सेलिब्रिटीज़ के नाम पर नशा, नाम, दाम और टशन का धंधा, तो क्या ड्रग्स के खिलाफ एक हारी हुई जांग लड़ रहे हैं हम

ड्रग्स का धंधा गंदा है लेकिन उसकी रोकथाम के नाम पर जो हो रहा है, वह भी साफ-सुथरा नहीं। एनडीपीएस कानून में इसका सेवन करने वालों को खलनायक नहीं बल्कि पीड़ित के तौर पर व्यवहार करने का प्रावधान है। लेकिन लगता है कि आर्यन खान केस में एनसीबी यह बात भूल गया।

फोटो : सोशल मीडिया
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गौतम एस मेंग्ले

लगता है नशीले पदार्थों के खिलाफ भारत एक हारी हुई जंग लड़ रहा है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने हाल-फिलहाल जो भी कुछ ‘बहादुरी’ का काम किया, हकीकत यही है कि न तो ड्रग्स का व्यापार घटा, न ही इसके आदी लोगों की संख्या कम हुई। जिन्हें शक हो, अहमदाबाद में नशा मुक्ति केन्द्रों के बारे में सर्च कर लें। गूगल सर्फिंग करने पर 2,00,000 से अधिक रिजल्ट आएंगे और इनमें भी ‘अहमदाबाद में 100 प्रमुख नशा मुक्ति केन्द्र’ होंगे।

साफ है, ड्रग्स के खिलाफ घोषित हो या अघोषित कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कोर्ट को सूचना तो दी है कि वह 11 सितंबर को मुंद्रा बंदरगाह पर बरामद हेरोइन जखीरे के संबंध में ‘नारको आतंकवाद’ के लिंक की भी जांच कर रही है लेकिन लगता है कि मामले को दबा दिया गया है। इस बंदरगाह पर टेल्कम पाउडर लदे कुछ कन्टेनर की जब राजस्व गुप्तचर निदेशालय (डीआरआई) ने जांच की, तो अधिकारियों को एक में 21,000 करोड़ की हेरोइन मिली। इसने चेन्नई के एक दंपति एम सुधाकर और उनकी पत्नी को 17 सितंबर को गिरफ्तार किया। इसने 26 सितंबर को मुंबई से पी राजकुमार को गिरफ्तार किया। तीनों को जेल भेज दिया गया। शुरू में मामला नशीले पदार्थों के सेवन, इसे बनाने, खरीद-बिक्री करने के खिलाफ बने कानून- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत दर्ज किया गया। बाद में इसे एनआईए को सौंपा गया जिसने मुख्यतः आतंकी गतिविधियों को रोकने वाले गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) और अन्य आतंक विरोधी कानूनों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

लेकिन अब तक जांच में पाकिस्तान या आईएसआई पर उंगली नहीं उठाई गई है जैसा कि आम तौर पर होता है। मोटे तौर पर यही शंका है कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, वे छोटी मछलियां हैं। जिस दंपती को गिरफ्तार किया गया है, उनका विजयवाड़ा का पता और जीएसटी पंजीयन है। यह कंपनी विदेश से सामान मंगाया करती थी। अभी यह भी साफ नहीं है कि ऑर्डर इन्होंने दिया या किसी और ने। दिल्ली में इस माल की डिलिवरी होनी थी लेकिन वहां का पता फर्जी पाया गया है जिससे रहस्य गहरा गया है।

ऐसे में, गुजरात और अन्य जगहों की राजनीतिक गतिविधियों को नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से धन अर्जित करने वाले लोगों से फंडिंग करने का संदेह गहरा गया है। लेकिन अब तक कोई प्रमाण सामने नहीं आए हैं। नशीले पदार्थों की समय-समय पर की जाने वाली जब्ती ने लोगों के मन में यही संदेह पैदा किया है कि ये नशे की लत वाले लोगों के उपयोग के लिए होते हैं।

अफगानिस्तान में अफीम की खेती होती है। 2001 से इस खेती ने ज्यादा जोर पकड़ा है। कुछ रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में 2001 में सिर्फ 180 टन अफीम का उत्पादन हुआ था जो पिछले साल बढ़कर 9,000 टन हो गया। पाकिस्तान, ईरान और भारत के जरिये तस्करी से पहले इनसे हेरोइन, हशीश या मारिजुआना तैयार किया जाता है। सवाल यह भी है कि अमेरिका और उसके मित्र देशों ने अफगानिस्तान में करीब 20 साल तक ‘लगभग राज’ ही किया, फिर भी उसने यह धंधा चलने ही क्यों दिया।

अफीम की खेती अपने यहां भी होती है और सिर्फ हिमालय क्षेत्र में ही नहीं। हिमाचल प्रदेश के एक गांव- मलाना में बनने वाले हशीश या ‘मलाना क्रीम’ की बिक्री हिमाचल प्रदेश, गोवा और तटवर्ती इलाकों में खुलेआम होती है। नशीले पदार्थों के खिलाफ सक्रिय एक्टिविस्टों का कहना है कि इस पर रोक लगाने के लिए कोई गंभीर नहीं है और मुद्दे से सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए रिया चक्रवर्ती और आर्यन खान-जैसों की गिरफ्तारी को मीडिया में उछाला जाता है।


वैसे भी, गांजा, भांग, चरस और अफीम-जैसे मादक पदार्थों का तीर्थ यात्राएं करने वाले लोग, साधु और कांवड़िये जिस तरह सेवन करते हैं, वह कोई छिपी हुई बात तो है नहीं। हेम्प फाउंडेशन नाम की एक संस्था भांग की फसल को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रही है। फाउंडेशन का दावा है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने भांग की फसल उगाने को कानूनी मान्यता दी है और अन्य राज्यों को भी ऐसा करना चाहिए। इसका तर्क है कि इस तरह के फसल के एक हिस्से का भले ही नशीले पदार्थ के लिए उपयोग हो, इसका उपयोग दवाएं बनाने के साथ- साथ कपड़े के लिए रूई बनाने के विकल्प के तौर पर हो सकता है। कपास में पानी की बहुत खपत हो जाती है जबकि इससे काफी कम में इससे रूई तैयार हो सकती है।

