मणिपुर में पुलिस बनाम असम राइफल्स: सेना ने कहा- असम राइफल्स को बदनाम करने की कोशिश

मणिपुर जहां बीते तीन महीने से ज्यादा वक्त से जातीय संघर्ष से दो-चार है, इसी बीच मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैये की एफआईआर दर्ज कर दी है। इस पर प्रतिक्रिया में सेना ने कहा है कि यह असम राइफल्स को बदनाम करने की मनगढ़ंत कोशिश है।

मणिपुर में तैनात असम राइफल्स के जवान (फोटो सौजन्य - एएनआई)
मणिपुर में तैनात असम राइफल्स के जवान (फोटो सौजन्य - एएनआई)
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नवजीवन डेस्क

भारतीय सेना ने भले ही मंगलवार देर शाम बयान देकर यह कहने की कोशिश की कि मणिपुर में सब कुछ ठीक है, और विशेष रूप से असम राइफल्स और सामान्यतया मणिपुर में सुरक्षा बलों को बदनाम करने के लिए मनगढ़ंत कोशिशें की गई हैं, लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि जमीनी स्तर पर हालात कुछ अलग ही हैं। और, संसद के सत्र में होने के बावजूद गृहमंत्री की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया न आने से भ्रम और बढ़ गया है।

दरअसल स्थितियां 5 अगस्त को उस वक्त और खराब हो ईं जब मणिपुर पुलिस के एक दरोगा और बिश्नूपुर जिले में एक थाने के इंचार्ज एन देवदास सिंह ने असम राइफल्स की 9वीं बटालियन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। असम राइफल्स म्यांमार सीमा पर तैनात है और भारतीय सेना के ऑपरेशनल नियंत्रण के तहत काम करती है।

मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स पर सरकारी काम में बाधा डालने, आपराधिक तौर पर धमकाने और कुकी उग्रवादियों को भगाने का खतरनाक काम करने और पुलिस कमांडो को उनका पीछा करने से रोकने के आरोप लगाए हैं।

इस एफआईआर के दो दिन बाद बीजेपी की मणिपुर इकाई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 7 अगस्त को एक ज्ञापन देकर इस मामले में उनका ध्यान आकर्षित किया और दावा किया कि असम राइफल्स के पक्षपातपूर्ण भूमिका के लिए आम लोगों ने आरोप लगाए हैं। ज्ञापन में मांग की गई कि असम राइफल्स को स्थाई तौर पर मणिपुर से हटाया जाए। इससे एक दिन पहले ही मणिपुर सरकार ने चुराचांदपुर-बिश्नूपुर सीमा पर तैनात सेना की एक टुकड़ी को हटाने का आदेश दिया था।

इससे पहले असम राइफल्स ने भी 10 जुलाई को इम्फाल में कोआर्डिनेशन कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी नाम के एक सिविल सोसायटी ग्रुप के खिलाफ देशद्रोह और अवमानना का मामला दर्ज किया था। असम राइफल्स ने यह मामला तब दर्ज किया था जब इस ग्रुप ने आह्वान किया था कि लोग हथियार वापस न करें।


इस पूरे मामले पर सेना के प्रवक्ता ने 8 अगस्त को बयान में कहा कि, “यह समझने की जरूरत है कि मणिपुर में जमीनी हालात की जटिल प्रकृति के कारण विभिन्न सुरक्षा बलों के बीच सामरिक स्तर पर कभी-कभी मतभेद हो जाते हैं। हालाँकि, कार्यात्मक स्तर पर ऐसी सभी गलतफहमियों को मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति की बहाली के प्रयासों में तालमेल बिठाने के लिए संयुक्त तंत्र के माध्यम से तुरंत देखा जाता है।”

मणिपुर में जातीय संघर्ष की शुरुआत से ही, मैतेई समुदाय की तरफ से सेना और असम राइफल्स पर कुकी समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाया जाता रहा है, जबकि कुकी समुदाय ने मणिपुर पुलिस पर मैतेई उग्रवादियों के साथ मिलीभगत करने और पहाड़ियों पर हमलों में उनका नेतृत्व करने का आरोप लगाया है।

पुलिस और सेना के बीच गतिरोध राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों के शासन के तौर तरीकों और उनकी नाकामी को उजागर करता है। विश्लेषक और टिप्पणीकार सुशांत सिंह का कहना है कि, “मणिपुर पुलिस बनाम असम राइफल्स गाथा के दो भाग हैं। एक है मणिपुर का आंतरिक मुद्दा, इसका कल्पित इतिहास, बहुसंख्यकवादी राजनीति और जातीय पूर्वाग्रह। दूसरा है देश की संस्थाओं - सेना और उसके नेतृत्व, केंद्र सरकार और उसके नेतृत्व की रक्षा के बारे में है।“


राजनीतिक टिप्पणीकार सुहास पल्शिकर ने भी इस मुद्दे पर व्यंग्यात्मक ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, “चूंकि मणिपुर में अनुच्छेद 355 लागू है, इसका मतलब है कि केंद्र सरकार ने मणिपुर में तैनात सेना की टुकड़ी के खिलाफ पुलिस शिकायत की अनुमति दी है। सशस्त्र बलों की उपेक्षा के अलावा, यह शासन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।''

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