ज्ञानेश जी, वोट चोरी पर सच्चाई बताइए न सबके सामने आकर...एक नागरिक का मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र
देश का चुनाव आयोग ज्यादातर अज्ञात या अनाम ‘सूत्रों’, टीवी एंकरों और बीजेपी प्रवक्ताओं के जरिये बोल रहा है। अगर वोट चोरी के आरोपों पर बार फिर निजी तौर पर जवाब दे दें सीईसी तो, तो चुनाव आयोग की इज्जत काफी बढ़ जाएगी। एक नागरिक का खुला पत्र...

महाशय,
देशवासियों को रविवार, 17 अगस्त को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में आपका प्रेस कॉन्फ्रेंस याद है। यह एक जबरदस्त कलाकारी थी और हमने इसके बारे में 24 अगस्त 2025 को (जब बिहार एसआईआर को लेकर खुलकर सामने आए चुनाव आयोग के झूठ) लिखा भी था। आप लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा मतदाता सूची में धांधली के आरोपों के जवाब दे रहे थे। राहुल गांधी ने 2024 के आम चुनाव में एक लोकसभा सीट (बेंगलुरु सेंट्रल) के सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र (महादेवपुरा) की बात की थी। आपने प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए बड़ी चतुराई से वह दिन चुना जिस दिन राहुल गांधी बिहार में अपनी मतदाता अधिकार यात्रा शुरू करने वाले थे। आपको जरूर याद होगा!
क्या हम उम्मीद करें कि 18 सितंबर को राहुल ने जो सवाल उठाए, उनके जवाब में भी आप ऐसे ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे? हमें पता है कि भारत के संदेह के बादल में घिरे चुनाव आयोग ने इन आरोपों को भी ‘निराधार और तथ्यहीन’ बताकर खारिज कर दिया है। लेकिन चुनाव आयोग ज्यादातर अज्ञात या अनाम ‘सूत्रों’, टीवी एंकरों और भाजपा प्रवक्ताओं के जरिये बोल रहा है। अगर आप एक बार फिर इन आरोपों का निजी तौर पर जवाब दे दें, तो चुनाव आयोग की इज्जत काफी बढ़ जाएगी। आपने गौर किया होगा कि विपक्ष के आक्रामक नेता ने आपकी ही किताब में दिए गए प्रावधानों पर अमल करते हुए आपको एक हफ्ते की समय सीमा दी है। महोदय, हम इंतजार कर रहे हैं!
18 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कई सवाल उठाए और कॉन्फ्रेंस के बाद ‘द अलंद फाइल्स’ शीर्षक से दिए गए अपने प्रेजेंटेशन में भी उन्होंने तमाम सवाल उठाए। उनमें से कुछ ये हैंः
सवाल: क्या जनवरी-फरवरी 2023 में कर्नाटक के अलंद विधानसभा क्षेत्र में 6,018 मतदाताओं के नाम हटाने के ऑनलाइन प्रयास हुए थे?
गौर करें, नेता प्रतिपक्ष ने यह आरोप नहीं लगाया कि इतने मतदाताओं के नाम वास्तव में मतदाता सूची से हटा दिए गए थे, बल्कि उनका आरोप यह है कि इनके नाम हटाने के प्रयास किए गए। चूंकि कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 2023 में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, इसलिए आपको इस सवाल का जवाब देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
सवाल: अगर चुनाव आयोग को धोखाधड़ी के प्रयास की जानकारी थी और उसने एफआईआर दर्ज करते हुए राज्य पुलिस से मामले की जांच की अपेक्षा की, तो चुनाव आयोग कर्नाटक सीआईडी और आर्थिक अपराध शाखा द्वारा मांगी गई जानकारी देकर उनके साथ सहयोग क्यों नहीं कर रहा है?
सवाल: क्या यह सच है कि कर्नाटक पुलिस ने 18 महीनों में चुनाव आयोग को 18 पत्र और रिमाइंडर भेजे, जिनमें से किसी का भी जवाब नहीं मिला?
