आज अमित शाह कर रहे हैं, उन फैसलों और विकास को दरकिनार कर बीजेपी ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, और राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया था।

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Published: 17 Sep 2019, 3:59 PM