विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण: आखिर क्या है बीजेपी की चिंता का कारण?

हिंदी भाषी तीनों राज्य, राजस्थान, मध्य प्रदेशऔर छत्तीसगढ़ के पिछले चुनावों के आंकड़े और इतिहास बताते हैं कि यहां जिस दल नेविधानसभा चुनाव जीता है, उसी दल को निरपवाद रूप से लोकसभा चुनावों में बड़ी जीतहासिल हुई है।

नवजीवन ग्राफिक्स
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कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के एक साल पूरा होने के मौके पर कांग्रेस पार्टी ने हिंदी भाषी तीन राज्यों में शानदार जीत हासिल की है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले यह आखिरी विधानसभा चुनाव थे और मतदाताओं ने कांग्रेस को जो जनादेश दिया है उसके दूरगामी नतीजे होने वाले हैं।

अगर बुनियादी तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्र के इन तीन राज्यों के नतीजों को जोड़कर विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यहां से कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट जनादेश मिला है। 2018 में कांग्रेस ने कुल 281 विधानसभा सीटें जीती हैं, जोकि 2013 के मुकाबले 140 फीसदी ज्यादा हैं। दूसरी तरफ बीजेपी को करीब 50 फीसदी सीटों का नुकसान हुआ है और उसकी संख्या 376 से घटकर 197 पर आ गई है।

विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण: आखिर क्या है बीजेपी की चिंता का कारण?

इन नतीजों के भविष्यगामी असर को देखें तो, इन तीन राज्यों के चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों की एक निश्चित तस्वीर नजर आती है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ इस मायने में काफी अहम हैं क्योंकि इन तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव हमेशा लोकसभा चुनाव से 6 महीने पहले होते रहे हैं। और, जो भी पार्टी इन राज्यों में जीती है, उसी ने इसके बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की है।

मिसाल के तौर पर, 2008 में बीजेपी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव जीता। लेकिन 2009 में कांग्रेस के लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद बीजेपी ने मध्य प्रदेश में ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल की थीं। इस तरह लोकसभा चुनाव और इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच सौ फीसदी सामंजस्य स्थापित होता है।

अब सवाल उठता है कि यह कहना इतना महत्वपूर्ण क्यों है? 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इन तीन राज्यों की कुल 65 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीत हासिल की थी। और, अब बीजेपी इन तीनों राज्यों को हार चुकी है। अगर इतिहास चौथी बार खुद को दोहराता है तो 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को इन तीनों राज्यों में निर्णायक जीत हासिल होना चाहिए।

विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण: आखिर क्या है बीजेपी की चिंता का कारण?

और गहराई से इन राज्यों में जाएं तो चौंकान वाले आंकड़े सामने आते हैं।

मध्य प्रदेश

इन तीन राज्यों में से मध्य प्रदेश में सबसे कांटे का मुकाबला रहा और आखिरकार कांग्रेस ने 114 सीटें हासिल कर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी के हिस्से में 109 सीटें आईं। ऐसा भी तब हुआ जब बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस के मुकाबले कुछ अधिक है। बीजेपी को यहां कांग्रेस के मुकाबले 48,000 वोट अधिक मिले हैं, जोकि कांग्रेस से महज़ 0.1% ज्यादा है।

कांग्रेस की जीत का कुंजी ऐसी विधानसभा सीटें रहीं जहां वोटों का झुकाव बदलने की संभावना थी और साथ ही वोटरों के ध्रुवीकरण के प्रभाव पर ज़ोर देना था। कांग्रेस वॉर रूम ने ऐसी 114 सीटों को चिंहित किया था। इनमें से 65 पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। यानी 57 फीसदी सीटों पर कामयाबी, और जीत में इन्हीं सीटों ने अहम रोल निभाया।

इसके अलावा कांग्रेस का प्रदर्शन मोटे तौर पर पूरे राज्य में मजबूत रहा। कांग्रेस का फायदा सिर्फ खास इलाकों या खास किस्म के वोटरों तक सीमित नहीं है। मध्य प्रदेश के 6 खास क्षेत्रों में कांग्रेस का वोट शेयर हर जगह बढ़ा है। इसी प्रकार 6 में से 5 रीजन में कांग्रेस की सीटें 2013 के मुकाबले ज्यादा रही हैं। इसी तरह शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहतर हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का स्ट्राईक रेट 29 से बढ़कर 50 फीसदी और शहरी इलाकों में 6 फीसदी से बढ़कर 48 फीसदी पहुंचा है। शहरी इलाकों में बढ़त काफी महत्वपूर्ण है, जो एक अंक से बढ़कर आधी सीटों तक जा पहुंची है।

कांग्रेस के नजरिए से 2019 के लिए यह अच्छे संकेत हैं, क्योंकि कांग्रेस शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में वोटों को सीटों में बदलने में कामयाब रही।