सवाल: चुनाव आयोग ने 18 सितंबर को यह दावा क्यों किया कि मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए ऑनलाइन फॉर्म 7 पर आवेदन दाखिल करना संभव नहीं, जबकि पुलिस को दी गई शिकायत में उसने साफ कहा है कि नाम हटाने के लिए आवेदन ऑनलाइन मिले थे?
ये ऑनलाइन आवेदन कथित तौर पर उसी बूथ के मतदाताओं द्वारा अपने एपिक नंबरों का इस्तेमाल करते हुए लॉगिन करके दाखिल किए गए थे। चुनाव आयोग ने ओटीपी भी जनरेट किया था, जो कथित तौर पर मतदाताओं द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों पर भेजा गया था। फिर आपने इससे इनकार क्यों किया?
सवाल: क्या यह सच है, जैसा कि राहुल गांधी ने आरोप लगाया है, कि अलंद में जिन मतदाताओं ने फॉर्म 7 जमा किया था, वे सभी अपने-अपने मतदान केन्द्रों की मतदाता सूची में सबसे ऊपर सूचीबद्ध थे? इस पर चुनाव आयोग के कान क्यों नहीं खड़े हुए और चुनाव आयोग ने चुनाव से पहले कांग्रेस उम्मीदवार बी.आर. पाटिल की शिकायतों के आने का इंतजार क्यों किया?
सवालः क्या राहुल गांधी का यह कहना सही है कि अगर ये फॉर्म मैन्युअली जमा किए जाते, तो ओटीपी जनरेट करने और भेजने में लगने वाले समय को देखते हुए, ये फॉर्म फटाफट जमा हो जाते? उन्होंने दो उदाहरण दिए- एक, नागराज ने 36 सेकंड में दो फॉर्म जमा किए और दूसरे ने 14 मिनट में 12 आवेदन। क्या इससे भी चुनाव आयोग को गड़बड़ी का अंदाजा नहीं हो जाना चाहिए था?
सवालः क्या विपक्ष के नेता का यह कहना सही है कि फॉर्म अपलोड करने या ओटीपी प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किए गए कई मोबाइल फोन राज्य के बाहर के थे?
इस गड़बड़ी का पता लगाने वाले कांग्रेस उम्मीदवार बी.आर. पाटिल ने दावा किया है कि इस्तेमाल किए गए फोन झारखंड, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के थे। इसके लिए पुलिस जांच की भी जरूरत नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से चुनाव आयोग द्वारा इन नंबरों की जांच की जा सकती थी?
चूंकि चुनाव आयोग को इन ऑनलाइन फॉर्म के स्रोत, इस्तेमाल की गई डिवाइस के स्थान, गंतव्य आईपी और ओटीपी ट्रेल की जानकारी है, तो वह यह जानकारी कर्नाटक पुलिस के साथ साझा क्यों नहीं कर रहा है? निश्चित ही, चुनाव आयोग को इतना तो पता ही होगा कि इन जानकारियों से जांचकर्ताओं को अपराधियों को जल्दी पकड़ने में मदद मिलेगी?
सवाल: क्या यह सच है कि कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 14 मार्च 2025 को चुनाव आयोग के सचिव अमित कुमार को एक पत्र लिखा था, जिसमें चुनाव आयोग से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 के तहत एक प्रमाणपत्र जारी करने का आग्रह किया गया था, जिसमें उस व्यक्ति का नाम शामिल हो जिसका उन सर्वरों और डिवाइस पर ‘वैध नियंत्रण’ था जहां लॉगिन विवरण दर्ज किए गए थे और ओटीपी जनरेट किए गए थे? क्या चुनाव आयोग ने यह जानकारी साझा की?
महाशय, जैसा कि राहुल गांधी ने बताया है, चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करना चुनाव आयोग का काम है। हमें पूरी उम्मीद है कि आप बिना किसी देरी के स्थिति स्पष्ट करेंगे।
सादर,
एक जागरूक नागरिक
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