फिर निकल आया एनआरसी का जिन्न, अगर नहीं है रजिस्टर में नाम तो चुनाव लड़ना तो दूर, वोट तक नहीं दे पाएंगे

असम में एनआरसी का जिन्न फिर बाहर आ गया लगता है। जिनके नाम एनआरसी में नहीं आए उन्हें अस्वीकृति की पर्ची नहीं मिली है इसलिए वे इसे चुनौती भी नहीं दे पा रहे। इस बीच किसी भी यात्रा या चुनाव में हिस्सा लेना भी दुष्कर होता जा रहा है।

फोटो : Getty Images
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दिनकर कुमार

एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) से बाहर रह गए असम के करीब 19 लाख लोग अब भी अधर में हैं जबकि असम सरकार उन्हें डी (संदिग्ध) वोटर बनाने की तैयारी में है। असम में एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया 1993 से सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रही थी। पिछले साल 31 अगस्त को अंतिम सूची प्रकाशित हुई। इससे 19 लाख लोग बाहर रखे गए। इनके पास विदेशियों की पहचान के लिए बने ट्रिब्यूनलों (एफटी) और ऊंची अदालतों में नागरिकता साबित करने का विकल्प खुला हुआ है। असम की बीजेपी सरकार भी मानती है कि यह सूची ‘सही’ नहीं है। उसने सुप्रीम कोर्ट में दोहराया है कि अंतिम एनआरसी में शामिल नामों में से सीमावर्ती जिलों में 20 प्रतिशत और अन्य जगहों पर 10 प्रतिशत का पुनः सत्यापन जरूरी है।

2013 से एनआरसी प्रक्रिया का पर्यवेक्षण कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी, 2020 से इस मामले की सुनवाई नहीं की है। इससे दिक्कतें कई हो रही हैं। इस सूची में जिन 19 लाख को शामिल नहीं किया गया, उन्हें अस्वीकृति की पर्ची जारी नहीं की गई। इस पर्ची के आधार पर ही वे ट्रिब्यूनलों में नागरिकता साबित करने की अपील कर सकते हैं। अधिकारियों का कहना है कि पर्ची जारी होने में देरी की वजह कोविड-19 महामारी तो है ही, अस्वीकृति आदेशों में कुछ विसंगतियां भी हैं जिन्हें फिर से जांचना जरूरी है। स्वाभाविक है कि अस्वीकृति पर्ची के बिना एनआरसी से बाहर किए गए व्यक्ति अधर में हैं।

लेकिन, लोगों को हो रही परेशानी से सरकार को कोई मतलब नहीं। वह अपने एजेंडे पर काम कर रही है। असम एनआरसी के राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा ने सभी उपायुक्तों और नागरिक पंजीकरण के जिला रजिस्ट्रारों को 13 अक्टूबर को लिखे पत्र में कहा है कि कुछ अपात्र व्यक्तियों के नाम भी एनआरसी में शामिल किए गए हैं। ये हैं: विदेशियों की पहचान के लिए बने ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी (डीएफ) घोषित व्यक्ति, चुनाव अधिकारियों द्वारा संदिग्ध मतदाता (डी वोटर) के रूप में चिह्नित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति और उनके वंशज जिनके मामले विदेशी ट्रिब्यूनलों (पीएफटी) के पास लंबित हैं। ध्यान रहे कि विदेशी ट्रिब्यूनल अर्ध न्यायिक निकाय हैं जो यह राय देने के लिए बनाए गए हैं कि क्या कोई व्यक्ति विदेशी अधिनियम, 1946 के अनुसार अवैध विदेशी है। वे उन्हें नोटिस भेजते हैं जिन्हें सीमा पुलिस द्वारा चिह्नित किया गया है या जिन्हें स्थानीय चुनाव कार्यालय ने डी (संदिग्ध) मतदाता के रूप में चिह्नित किया है।


10 दिसंबर, 2019 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा को बताया कि विदेशी घोषित किए गए केवल चार व्यक्तियों को बांग्लादेश भेजा गया जबकि विदेशी ट्रिब्यूनल ने कुल 1,29,009 लोगों को विदेशी के रूप में चिह्नित किया है। एनआरसी की तैयारी को नियंत्रित करने वाले कानूनों के अनुसार, इन लोगों को एनआरसी में शामिल नहीं किया जा सकता। अक्तूबर के पहले हफ्ते में एनआरसी के राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा ने एनआरसी के जिला प्रभारियों को एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल संदिग्ध नामों को हटाने के लिए स्पीकिंग ऑर्डर जारी करने का निर्देश दिया है। स्पीकिंग ऑर्डर का मतलब है कि अगर एनआरसी के जिला प्रभारी को कोई व्यक्ति संदिग्ध विदेशी नागरिक प्रतीत होता है तो वह उसका नाम एनआरसी कीअंतिम सूची से हटाने के लिए मौखिक आदेश जारी कर सकता है।