राजस्थान

राजस्थान में जनादेश कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा मजबूत रहा, जहां कांग्रेस ने 99 सीटें और करीब 1.8 लाख अधिक वोट हासिल किए। 2013 के मुकाबले यह बहुत बड़ी जीत है क्योंकि तब कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 21 सीटें और 33 फीसदी वोट आए थे।

2018 में कांग्रेस ने 39 फीसदी वोट हासिल किए। इस तरह राजस्थान ऐसा राज्य हो गया जहां कांग्रेस को सर्वाधिक वोट मिले।

सीटों का झुकाव भी काफी अधिक रहा, क्योंकि जहां कांग्रेस को 78 सीटों का फायदा हुआ वहीं बीजेपी को 89 सीटों का नुकसान हुआ। मध्य प्रदेश की ही तरह यहां भी कांग्रेस वोटों को सीट में बदलने में कामयाब रही। हालांकि यहां कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले सिर्फ आधा फीसदी अधिक वोट मिले, लेकिन उसे बीजेपी के मुकाबले 26 सीटें अधिक हासिल हुईं।

राजस्थान में भी कांग्रेस की जीत सभी इलाकों में हुई है और उसने बीजेपी के मुकाबले सामान्य और एसस-एसटी सीटों पर बेहत प्रदर्शन किया है।

एससी सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन कहीं बेहतर है और उसके हिस्से में 58 फीसदी सीटें आई हैं। भौगोलिक आधार पर देखें तो ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस ने बीजेपी का सूपड़ा साफ किया और उसकी जीत का प्रतिशत बीजेपी के 33 फीसदी के मुकाबले 52 फीसदी रहा। यहां से भी अच्छा संकेत है क्योंकि देश की बहुसंख्य आबादी ग्रामीण ही है।

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर शुद्ध रूप से आंकलन करें तो 2019 में ये आंकड़ा आधा-आधा हो सकता है, यानी कांग्रेस को हिस्से में कम से कम 13 सीटें आ सकती हैं। एक उपचुनाव में पहले ही कांग्रेस ने बीजेपी को शिकस्त दे रखी है।

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की है। कांग्रेस ने 43 फीसदी वोटों के साथ 68 सीटें जीती हैं। सीटों की संख्या और वोट शेयर, दो लिहाज़ से किसी भी एक दल के लिए यह ऐतिहासिक है। इससे पहले ऐतिहासिक आंकड़ा 49 सीटों का था जो 2013 में बीजेपी के हिस्से में आया था। जीत के आकार का अंदाज़ा इसी से लग सकता है कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच 10 फीसदी वोटों का अंतर है। जबकि 2013 में कांग्रेस और बीजेपी बीच यह फासला सिर्फ 0.75% वोटों का था। कांग्रेस ने यहां एसटी की 29 में से 24 और बस्तर की 12 में से 11 सीटें हासिल की हैं।

शुरु में माना गया था कि पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ पार्टी कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाएगी। लेकिन यह गलत साबित हुआ क्योंकि कांग्रेस का वोट शेयर पहले के मुकाबले 2 फीसदी बढ़ गया। जेसीसीपी ने दरअसल बीजेपी के वोटों में भारी सेंध लगाई।

लोकसभा के ऐतबार से देखें, तो कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ मे तो बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा। अगर आज लोकसभा चुनाव हुए होते तो कांग्रेस के हिस्से में 11 में से 10 सीटें आतीं, जो कि 2014 के बिल्कुल उलट होता।

तेलंगाना

तेलंगाना से ऐसे नतीजों की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि क्योंकि वहां टीआरएस की लहर सामने आई और कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाया। हालांकि चुनावी गणित और विचारधारा के अनुसार दोनों दलों का गठबंधन एक सही फैसला था।

विश्लेषण करें तो सामने आएगा कि कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन को 8 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ है। पिछले चुनाव में दोनों को 40 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार 32 फीसदी वोट ही हासिल हुए। इसमें टीडीपी के 26 फीसदी और कांग्रेस के 14 फीसदी हिस्सा था। यह अहम है क्योंकि इससे पता चलता है कि संयुक्त रूप से दोनों को अधिक वोट मिले हैं।

विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण: आखिर क्या है बीजेपी की चिंता का कारण?

अगर टीडीपी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं होता तो क्या तस्वीर होती। अगर ऐसा होता तो टीआरएस, कांग्रेस और टीडीपी दोनों के वोट शेयर में बड़ी सेंध लगाती और शायद दोनों की संयुक्त सीट संख्या 21 तक पहुंच पाई।

इस तरह 2019 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हुए आखिरी चुनावों में साबित हो गया है कि कांग्रेस ही देश की पार्टी के रूप में उभरकर सामने आ रही है और उसकी लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से ऊपर जा रहा है। देश के लोगों के जनादेश से निकले सभी बिंदु मोदी सरकार के अंत और कांग्रेस के पुनरुत्थान का संकेत दे रहे हैं।

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