अयोध्या विवादः 5 मार्च को सुप्रीम कोर्ट तय करेगा मध्यस्थ नियुक्त किया जाए या नहीं

विवादित रामजन्मभूमि मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मध्यस्थता की बात कही है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले को कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में 5 मार्च को आदेश दिया जायेगा।

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

अयोध्या राम मंदिर विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि 5 मार्च को आदेश जारी किया जाएगा कि केस का समय बचाने के लिए कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नहीं। पीठ ने कहा कि ट्रांसलेशन पर सहमति बनाई जा सके, इसके लिए सुनवाई अगले 6 हफ्ते तक के लिए टाली जा रही है। सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की।

पीठ ने कहा कि अगर मध्यस्थता की एक फीसदी भी संभावना हो तो राजनीतिक दृष्टि से इस भूमि विवाद के समाधान के लिये इसे एक अवसर दिया जाना चाहिए।

इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिये न्यायालय द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुये कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है। वहीं सुननाई के दौरान एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि पहले भी मध्यस्थता का प्रयास किया गया था लेकिन वह असफल रहा। वहीं राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि वह किसी भी तरह की मध्यस्थता के खिलाफ हैं। उन्होंने आगे कहा कि हम मध्यस्थता का दूसरा दौर नहीं चाहते।

बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सभी तीनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जिसके बाद से ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।

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