अयोध्या विवाद: रामलला के वकील ने दी दलील, कहा- अंग्रेजों ने भी माना, मस्जिद की जगह था राम जन्मस्थान का मंदिर

अयोध्या जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज दूसरे दिन भी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान स कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से दस्तावेज से जुड़े सबूतों पर अपना अधिकार साबित करने के लिए कहा है। वहीं रामलला की तरफ से दलील रखते हुए वकील परासरण ने कहा कि इस मामले के साथ देश के हिंदुओं की भावनाएं जुड़ी हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

अयोध्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से रामजन्मभूमि पर अपना अधिकार साबित करने के लिए दस्तावेज मांगे। जिस पर निर्मोही अखाड़ा ने जवाब में कहा कि साल 1982 में वहां पर डकैती हुई थी, जिसमें सभी दस्तावेज खो गए। बता दें कि मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा ने पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अपना दावा किया था।

सुनवाई के दूसरे दिन निर्मोही अखाड़ा की ओर से वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच के समक्ष अपना पक्ष रखा। सुनवाई के दौरान जजों ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि क्या आपके पास इस बात को कोई सबूत हैं जिससे आप साबित कर सके कि रामजन्मभूमि की जमीन पर आपका कब्जा है। इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा ने कहा 1982 में डकैती के बाद से उनके कागजात खो चुके हैं। इसके बाद जजों ने निर्मोही अखाड़ा से कोई और सबूत पेश करने को कहा।


सीजेआई ने दो घंटों का समय देते हुए कहा कि आप अगले दो घंटों में रामजन्मभूमि से जुड़े साक्ष्य पेश करें। जिसके बाद निर्मोही अखाड़े के वकील ने जवाब दिया कि सभी दस्तावेज इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट में दर्ज हैं।

पीठ ने निर्मोही अखाड़े के वकील से सवाल किया, ‘‘राजस्व रिकार्ड के अलावा आपके पास और क्या साक्ष्य है और कैसे आपने ‘अभिभावक’ के अधिकार का इस्तेमाल किया।’’ इस पर वकील ने कहा कि इस स्थल का कब्जा वापस हासिल करने के लिये हिन्दू संस्था का वाद परिसीमा कानून के तहत वर्जित नहीं है।

उन्होंने कहा, “मजिस्ट्रेट ने सेक्शन 145 के तहत जमीन को कब्जे में लिया। केवल मजिस्ट्रेट के फाइनल आदेश के बाद ही लिमिटेशन पीरियड शुरू होता है। चूकि मजिस्ट्रेट का कोई अंतिम आदेश नहीं आया था। लिहाजा उनके मामले में लिमिटेशन पीरियड का उल्लंघन नहीं बनता है।”

वहीं रामलला की तरफ से दलील रखते हुए वकील परासरण ने कहा कि इस मामले के साथ देश के हिंदुओं की भावनाएं जुड़ी हैं। लोग रामजन्मभूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। पुराण और ऐतिहासिक दस्तावेज में इस बात के सबूत भी हैं। परासरण ने कोर्ट में कहा कि ब्रिटिश राज में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह का बंटवारा किया था, तो मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना था. उन्होंने इस दौरान वाल्मिकी की रामायण का उदाहरण भी पेश किया।

जिसके बाद जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या जिस तरह श्री राम जन्मभूमि का विवाद सुप्रीम कोर्ट आया है, किसी और देश में ईश के जन्मस्थान को लेकर सवाल उठा है। मसलन क्या जीसस बेथलम में पैदा हुए, ऐसा कोई सवाल उठा? के परासरन ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। इसका पता करना होगा।

वहीं अयोध्या मामले में गुरुवार को भी रामलला की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन दलीलें जारी रखेंगे।

इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्मोही आखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने कहा था कि मुकदमा मूलत: वस्तुओं, मालिकाना हक और प्रबंधन अधिकारों को लेकर है। उनका 100 सालों से विवादित जमीन पर कब्जा रहा है।

बता दें कि मध्यस्थता पैनल द्वारा मामले का समाधान नहीं निकलने के बाद कोर्ट मंगलवार से सुनवाई कर रहा है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर भी शामिल हैं। नियमित सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता।

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Published: 07 Aug 2019, 4:00 PM