एनआरसी की अंतिम सूची में कोई परिवर्तन सुप्रीम कोर्ट से पूछकर ही हो सकता है, चूंकि यह पूरी प्रक्रिया उसकी देखरेख में ही पूरी हुई है। अंतिम सूची से नामों को हटाने का फैसला शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से बिना पूछे ही लिया है इसलिए यह काम मौखिक किया जा रहा ताकि कोई रिकॉर्ड न रहे। कांग्रेस विधायक और विधानसभा में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने इसीलिए इस प्रक्रिया पर आपत्ति प्रकट की है। लेकिन लगता नहीं कि असम की बीजेपी सरकार अपने पैर खींचने जा रही है। मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने अक्टूबर के शुर में फिर कहा कि जो एनआरसी पूरा हुआ, वह दोषपूर्ण है। कई अवैध विदेशियों के नाम इसमें हैं।


इस स्थिति ने लोगों का जीवन कई तरीके से दुष्कर कर दिया है। अभी मार्च में असम के बरपेटा और बाक्सा जिलों में सक्रिय 30 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता शाहजहां अली अहमद ने बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनावों में यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया। ये चुनाव अप्रैल में होने थे, पर कोविड की वजह से अब तक नहीं हो पाए हैं। लेकिन सत्तारूढ़ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने अहमद की उम्मीदवारी को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणियों की बौछार कर दी है। उनका कहना है किअहमद का नाम एनआरसी में नहीं है और ऐसे में, वह उम्मीदवार कैसे हो सकते हैं। दरअसल, अहमद और उनके परिवार के 29 अन्यस दस्यों को पिछले साल 31 अगस्त को प्रकाशित अंतिम एनआरसी में जगह नहीं मिली। उनका कहना है कि परिवार के पास 1951 तक के दस्तावेज हैं जो 24 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तारीख से पहले के हैं और वे अपना नाम फिर से शामिल करने की अपील करना चाहते हैं। लेकिन समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसे हो पाएगा।

इसी तरह, दरंग जिले में सात बच्चों की मां 55 वर्षीय डालिमन नेसा बेबस हो गई हैं। नेसा ने हज यात्रा के लिए कई वर्षों में 64,000 रुपये की बचत की थी। लेकिन अब पुलिस कह रही है कि वह सत्यापन प्रमाणपत्र जारी नहीं कर सकती क्योंकि वह एनआरसी से बाहर है। नेसा का कहना है कि उनके पति का नाम सूची में है लेकिन उसका नाम हटा दिया गया है। दरंग जिले की पुलिस का भी कहना है कि कई लोग अपने पासपोर्ट के लिए सत्यापन मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। एक ट्रैवल एजेंट अफजुद्दीन अहमद कहते हैं: कम-से-कम पांच परिवारों की हज यात्रा रोक दी गई है क्योंकि आवेदकों में से एक या अधिक एनआरसी से बाहर हैं। दरंग के एसपी अमृत भुइयां का कहना है, “अगर एनआरसी में नाम नहीं है तो आप पासपोर्ट का सत्यापन कैसे कर सकते हैं? यह नागरिकता का सवाल है।”


बोंगाईगांव जिले के अभयपुरी में 20 वर्षीय मजदूर रहीम अली, उसके छोटे भाई और पिता के नाम एनआरसी में हैं जबकि तीन बहनों और एक भाई के नाम नहीं हैं। रहीम की मां हलीमा खातुन को विदेशी ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था। 2019 में जमानत पर बाहर आने से पहले उसने कोकराझार के डिटेंशन कैंप में चार साल बिताए थे। अली और उसके भाई अपने पिता के पैतृक दस्तावेजों से एनआरसी में शामिल हुए हैं लेकिन वह आश्चर्यचकित हैं कि क्यों अन्य भाई-बहन बाहर हैं जबकि सभी लोगों ने एक ही किस्म के कागजात दाखिल किए। ये कागजात 1951 के हैं। रहीम कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी बहन 18 साल की हो गई है लेकिन एनआरसी के इन झमेलों से उनकी शादी नहीं हो रही।

लेकिन ये चिंताएं उन गैर-मुसलमानों को नहीं जो एनआरसी से बाहर रह गए। उन्हें लगता है कि सीएए के तहत उन्हें नागरिकता मिल जाएगी। होजाई के 40 वर्षीय बंगाली हिंदू व्यवसायी मनोज दास कहते हैं: ‘मेरी मां का नाम एनआरसी से बाहर है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें एनआरसी में शामिल करने में कोई समस्या होगी। सीएए ने हमारी समस्या हल कर दी है।

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Published: 23 Oct 2020, 8:00 PM
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