पिछले करीब एक साल से कुछ फिल्म स्टारों की जांच के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर एक पूर्व एनसीबी अफसर ने सवाल उठाया कि ‘इन लोगों को एनसीबी दफ्तर बुलाने को नाटकीय रूप आखिर दिया ही क्यों जा रहा? चौकसी रखने और सूचना देने वाले को पुरस्कृत करने में एनसीबी पूरी तरह सक्षम है। अगर यह पाया जाए कि किसी सेलिब्रिटी ने नशा किया है, तो उसके घर पर सावधानी के साथ जाया जा सकता है और वैसी सूचनाएं जुटाई जा सकती हैं जो हमें चाहिए।’ उनका कहना है कि जिस तरह वाट्सएप चैट्स और उसके विवरण लीक किए गए हैं, वे एजेंसी के लिए अच्छी बात नहीं हैं।

ब्यूरो छोटी मात्रा में नशीले पदार्थ लेने वालों या छोटी मछलियों से संबंधित मामलों की जांच कभी नहीं करती। इस तरह की सूचना जरूरी कार्रवाई के लिए स्थानीय पुलिस को दे दी जाती है। लेकिन बड़े मामलों को वह इतना उलझा देती है कि ज्यादा कुछ होता-जाता नहीं है। जून, 2009 में एनसीबी ने पंजाब के एक पुलिस अफसर को तीन अन्य लोगों के साथ पकड़ा। इस अफसर को कुश्ती के लिए अर्जुन अवार्ड मिला हुआ है। मुंबई में एक मॉल के बाहर यह गिरफ्तारी हुई और इन लोगों के पास से 25 किलोग्राम मेथेम्पेटामाइन बरामद हुए। यह सिंथेटिक ड्रग है। अक्तूबर, 2010 में ब्यूरो ने महाराष्ट्र और गुजरात में एक साथ दो कारखानों पर छापा मारा जहां मेथेम्पेटामाइन बनाने से पहले की सामग्री- एफेड्राइन बनाई जा रही थी। यहां से इसकी 431 किलोग्राम मात्रा बरामद की गई।

ब्यूरो में पहले रह चुके लोग बताते हैं कि एजेंसियों की कई मामलों को एक साथ मिला देने और औचित्यपूर्ण तथा अनावश्यक सूचनाएं मिला-जुलाकर हजारों पेजों की चार्जशीट दायर करने की आदत रही है। रिया चक्रवर्ती मामले में 33 आरोपियों के खिलाफ इस साल मार्च में चार्जशीट फाइल की गई और यह 12,000 पृष्ठों की है। इस पर सुनवाई अभी शुरू भी नहीं हुई है।


अभी इसी महीने फिल्म मेकर रोनी सेन ने एक पॉडकास्ट में चुटकी ली कि ड्रग्स नियंत्रण में ड्रग्स- निरोधी एजेंसियों की तुलना में इंस्टाग्राम ज्यादा प्रभावी है। उन्होंने तर्क दिया कि आज का युवा सुंदर, फैशनेबल दिखना चाहता है और इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो पोस्ट करता रहता है, कभी-कभी तो हर घंटे भी। इस जेनरेशन के युवाओं के बीच ड्रग्स का उपयोग काफी हद तक कम हो गया है।

लेकिन उनकी बात के उलट नशीले पदार्थों की जब्ती की रफ्तार तो वही है। अक्तूबर के आखिरी हफ्ते में मुंबई क्राइम ब्रांच ने 45 किलोग्राम भांग जब्त करने का दावा किया। इससे पहले हफ्ते में मुंबई पुलिस ने 21 करोड़ रुपये की सात किलोग्राम हेरोइन के साथ एक महिला को गिरफ्तार किया था। 2019 और 2020- दोनों साल महाराष्ट्र एटीएस ने ड्रग्स तस्कर गिरोह को पकड़ने के साथ-साथ ऐसे फार्मा कारखानों पर भी कार्रवाई करने का दावा किया था जो अवैध ढंग से नशा करने वाली दवा- मेफेड्रोन बना रहे थे।

नशा करने वाले स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच मेफेड्रोन और मैरिजुआना की मांग रहती है। मैरिजुआना सस्ती है, इसलिए जबकि मेफेड्रोन लेने से पढ़ने-लिखने के दौरान जगे रहने में आसानी रहती है। एनडीपीएस कानून में नशे की लत वालों या इसे लेने वाले को खलनायक नहीं बल्कि पीड़ित के तौर पर व्यवहार करने का प्रावधान है। उनकी पहचान गोपनीय रखने का प्रयास किया जाता है। एक पुलिस अफसर ने कहाः ‘लगता है, एनसीबी के अफसर आर्यन खान की गिरफ्तारी के दौरान इस बात को भूल गए।’

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निदेशक राहुल ढोलकिया जिन्होंने परजानिया और रईस जैसी फिल्में बनाईं, कहते हैं, ‘क्या यह गिरफ्तारी देश से ड्रग्स को खत्म करने की ईमानदार कोशिश है या फिर सिर्फ बॉलीवुड को निशाना बनाया जा रहा है? क्या हमें गोवा, पंजाब, दिल्ली जैसे अन्य इलाकों में छापे नहीं मारने चाहिए जहां ड्रग्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है?’

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